खबर लहरिया Blog भारत में होने वाले ट्रेन हादसों की जानें वजह, ज़िम्मेदार कौन? 

भारत में होने वाले ट्रेन हादसों की जानें वजह, ज़िम्मेदार कौन? 

ओडिशा रेल हादसे मामले को लेकर अधिकारियों ने कहा कि प्रारंभिक जांच की रिपोर्ट इलेक्ट्रॉनिक सिग्नलिंग सिस्टम में खराबी की ओर इशारा करती है, जो दुर्घटना का सबसे संभावित कारण है।

                                                                      ओडिशा के बालासोर में तीन ट्रेनों में हुई टक्कर की फोटो/ ATUL LOKE / THE NEW YORK TIMES

भारत में रेल हादसों के कई ऐसे मामले सामने आये हैं जहां पर कहीं न कहीं तकनीक व सिग्नल देने में हुई गलती ने बड़े हादसों को अंजाम दिया है। ओडिशा का रेल हादसा भी तकनीकी वजह के साथ-साथ सिग्नल देने में लापरवाही का परिणाम है जिसमें तीन ट्रेनों की हुई भीषण टक्कर ने 275 लोगों की जान ले ली। वहीं 1000 से ज़्यादा लोग इस घटना में घायल हुए। रेल मंत्री ने कहा, इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग की समस्या की वजह से दुर्घटना हुई है। 

पिछले कुछ दशकों में भारत में जितने भी रेल हादसे हुए हैं, उनमें यही देखा गया है कि कई ट्रेनें या तो पटरी से उतर गई तो सिग्नल देने में चूक के चलते दो ट्रेनों की आपस में भीडंत हो गई। 

ओडिशा रेल हादसे मामले को लेकर अधिकारियों ने कहा कि प्रारंभिक जांच की रिपोर्ट इलेक्ट्रॉनिक सिग्नलिंग सिस्टम में खराबी की ओर इशारा करती है, जो दुर्घटना का सबसे संभावित कारण है। यह भी बता दें, रेल मंत्रालय ने मामले को लेकर केंद्रीय जांच ब्यूरो से जांच कराने की मांग की है।

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इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग क्या है?

इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग एक सुरक्षा प्रणाली है जो सिग्नल और पटरियों को नियंत्रित करके ट्रेनों के बीच परस्पर विरोधी टक्कर को होने से रोकता है। 

भारत में हुए भीषण ट्रेन हादसे 

अगर हम  भारत में हुए भीषण ट्रैन हादसों की बात करें तो उसमें कई मामले सामने निकलकर आते हैं। जैसे :-

इंडिया टुडे की प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, 

अगस्त 1999: कोलकाता के पास दो ट्रेनें आपस में टकरा गईं, जिससे कम से कम 285 लोगों की मौत हो गई। हादसा उस समय हुआ जब करीब 2,500 लोगों को ले जा रही ट्रेन पश्चिम बंगाल के गायल के सुदूरवर्ती स्टेशन पर आपस में टकरा गई। यह सिग्नलिंग दिक्कत के कारण हुआ। दोनों ट्रेनें एक ही ट्रैक का उपयोग कर रही थीं क्योंकि लाइन पर चार में से तीन ट्रैक रख-रखाव के लिए बंद थे।

अगस्त 1995: दिल्ली से 200 किमी दूर दो ट्रेनों के आपस में टकराने से कम से कम 350 लोगों की मौत हो गई। फिरोजाबाद रेल दुर्घटना 20 अगस्त, 1995 को 02:55 बजे हुई जब एक यात्री ट्रेन नीलगाय से टकराने के बाद रुकी और ट्रेन से टकरा गई।

जुलाई 2011: फतेहपुर में एक मेल ट्रेन के पटरी से उतरने से करीब 70 लोगों की मौत हो गई और 300 से ज़्यादा लोग घायल हो गए। दुर्घटना 10 जुलाई, 2011 को 12:20 बजे हुई, जब हावड़ा-कालका मेल के 15 डिब्बे मालवन के पास पटरी से उतर गए। न्यूज़ रिपोर्ट्स के अनुसार, ट्रेन के एसी डिब्बों में आग लगने और चिंगारी निकलने की जानकारी मिली थी। 

मई 2012: 22 मई 2012 को हम्पी एक्सप्रेस हादसे में आंध्र प्रदेश की एक मालगाड़ी और हुबली-बैंगलोर हम्पी एक्सप्रेस की टक्कर हो गई थी। ट्रेन के पटरी से उतर जाने की वजह से करीब 25 लोगों की मौत और तकरीबन 43 लोग घायल हो गए थे। 

मई 2014: 26 मई को उत्तर प्रदेश के संत कबीर नगर इलाके में गोरखपुर की ओर जा रही गोरखधाम एक्सप्रेस खलीलाबाद स्टेशन के पास रुकी और मालगाड़ी से टकरा गई, जिसमें 25 लोगों की मौत हो गई और 50 से ज़्यादा लोग घायल हो गए। 

नवंबर 2016: यूपी के उत्तरी राज्य में एक एक्सप्रेस ट्रेन के पटरी से उतरने से 146 लोग मारे गए थे और 200 से अधिक घायल हुए थे। 20 नवंबर, 2016 को, इंदौर-पटना एक्सप्रेस 19321 सुबह करीब 3.10 बजे पुखरायां, कानपुर के पास पटरी से उतर गई जिससे लगभग चौदह डिब्बे पटरी से उतर गए।

