ये बाबा आज भी छोटी लड़कियां और बूढी औरतों को सर पर पल्लू रखने की बात कर रहे हैं, उनके कहने का यही मतलब है की अब ऐसा नहीं होता मतलब समाज ग़लत दिशा में जा रहा है, उन औरतों से पूछिए जिन्हे इस बंधन में ज़िन्दगी गुज़ारनी पड़ी है। कपडे, खाने, किसी के रहन- सहन पर टिप्पणियाँ तो हमारे देश में ऐसे होती हैं जैसे मानो अगर इसपर न बोलो तो लोग आपके सामाजिक योगदान पर ही सवाल उठा देंगे। कई लोगों का चुप रह जाना भी योगदान से कम नहीं होता वैसे। सोचिए, ये बाबा घरेलू हिंसा, दहेज, बलात्कार- इन पर चुप रहते हैं। दिक्कत ये है कि लाखों लोग इनकी बातें बिना सोचे मानते भी हैं। औरतों पर पाबंदियां बढ़ती हैं, घरों में टेंशन बढ़ती है, और समाज और पीछे पड़ जाता है। फायदा सिर्फ़ बाबाओं का, नुकसान औरतों और पूरे समाज का। खैर, सोशल मीडिया पर इसपर खूब चर्चा चल रही है। कई महिलाओं ने इसे अपमानजनक कहा, लेकिन कुछ लोग- खासकर मर्द कहते हैं कि बयान का मतलब गलत लिया गया। अब, “दो-चार महिलाएं ही पवित्र हैं” इसमें क्या संदर्भ गलत समझा जा सकता है, ये मेरी समझ से तो बाहर है। शायद मेरी ही समझ थोड़ी कम होगी। मगर आप अपनी समझ कम मत रखिये। खबर लहरिया को सब्सक्राइब करें और यूट्यूब पर हमारा सहयोग करने के लिए जॉइन बटन दबाएँ या फिर इस QR कोड को स्कैन करें। देखें वो रिपोर्ट्स और खबरें जो बाकी मीडिया चैनलों में अक्सर गायब रहती हैं। आप सिर्फ़ 89 रुपए में हमारे चैनल के मेंबर बन सकते हैं और पा सकते हैं देश, दुनिया, गाँव और जिलों की सबसे अहम खबरें, सीधे जमीनी स्तर से।
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