यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण ( पॉक्सो) अधिनियम के तहत 2013 से 2016 तक में दर्ज अपराधों में न्याय 2022 तक मिलेगा। यह बात कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रन फाउंडेशन नाम की गैरसरकारी संस्था की रिपोर्ट में सामने आई है। रिपोर्ट के अनुसार गुजरात और अरुणाचल प्रदेश में न्याय का इंतजार कर रहे दर्ज अपराधों को 55 और 101 साल तक न्याय मिलने की उम्मीद है।
पॉक्सो कानून के तहत 2009 से 2014 तक दर्ज अपराधों की संख्या 151 प्रतिशत थी। साथ ही राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के अनुसार 2014 से 2016 तक 104,976 केस दर्ज हुए। वहीं 2016 में केवल 10 प्रतिशत अपराधों का मुकदमा प्रक्रिया पूरी हुई, जबकि 30 प्रतिशत अपराधों में अपराध सिद्धि हुई है।
2012 में जब पॉक्सो कानून बच्चों के अपराधों के खिलाफ पास हुआ तो इसमें भारतीय कानून संहिता के अंतर्गत धारा 376 के तहत बलात्कार, धारा 354 और अप्राकृतिक यौन कृत्य को रखा गया था। मई 2018 में पॉक्सो कानून और आपराधिक प्रक्रिया संहिता पर लाए अध्यादेश के अनुसार इस तरह के अपराधों में पुलिस द्वारा जांच दो महीने में पूरी करके छह महीने के अन्दर इस तरह के केस का मुकदमा पूरा करना होगा। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट को आदेश दिया है कि वे इस तरह के अपराधों की सुनवाई विशेष कोर्ट से कराएं।
राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार केवल 559 विशेष न्यायालय बनें, जिनमें 438 विशेष सरकारी अभियोजन की नियुक्ति 665 पदों में जिला न्यायालयों में हुई है। नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार विशेष न्यायालय और विशेष सरकारी अभियोजन की नियुक्ति का ये अर्थ नहीं की वे अलग से नियुक्त किए गए है। पॉक्सो कानून के तहत आने वाले अपराधों को भार भी नियमित न्यायालयों पर ही पड़ा है। इस तरह से बाल अपराधों से पीड़ित भारतीय बच्चों को 2022 तक ही न्याय मिल पाएगा।
साभार: इंडियास्पेंड