जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में हुए आंतकी हमले को आज 14 फरवरी 2025 को 6 साल पूरे हो गए। इस दिन को काले दिन के रूप में याद किया जाता है। इस आंतकी हमले में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) के 40 जवान शहीद हुए थे।
रिपोर्ट – गीता, लेखन – सुचित्रा
पुलवामा अटैक को एक राजनीति का मुद्दा बना दिया गया और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी सरकार की वाह वाही होने लगी। पर उन शहीदों के लिए और जो अभी जवान देश की सेवा में लगे हुए हैं उनके लिए क्या सोचा है सरकार ने? सेना में शामिल होने के बाद भी उन्हें किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है इस पर कोई ध्यान नहीं देता।
आज के दिन को याद करते हुए हम ऐसे जवान की बात करेंगे जिन्होंने सेना में भर्ती के बाद किस तरह की चुनौतियों का सामना किया और वह आज भी अपने और बाकी जवानों के लिए संसद में जवानों के अधिकारों और सम्मान की लड़ाई लड़ रहे हैं। उनका नाम है हरेंद्र फौजी, जिनका जन्म जौनपुर जिले के जलालपुर थाना क्षेत्र के बादलपुर गांव में हुआ था, एक संघर्षपूर्ण जीवन जीते हुए सेना में भर्ती हुए। उनका बचपन काफी कठिनाइयों में बीता, क्योंकि जब वह कक्षा 1 में पढ़ रहे थे, उनके पिता का निधन हो गया था। उस वक्त उनके परिवार में उनकी मां, दो भाई और एक बहन थे। घर की स्थिति को देखते हुए, उनकी मां ने कठिन परिश्रम करके उनका पालन-पोषण किया।
आर्थिक संकट से जूझ रहे थे
हरेंद्र का घर एक छोटे से स्कूल के पास था, और वहां के शिक्षक ने उन्हें 5वीं कक्षा तक मुफ्त में पढ़ाया। फिर, आर्थिक संकट के कारण, उन्हें 10 रुपये महीने की फीस पर पढ़ाई जारी रखी। उनके बड़े भाई ने भी अपने परिवार को सहारा देने के लिए बाहर जाकर काम करना शुरू किया। इसके बाद हरेंद्र ने कक्षा 11 और 12 की पढ़ाई पूरी की।
अचानक सेना में जाने का ख्याल
एक समय था जब हरेंद्र का सपना था कि वह शिक्षक बनें, लेकिन अचानक उनका मन बदला और उन्होंने सेना में जाने का निर्णय लिया। उन्होंने महसूस किया कि सेना में भर्ती होकर वह अपने देश की सेवा कर सकते हैं। उनके गांव में सेना की वर्दी को बहुत सम्मान मिलता था। यह बात उन्हें प्रेरित करती थी कि वह भी सेना में शामिल हो।
2015 में, हरेंद्र फौजी ने बनारस में बीआरओ परीक्षा पास की और सेना में भर्ती हो गए। वह सिपाही रैंक में सेना में शामिल हुए। भर्ती के दौरान, उन्होंने बनारस में पेपर दिया और चंदौली में दौड़ पूरी की। इसके बाद, उन्हें 6 महीने की बेसिक ट्रेनिंग और ढाई साल की तकनीकी ट्रेनिंग दी गई।
सेना में कराए गए नौकरों वाले काम
उन्होंने बताया जब वह सेना में शामिल हुए, तो उन्होंने उच्च अधिकारियों द्वारा किए गए अत्याचारों का सामना किया। उन्हें कुत्ते घुमाने, बूट पॉलिश करवाने और कपड़े धोने जैसे व्यक्तिगत काम दिए गए। अगर उन्होंने इसका विरोध किया, तो उन्हें धमकियां दी जातीं और यह कहा जाता था कि सिपाही की औकात सिर्फ यही है।
सिपाहियों का शोषण और उनकी आवाज़
हरेंद्र फौजी का कहना है कि वह लगातार अपने अधिकारों के लिए लड़ते रहे हैं। वह चंद्रशेखर रावण से पटना में 8 दिसंबर को मिले थे। उन्होंने चंद्रशेखर रावण से भी मिलकर अपनी आवाज उठाई थी। चंद्रशेखर ने उनसे वादा किया था कि वह उनकी बात संसद में रखेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। राहुल गांधी से भी उनकी मुलाकात हुई, लेकिन उन्होंने भी उनकी बातों को नजरअंदाज किया। हरेंद्र का कहना है कि देश के नागरिकों को यह समझना चाहिए कि उनकी आवाज़ सुनने के लिए किसी की हिम्मत क्यों नहीं होती।
संसद में जवानों की बात क्यों नहीं?
हरेंद्र का मानना है कि जो जवान अपने प्राणों की आहुति देकर देश की सुरक्षा करते हैं, उनकी बात संसद में क्यों नहीं रखी जाती? वह चाहते हैं कि सेना में जवानों के साथ हो रहे शोषण पर कार्रवाई की जाए और उनके अधिकारों का सम्मान किया जाए।
सेना का दुरुपयोग करने वालों पर कार्रवाई की मांग
हरेंद्र फौजी ने सेना में सुधार की आवश्यकता पर जोर दिया। उनका कहना है कि सेना के जवानों को बूट पॉलिश, कुत्ते घुमाने और कपड़े धोने जैसे व्यक्तिगत कामों से मुक्त किया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि सेना में पावर का दुरुपयोग करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाए। किसी जवान को अगर सजा दी जाती है, तो उसकी वीडियो ग्राफी की जाए। उस वीडियो की एक कॉपी संबंधित जवान को दी जाए।
सेना में जज की भर्ती के लिए नियम की मांग
हरेंद्र ने सेना में जज बनने की प्रक्रिया पर भी सवाल उठाए। उनका कहना था कि जो लोग जज बनते हैं, उनके पास वकीलों की डिग्री नहीं होती। यह सरकारी पैसों का दुरुपयोग है। उन्होंने यह भी कहा कि अग्निवीर जैसी योजनाओं को तत्काल समाप्त किया जाए, क्योंकि यह योजना जवानों के हित में नहीं है।
जवानों के लिए संसद में स्थान
हरेंद्र फौजी का कहना है कि यदि जवानों की रक्षा के लिए कदम नहीं उठाए गए, तो उनका शोषण बढ़ेगा। वह चाहते हैं कि उनकी आवाज़ संसद में सुनी जाए और उनके अधिकारों की रक्षा की जाए। उन्होंने यह भी कहा कि जब जवान अपने प्राणों की आहुति देकर देश की रक्षा कर रहे हैं, तो उनके लिए संसद में स्थान क्यों नहीं मिलना चाहिए?
हरेंद्र का संघर्ष केवल उनका व्यक्तिगत संघर्ष नहीं है, बल्कि यह उन तमाम जवानों का संघर्ष है जो सेना में तैनात होकर अपने प्राणों की आहुति देने के लिए तैयार रहते हैं, लेकिन उनके अधिकारों का उल्लंघन किया जाता है।
“सिर्फ जवानों के नाम पर राजनीति नहीं होनी चाहिए, उनकी असल समस्याओं को हल किया जाए।”
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