राजनीति हमेशा से ही सत्ता और ताकत की गुलाम रही है। नेता के रूप में आने वाला हर एक व्यक्ति के लिए लोगो की सेवा से ज़्यादा ताकत मायने रखती है। राजस्थान में भी यही सवाल है कि सत्ता और ताकत किसके पास होनी चाहिए। कौन इसके सबसे ज़्यादा लायक है। इस वक़्त राजस्थान में राजनीतिक संकट चरम सीमा पर है। जब से कांग्रेस ने 2018 में राजस्थान का चुनाव जीता है, तब से ही यह सवाल खड़ा हो गया है कि मुख्यमंत्री के पद पर किसे बैठना चाहिए। पद के लिए दो उम्मीदवार थे, अशोक गहलोत और सचिन पायलट।
अशोक गहलोत, सचिन पायलट के मुकाबले ज़्यादा अनुभवी और पुराने नेता थे। वहीं सचिन पायलट एक युवा नेता थे। अनुभवी होने की वजह से कांग्रेस ने 2018 के चुनाव में अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बना दिया। यहीं से सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच मनमुटाव बढ़ता चला गया। जो एमएलए सचिन पायलेट की तरफ थे , वह गहलोत पर विश्वास नहीं कर रहे थे। अशोक गहलोत की तरफ वाले एमएलए को सचिन पायलट पर विश्वास नहीं था। दोनों के बीच दीवार आ चुकी थी। दोनों को एक दूसरे के ऊपर भरोसा नहीं था।
2020 के राज्यसभा चुनाव से पहले यह खबर सामने आती है कि बीजेपी, राजस्थान में कोंग्रस की सरकार को गिराने की साजिश कर रही थी। राजस्थान सरकार द्वारा किए जाने वाले फ़ोन टैप से यह बात सामने आयी। राजस्थान पुलिस ने इस मामले में दो टीमों को तैयार किया , स्टेट स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप और एंटी –करप्शन ब्यूरो। फ़ोन टैपिंग के दौरान दो ऑडियो क्लिप सामने आए। एंटी–करप्शन ब्यूरो साजिश करने के मामले के तहत एफआयआर दर्ज करती है।
कांग्रेस यह इल्ज़ाम लगाती है कि ऑडियो में केंद्रीय जल मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, कांग्रेस विधायक भंवरलाल शर्मा की आवाजे है। साथ ही संजय जैन नाम के व्यक्ति पर भी शक है। कोंग्रस इनकी गिरफ्तारी की मांग करती है। लेकिन बीजेपी का कहना है कि ऑडियो को बनाया गया है और साफ़ तौर पर साजिश के मामले से खुद को दूर कर लेती है। फ़ोन टैपिंग के दौरान यह बात भी सामने आती है की बीजेपी , कांग्रेस के एमएलए को पैसे देकर अपने सरकार में करने की कोशिश कर रही थी। ताकि राज्यसभा के चुनाव से पहले ही कांग्रेस की सरकार टूट कर गिर जाए।
कांग्रेस विधायकों का खुद की सरकार के खिलाफ साजिश करने की वजह से सचिन पायलट अपनी ही सरकार के खिलाफ जंग शुरू कर देते है। वैसे तो अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच की जंग काफी समय से चल रही है। जिसे कांग्रेस सरकार छुपाने की कोशिश कर रही थी। लेकिन अब दोनों के बीच के दीवार साफ –साफ़ देखने को मिल रही है।
इस मामले के बाद ऐसा कहा जा रहा था कि सचिन पायलट पहले की और अभी हुई चीज़ो की वजह से सरकार से नाराज़ हो गए थे। इसी वजह से वह अपने 19 एमएलए के साथ हरियाणा चले जाते है और किसी होटल में रुकते है। उसके बाद ये अफवाहे उड़ने लगती है कि सचिन पायलेट बीजेपी के प्रेजिडेंट जे.पी. नड्डा से मिलेंगे और बीजेपी सरकार में चले जाएंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सचिन पायलेट ने कहा की उन्हें बीजेपी के साथ जुड़ने में कोई दिलचस्पी नहीं है।
12 जुलाई 2020 की रात को अशोक गहलोत ने एक मीटिंग रखी। यह दिखाने के लिए कितने एमएलए उनके साथ है। उन्होंने कहा कि 200 में से कुल 102 एमएलए उनके साथ है। वहीं सचिन पायलेट के अनुसार उनके साथ 30 एमएलए है। लेकिन उसमे से सिर्फ 19 एमएलए के बारे में ही साफ़ तौर पर ऐसा कहा जा सकता है, एनडीटीवी की 30 जुलाई 2020 की रिपोर्ट के अनुसार। सरकार बनाने के लिए किसी को भी पार्टी को 200 सीटों में 101 सीट चाहिए होती है। उसके बिना वह सरकार नहीं बना सकती।
