खबर लहरिया Blog ‘मूंगा मोती’ से कभी मशहूर हुआ करता था हाथरस का पुरदिलनगर 

‘मूंगा मोती’ से कभी मशहूर हुआ करता था हाथरस का पुरदिलनगर 

उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले के अंतर्गत आने वाले पुरदिलनगर में एक ज़माना था जब मूंगा मोती का काम हर घर में होता था। यहां पर बनाए गए मूंगा मोती हरिद्वार, बनारस, मथुरा, काशी, दिल्ली , मुम्बई सहित विदेशों में भी जाता था। आज के दौर में सब बदल गया।

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                मूंगा मोती बनाते हुए महिला की तस्वीर ( फोटो – गीता देवी/ खबर लहरिया)

रिपोर्ट – गीता देवी 

मूंगा मोती जो देखने में बड़े सुन्दर और रंग बिरंगे होते हैं। ये मूंगा मोती सौंदर्य में चार चाँद लगा देते हैं। अधिकतर मूंगा मोती काले रंग की होती है। कांच के मूंगा मोती से माला, अंगूठी, नौलखा हार और भी हर तरह की सभी चीजें बनती थी। ये मोती कांच की बनी होती है उनकी चमक कभी नहीं जाती थी, क्योंकि वह शुद्ध कांच से बनी होती थी। शुद्ध होने की वजह से ये महंगा बिकता है। कांच की होने के कारण इसकी बनावट में सफाई की थोड़ा कमी होती थी क्योंकि यह हाथ की मशीन से निर्मित होता था। उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले के अंतर्गत आने वाले पुरदिलनगर में एक ज़माना था जब मूंगा मोती का काम हर घर में होता था। यहां पर बनाए गए मूंगा मोती हरिद्वार, बनारस, मथुरा, काशी, दिल्ली , मुम्बई सहित विदेशों में भी जाता था। बदलते दौर और बाजारवाद का फैलाव होने से चीन ने इसके रोजगार पर कब्जा कर लिया है क्योंकि वहां पर मूंगा मोती मशीनों से तैयार कराया जाता है, जो देखने में सुंदर नजर आता है और सस्ता भी होता है। इसके चलते यहां के लोगों का रोजगार भी छीन गया इसलिए अब लोगों को पलायन करना पड़ रहा है।

रोजगार ठप होने से जीवन हुआ अस्त-व्यस्त

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मूंगा मोती बनाने की प्रक्रिया को दर्शाती तस्वीर ( फोटो – गीता देवी/ खबर लहरिया)

नगरिया पट्टी की समीना बेगम कहती हैं कि, “जब से इस क्षेत्र का मूंगा मोती रोजगार ठप हुआ तब से लोगों का जीवन पूरी तरह से अस्त-व्यस्त हो गया है। आज से 20 साल पहले एक समय था जब यहां का कोई भी मजदूर काम की तलाश में बाहर नहीं जाता था। क्योंकि हर घर में मशीनें लगी थी, महिला और पुरुष दिन भर मूंगा मोती बनाने में व्यस्त रहते थे। उस समय एक व्यक्ति 300 से 400 रुपए के बीच कमा लेता था, जब से ये काम बंद हुआ तब से गांव में ज्यादातर लोग बेरोजगार बैठे हैं। सरकार अकसर मजदूरों के अधिकारों की बात करती हैं लेकिन सबसे ज्यादा दुर्गति मजदूरों की है। अब इस मूंगा मोती के रोजगार को कुछ पुश्तैनी लोगों ही कर रहे हैं इसलिए इस काम से यह शहर प्रसिद्ध हो गया है। अगर फिर से ये रोजगार चलन में लाया जाए तो काफी मजदूरों को रोजगार मिल जाएगा और उनकी आर्थिक स्थिति सुधर जाएगी।”

मूंगा मोती बनाने की प्रक्रिया

महेश उम्र (45) साल कहते हैं कि जब से वह इस गांव में है तब से अपने यहां मूंगा मोती का काम देख रहे हैं और ये काम उन्होंने भी किया है। पहले घरों में मशीन लगी थी और परिवार सहित लोग काम करते थे। पहले मशीन मिट्टी के तेल से चलती थी और मशीन में मिट्टी के तेल की टंकी हुआ करती थी। उसमें तेल भर के जलाया जाता था और तार में पाउडर लगाकर कांच को पिघला के मोती बनाया जाता था। कांच फिरोजाबाद से आता था। अब गैस पर ही मूंगा मोती का रोजगार किया जा रहा है।

