पन्ना जिले के किसानों ने रेलवे के खिलाफ आंदोलन की शुरुआत की है। किसानों का आरोप है कि रेलवे द्वारा कई ग्राम पंचायतों से रेलवे लाइन निकालने के लिए उन्हें मुआवजा और नौकरी देने का वादा किया गया था। लेकिन सिर्फ कुछ लोगों को ही मुआवजा दिया गया और नौकरी का वादा करने के बाद भी परिवार में किसी को भी नौकरी नहीं दी गयी। इसका विरोध करने के लिए सभी किसानों ने 21 दिसंबर 2020, सोमवार को रेलवे स्टेशन पर जाकर धरना प्रदर्शन और नारेबाज़ी की। उनका कहना है कि जब तक वादे के अनुसार उन्हें नौकरी नहीं दी जाएगी, वह रेलवे का कोई भी काम शुरू नहीं होने देंगे।
हज़ारों की संख्या में पहुंचे किसान
हज़ारों की संख्या में किसान रेलवे विभाग के खिलाफ प्रदर्शन करने के लिए इकट्ठा हुए। प्रदर्शन रैली ट्रैक्टर, साइकल और मोटरसाइकिल के द्वारा निकाली गयी। किसानों ने रेलवे विभाग के खिलाफ जमकर नारेबाज़ी भी की।
इन ग्राम पंचायतों से निकली है रेलवे लाइन
किशनपुर ,सबदुआ, बड़ी रूंध अम्हा, सिंहपुर आदि गांव ऐसे हैं जिसे रेलवे लाइन से जोड़ा गया है। किसानों का कहना है कि उनसे झूठे वादें करके रेलवे विभाग द्वारा उनकी ज़मीने ली गयी हैं। उनका कहना है कि अब वह लोग उनकी ज़मीनों पर रेलवे लाइन नहीं बिछने देंगे।
जानिए क्या है किसानों का कहना
प्रदर्शन में मौजूद किसान रुद्रप्रताप का कहना है कि रेलवे विभाग द्वारा उनके पास जमीन को खाली करने का नोटिस भेजा गया है। लेकिन जब तक रेलवे विभाग अपना किया हुआ वादा पूरा नहीं करती तब तक वह लोग अपनी ज़मीनों को खाली नहीं करेंगे।
किसान सचिन का कहना है कि उन्होंने नौकरी के लिए भोपाल और जबलपुर में नौकरी के लिए आवेदन पत्र दिया था। लेकिन कहीं से भी उन्हें नौकरी नहीं दी जा रही। वहीं रेलवे विभाग ने नौकरी का वादा करके भी उन्हें नौकरी नहीं दी है।
मांगो को लेकर यह है जिला कलेक्टर का कहना
पन्ना जिले के कलेक्टर संजय मिश्रा का कहना है कि नौकरी का बिंदु अलग है। उनका कहना है कि रोज़गार की समस्या का समाधान किया जाएगा। साथ ही किसानों को आंदोलन करने की कोई ज़रूरत नहीं है। उनके पास किसानों का आवेदन पत्र आ चुका है। साथ ही कलेक्टर का यह भी कहना है कि जिन किसानों की जमीनें गयी हैं, उन्हें नौकरी मिलेगी या नहीं मिलेगी। यह कहा नहीं जा सकता।
आवेदन पत्र में की गयी इन चीजों की मंग
- वादे के अनुसार परिवार में से एक व्यक्ति को नौकरी दी जाए।
- अगर नौकरी नहीं दी जा रही तो किसानों की ज़मीने वापस की जाए।
किसानों के अनुसार साल 2016 में रेलवे विभाग द्वारा उनसे रेलवे लाइन बिछाने की बात की गयी थी। उसी समय रेलवे विभाग द्वारा किसानों को ज़मीन के बदले नौकरी और मुआवज़ा का भी वादा किया गया था। 5 नवंबर 2019 को रेलवे विभाग द्वारा किसानों की ज़मीन को अधिकरण में कर लिया गया। 11 नवंबर 2019 को उनसे कहा गया कि जिनकी ज़मीन पर इस तारीख के बाद अधिकरण किया जाएगा, उन्हें नौकरी नहीं मिलेगी। जबकि 17 नवंबर 2019 को दिए एक आदेश में सबको नौकरी देने की बात की गयी थी।
यहां पूरा मामले में रेलवे विभाग मानों अपना पीछा छुड़ाने की कोशिश कर रही हो, ऐसा प्रतीत होता है। ज़मीन अधिकरण की बात को लेकर अभी तक तकरीबन एक साल हो गए हैं। फिर भी किसानों को दिए गए वादों को पूरा नहीं किया गया है। एक तरफ कलेक्टर द्वारा यह कहा जा रहा है कि लोगों को नौकरी देने के मामले में वह कुछ नहीं कर सकते, तो फिर इस मामले में किसे कहना चाहिए? यह दायित्व किसका है? ज़मीन लेने के बाद किसानों को नौकरी तक नहीं दी जा रही तो किसान अपनी आजीविका कैसे चलाएंगे? ना ज़मीन वापस मिली, ना मुआवज़ा और ना ही नौकरी। फिर सरकार द्वारा कहा जाता है कि वह देश के अन्नदाताओं को लेकर फिक्रमंद है।