मजदूरों के मोबाइल रख लिए गए। इसके बाद उनके साथ बुरा बर्ताव किया गया। बिना वेतन, खाने, नींद के मजदूरों से बस काम करवाया जा रहा था, इतना ही नहीं उनके साथ मारपीट भी की जाती थी।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में एक मशरूम फैक्ट्री में काम करने वाले 97 बंधुआ मजदूरों को बचाया, जिसमें महिलाएं और बच्चे शामिल थे। फैक्ट्री में मजदूरों को खाने को समय से नहीं मिलता था और न ही काम करने के पैसे दिए जाते थे। एक संस्था बचपन बचाओ आंदोलन ने इसकी सूचना महिला बाल विकास विभाग को दी तो उन्होंने कार्रवाई की। फैक्ट्री में रह रहे मजदुर यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश और झारखण्ड से नौकरी के लिए आए थे।
यह पूरा मामला रायपुर के खरोरा थाना क्षेत्र का बताया जा रहा है। दूसरे राज्यों से काम की तलाश में आए मजदूरों की इस तरह की हालत हमें बीते समय की याद दिला देती है। जब बंधुआ मजदूर के नाम पर मुफ्त में काम कराया जाता था और मालिकों (जमीदारों) के अंदर मजदूरों के प्रति जरा सा भी दया भाव नहीं था। आज भी कई गांव ऐसे हैं जहां इस तरह से मजदूरों पर अत्याचार किया जाता है, बस फर्क इतना है कि वो लोगों के सामने नहीं आ पाती।
पूरा मामला
पत्रिका न्यूज़ रिपोर्ट के मुताबिक पुलिस ने बताया कि रायपुर के खरोरा में उमाश्री राइस मिल के परिसर में मोजो मशरूम कंपनी है। जौनपुर के रहने वाले निवासी विपिन तिवारी, विकास तिवारी, नितेश तिवारी खुद को कंपनी का संचालक बताते हैं। उन्होंने मजदूर (जौनपुर के रवि और गोलू ) को अपने परिवार व रिश्तेदारों को कंपनी में काम करने के नाम पर 2 जून को बुलाया था। वे सभी नौकरी की तलाश में थे इसलिए मोजो कंपनी पहुंचे।
मजूदरों के साथ बुरा बर्ताव
मजदूरों के मोबाइल रख लिए गए। इसके बाद उनके साथ बुरा बर्ताव किया गया। बिना वेतन, खाने, नींद के मजदूरों से बस काम करवाया जा रहा था, इतना ही नहीं उनके साथ मारपीट भी की जाती थी। इसी सब से तंग आकर जौनपुर के रवि और गोलू 2 जुलाई की रात को फैक्ट्री से भाग निकले। वे 20 किमी पैदल चलकर रायपुर पहुंचे। कुछ लोगों ने मदद कर पुलिस तक पहुंचाया।
मीडिया रिपोर्ट में यह बात भी सामने आई कि वहां रह रही महिलाओं ने बताया कि जब वह शौच के लिए जाती थी तब ठेकेदार के आदमी उन पर निगरानी रखते थे ताकि वह कहीं भाग ने जाए।
महिला बाल विकास विभाग ने की मदद
महिला बाल विकास अधिकारी शैल ठाकुर ने कहा कि महिला बाल विकास विभाग के साथ बचपन बचाओ आंदोलन संस्था काम करती है। इनसे हमें शिकायत प्राप्त हुई थी। शिकायत के आधार पर हमने मजदूरों को बाहर निकाला।
मामले को दबाने की कोशिश
दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार जब उनकी टीम वहां जानकारी के लिए पहुंची तो, मजदूरों ने इनसभी आरोपों को गलत बताया। यहां तक की वहां मामले को दबाने के लिए मजदूरों को पैसे बांटे जा रहे थे।
मामले की तह तक जाना मुश्किल है क्योंकि अभी तक फैक्ट्री के मालिक का नाम सामने नहीं आया है। इसका मतलब है कि कोई बड़ा नामी आदमी इसके पीछे हो सकता है। जो फैक्ट्री के छोटे करता धरता हैं, उनसे पूछताछ की जा रही है। अभी तक मालिक नहीं पकड़ाया है, तो कुछ तो गड़बड़ है। अगर नहीं पकड़ाया है तो आगे की कार्यवाही भी नहीं की जाएगी। कई बड़े उद्योगपति अपने फायदे के लिए गरीबों की उम्मीदों के साथ खेलते हैं, उनसे फ्री में काम करवा कर अपनी कम्पनियाँ चलाते हैं, तो कुछ बहुत कम पैसों में उनसे दुगनी मेहनत करवाते हैं।
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