रोजगार बंद होने से पलायन

गांव के लोगों ने बताया कि आज 20 सालों से उनके यहां का यह रोजगार पूरी तरह से बंद हो गया है। जब से चाइना का माल आने लगा तब से यहां की मंडी खत्म हो गई है। अब गांव में दो-चार घर होंगे जहां पर इसकी मशीन चलती है। बाकी के लोग प्रदेश कमाने जाते हैं, यही कारण है कि लोग बेरोजगारी से जूझ रहे हैं। घर में एक लोग कमाने जायेंगे तब जाकर परिवार का खर्चा चलता है।

देसी मूंगा मोती की जगह पर अब चाइना का माल

अब देश में अधिकतर चीजें चाइना निर्मित है कपड़े से लेकर हर छोटी चीज। चाइना से आया माल सस्ता और कम टिकाऊ होता है इसलिए जल्दी खराब हो जाता है। चाइना की चीजें सस्ती हैं इसलिए इसकी मांग अधिक है देश में। रामगोपाल जोकि 50 साल के हैं उन्होंने बताया कि आधुनिकता के दौर में चाइनीज मूंगा मोती को लोग ज्यादा पसंद करते हैं। पुरदिलनगर मंडी जैसा मूंगा मोती कहीं और नहीं बनाता। एक समय था जब यहां के कारीगरों में उत्साह नजर आया करता था और वह अपने आप में गर्व महसूस करते थे ये सोच कर कि उनके क्षेत्र से पलायन नहीं होता। हमेशा गांव में घर के सभी लोग रहते थे और खुश रहते थे लेकिन अब वो बात नहीं है चाइना ने उनके जीवन को तहस-नहस कर दिया है। चाइना का माल प्लास्टिक का बनता है पर देखने में खूबसूरत लगता है क्योंकि वहां पर अलग तरह की मशीन होती हैं, जिसमें सफाई बहुत ज्यादा होती है।

मूंगा मोती रोजगार खत्म होने से पुरुषों पर निर्भर रहती महिलाएं

बतासो 70 साल की हैं वह बताती है कि जब से वह इस गांव में शादी करके आई उन्होंने शुरू से ही मूंगा मोती का काम किया है। वह काम उनको बहुत ही पसंद भी था। मेहनत भी ज्यादा नहीं होती थी और घर बैठे रोजगार मिल जाता था। उस रोजगार से महिला हो या पुरुष सबके हाथ में अपनी कमाई का पैसा होता था, मजे से खर्च भी करते थे लेकिन आज एक-एक रुपए के लिए तरस रहे हैं। पहले तो महिलाएं भी कुछ कमा लिया करती थी लेकिन अब महिलाओं के हाथ में जो रोजगार था वो भी ठप होने से हाथ बिल्कुल खाली रहता है। कोई भी सामान लाना हो तो पुरुषों से मांगने पड़ते हैं पैसे। जब पहले खुद कमाते थे तो किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ता था।

देश में ऐसे कई रोजगार है जिनका अस्तित्व और पहचान बिल्कुल मिट चुकी है और बेरोजगारी भी बढ़ रही है। उत्तर प्रदेश में बहुत से ऐसे शहर और गांव हैं जो किसी न किसी खासियत और रोजगार के लिए जाने जाते हैं, लेकिन उन पुराने बंद पड़े उद्योगों को चालू कराने के बारे में सरकार कभी नहीं सोचती। यूपी सरकार ने ‘एक जिला एक उत्पाद’ योजना की शुरुआत 24 जनवरी 2018 को थी जिसका उद्देश्य ऐसे स्वदेशी और विशिष्ट उत्पादों और शिल्प को प्रोत्साहित करना है।

सरकार ने कहा कि “इनमें से कई मरती हुई सामुदायिक परंपराएं भी थीं जिन्हें आधुनिकीकरण और प्रचार के माध्यम से पुनर्जीवित किया जा रहा है।” लेकिन ये बात कहीं भी सफल होती नहीं दिखाई दे रही है। लोगों का कहना है कि यहां पर कांग्रेस पार्टी की नेता प्रियंका गाँधी भी खरीदारी के लिए आई थी और यहां के लोग उन्हें बहुत याद भी करते है पर उन्होंने भी कुछ नहीं किया।

 

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