जनवरी 2017: दक्षिणी आंध्र प्रदेश में एक पैसेंजर ट्रेन के कई डिब्बे पटरी से उतर जाने से कम से कम 41 लोगों की मौत हो गई थी। 21 जनवरी, 2017 को जगदलपुर से भुवनेश्वर जाने वाली हीराखंड एक्सप्रेस 18448, विजयनगरम के कुनेरू गांव के पास पटरी से उतर गई थी। 

अगस्त 2017: 19 अगस्त को पुरी-हरिद्वार उत्कल एक्सप्रेस मुजफ्फरनगर में पटरी से उतर गई, जिसमें 23 लोगों की मौत हो गई और लगभग 60 लोग घायल हो गए। उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में खतौली के पास शाम करीब 5:45 बजे ट्रेन के 23 में से 14 डिब्बे पटरी से उतर गए थे। ट्रेन पुरी से हरिद्वार जा रही थी।

अगस्त 2017: 23 अगस्त, 2017 को दिल्ली जाने वाली कैफियत एक्सप्रेस के नौ डब्बे उत्तर प्रदेश के औरैया के पास पटरी से उतर गए, जिससे कम से कम 70 लोग घायल हो गए। हादसा उस समय हुआ जब ट्रेन लाइन पर डंप ट्रक से टकरा गई, जिससे कैफियत एक्सप्रेस के दस डिब्बे पटरी से उतर गए।

इन सभी हादसों की वजह ट्रेन का पटरी से उतरना और सिग्नल में दिक्कत को बताया गया। ऐसे में सवाल यह है कि ट्रेन पटरी से क्यों और कैसे उतरती है?

ट्रेन का पटरी से उतने का कारण 

बालासोर में ट्रेन हादसे के बाद सुरक्षाकर्मी बचाव कार्य में जुटे हुए / AFP-JIJI

एक ट्रेन के पटरी से उतरने के कई कारण हो सकते हैं। जैसे :-

  • ट्रैक का खराब होना 
  • कोच में कुछ खराबी होना 
  • ड्राइविंग के दौरान कुछ गलती 

2019-20 के एक सरकारी रेलवे सुरक्षा रिपोर्ट में पाया गया कि 70% रेल दुर्घटनाएं पटरी से उतरने की वजह से हुई थी, जिसका प्रतिशत पिछले साल 68% था। 

पटरी से उतरने का एक प्रमुख कारण पटरियों के रखरखाव (171 मामले) से भी जुड़ा हुआ था। 

वहीं हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, ज़्यादा गर्मी या सर्दी की स्थिति के दौरान पटरियों के विस्तार या संकुचन की वजह से ट्रेन के पटरी से उतरने की घटनाएं ज़्यादातर “रेल फ्रैक्चर” की वजह से होती है।

“एक विशेष घटना पटरी से उतरने का कारण नहीं हो सकता। भारतीय प्रबंधन संस्थान, इंदौर में रणनीति प्रबंधन के प्रोफेसर स्वप्निल गर्ग ने इंडियास्पेंड को बताया, ” पटरी के उतरने से पहले तीन, चार या पांच अलग-अलग गलतियों का मेल होता है।”

 आगे कहा, “जब सिग्नल में गलती होती है, साथ ही मैकेनिकल और सीवीएल इंजीनियरिंग विफलताएं होती हैं तो हम पाते हैं कि ये सारी चीज़ें ट्रेन के पटरी से उतने की वजह है। “

ये भी कहा कि हादसों के लिए रखरखाव और पैसों की कमी भी ज़िम्मेदार है। 

रेलवे के एक अधिकारी के अनुसार, भारतीय ट्रेनों को टकराने से रोकने के लिए डिवाइस लगाने की चर्चा होती रही है और अब यह प्रणाली फ़िलहाल दो प्रमुख मार्गों – दिल्ली और कोलकाता के बीच और दिल्ली और मुंबई के बीच – पर स्थापित की जा रही है। पर यह बात साफ़ नहीं है कि यह डिवाइस कितना मददगार होगा। 

द न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने एनसीआरबी का हवाला देते हुए बताया कि मानवीय गलतियां जैसे ड्राइवरों की गलती, तोड़-फोड़, सिग्नलमैन की गलती और यांत्रिक विफलताएं दुर्घटनाओं के पीछे के अन्य कारण हैं। 

इन रेलों में अमूमन मध्यम वर्ग के परिवार व गरीब लोग ही जनरल डब्बों में ट्रेवल करते हैं। जो आधुनिक ट्रेनें सुरक्षा के कवच के साथ करोड़ों खर्च करके कुछ सालों में चलाई गई हैं, उनमें सिर्फ आर्थिक रूप में अधिक कमाने या अमीर व्यक्ति ही ट्रेवल कर सकता है। वहीं भारत की आधी से ज़्यादा आबादी उन ट्रेनों में सफर कर रही हैं जिनमें तकनीकें उन्नत नहीं हुई हैं। जिन ट्रेनों के कई बार हादसे भी हो चुके हैं। ट्रेनों की इतनी कमी है कि लोग पैसेंजर और एक्सप्रेस ट्रेंनों में भरकर सफर कर रहे हैं जिनमें पैर रखने तक की जगह नहीं होती। 

ऐसे में सरकार व रेल मंत्रालय पुरानी ट्रेनों की तकनीकों और खतरे की स्थिति में निपटने के लिए क्या कर रहा है, यह सवाल ओडिशा में हुए भीषण रेल हादसे के बाद भी वही है। 

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