सरकार में मतभेद को देखते हुए 13 जुलाई 2020 को अशोक गहलोत सभी विधायकों की एक मीटिंग रखते है। उनका कहना था कि जो इस मीटिंग में नहीं आएगा उनके ख़िलाफ़ अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाएगी। सचिन पायलट का साथ देने वाले एमएलए इस मीटिंग में नहीं आए। 14 जुलाई की मीटिंग में फिर सचिन पायलट और उनके साथी एमएलए नहीं आए। बार –बार मीटिंग में न आने की वजह से 14 जुलाई 2020 को कांग्रेस ने सचिन पायलट को राजस्थान के उपमुख्यमंत्री के पद से हटा दिया। साथ ही पायलेट को कांग्रेस के राजस्थान के प्रेजिडेंट के पद से भी हटा दिया। पायलेट के साथ–साथ जो भी मंत्री थे , उन्हें भी मंत्री के पद से हटा दिया गया। ऐसा होने पर उन सभी मंत्रियों को फिर से चुनाव लड़ना पड़ेगा , तभी वह दोबारा से सरकार में आ सकते है।
राजस्थान के स्पीकर सी. पि. जोशी द्वारा कांग्रेस के 19 एमएलए को नोटिस भेजा गया, जो सचिन पायलट के साथ थे। दलबदल विरोध कानून के तहत उन मंत्रियों को नोटिस भेजा गया। उनसे पूछा जाता है कि उन्हें पार्टी से क्यों नहीं निकाला जाना चाहिए , जब आप पार्टी के बुलाने पर भी मीटिंग में नहीं आ रहे है। सचिन पायलट और उनके साथी मंत्रियों ने इस नोटिस के खिलाफ उच्च न्यायालय में चुनौती दी।
देखा जाए तो अगर 19 एमएलए निकल जाते हैं तो अशोक गहलोत को ही ज़्यादा फ़ायदा होगा लेकिन उससे कांग्रेस की सरकार के गिरने की वजह ज़्यादा बढ़ जाएगी। आखिर में सरकार रहेगी या नहीं, यह सब इंडिपेंडेंट पार्टी पर ही निर्भर करेगा। फिर चुनाव के बाद ही पता चलेगा की किसकी सरकार सत्ता में आएगी।
कई बड़े मीडिया कर्मी और कांग्रेस के पदाधिकारियों ने कहा कि ये सारी ताकत और सरकार की लड़ाई अशोक गहलोत ने शुरू की है। ताकि आगे उन्हें सत्ता और ताकत के लिए कोई भी चुनौती न दे सके। साथ में यह भी कहा जा रहा था की अशोक गहलोत द्वारा सचिन पायलट को जानबूझकर बहुत सारी चीज़ो से दूर रखा गया। सरकार उन्हें नज़रअंदाज़ज कर रही है। यहां तक की कोविड-19 की बातचीत में सचिन पायलट को उपमुख्यमंत्री के तौर पर भी बातचीत में शामिल नहीं किया गया था। जब राजस्थान की एक साल की उपलब्धियों की बुकलेट निकाली गयी थी ,उसमे भी सचिन पायलेट का नाम नहीं लिखा गया था।
10 अगस्त 2020 को सचिन पायलट कांग्रेस के प्रमुख नेता राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी से मिलते है। इसके साथ ही वह सरकार के खिलाफ अपनी जंग को भी खत्म करते है। 13 अगस्त को सचिन पायलट अपने सभी साथी नेताओ के साथ जयपुर से राजस्थान वापस आ जाते है। एनडीटीवी कि 13 अगस्त 2020 कि रिपोर्ट में अशोक गहलोत का कहना है कि हमे सब कुछ भूल कर, माफ़ करके आगे बढ़ना चाहिए। साथ ही वह यह भी कहते है कि लोकतंत्र खतरे में है और हमारी यह लड़ाई लोकतंत्र को बचाने के लिए है। हम साथ रहेंगे तो बीजेपी हमे मध्यप्रदेश और कर्नाटका की सरकार की तरह तोड़ नहीं पाएगी।
आखिर महीने भर की राजनीतिक लड़ाई का अंत सचिन पायलट का फिर से सरकार में आने से हो जाता है। अब आगे यह देखना बाकी है कि कब तक अशोक गहलोत और सचिन पायलट एक दूसरे के साथ खड़े रहते है। सरकार में दरार नहीं आती। साथ ही यह भी देखना है कि सरकार कब अपनी लड़ाइयों से हटकर लोगो के ऊपर ध्यान देगी और अपना काम करेगी ।