जिला बांदा में केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना के तहत लोगों को घर देने के वादे किए गए थे। साथ ही यह भी कहा गया था कि साल 2022 तक सबके पास उनके अपने घर होंगे। जिसमें कई लोगों को योजना का लाभ तो मिला। लेकिन इसमें ऐसे कई गरीब परिवार थे जो योजना से मिलने वाले लाभ से वंचित रहे। आवास ना मिलने से यह लोग झोपड़ियों में रहने के लिए मज़बूर हैं।
योजना को शरू करने का मुख्य उद्देशय गरीब असहाय, झोपड़ियों और कच्चे घरों में रहने वाले लोगों को सबसे पहले आवास देना था। लेकिन वह लोग इस ठंड के समय में पन्नी डालकर बने घरों में रहने के लिए मजबूर हैं। बांदा के निवादा गांव में भी कुछ ऐसे ही परिवार हैं, जो सालों से पन्नी के घरों में रह रहे हैं। इस उम्मीद से कि शायद उन्हें वादें के अनुसार उनका आवास मिल जाए।
पन्नी के घरों में रहते लोगों ने बताई परेशानी
????निवादा गांव के रहने वाले रामलाल पिछले चार सालों से पन्नी के घर में रह रहे हैं। उनके परिवार में कुल सात लोग हैं। चार बेटियां और एक बेटा है। बेटियों में से दो की उन्होंने शादी कर दी है और उनका बेटा पागल है। उनकी पत्नी भी मानसिक बीमारी से ग्रसित हैं। वह कहते हैं कि वह दो-चार बीघे के खेत में खेती करके किसी तरह से अपने पूरे परिवार का भरन-पोषण करते हैं। बरसात के समय पन्नी के घर में पानी भर जाता है। पानी इतना ज्यादा होता है कि घर में रखा राशन भी भीग जाता है। कुछ भी नहीं बचता। उनकी आंखे रात भर सुबह होने का इंतज़ार करती कि शायद सुबह का सवेरा उनका हो और उनके लिए कोई अच्छी खबर लाए। लेकिन उनकी उम्मीदें सरकार की वादों की ही तरह धुंधली होती गयी। वह कहते हैं कि अगर सरकार योजना की बात करती है तो उन तक योजना का लाभ क्यों नहीं पहुंचता? प्रधान से कहो तो वह सिर्फ बात घुमा देता है। वह चाहते हैं कि उन्हें भी आवास दिया जाए ताकि वह सुकून से अपने परिवार के साथ रह सकें।
????गांव की शहीदा कहती हैं कि एक तो छोटे-छोटे बच्चे। ऊपर से पति की भी मानसिक हालत सही नहीं है। सास-ससुर भी काफ़ी बुर्जुग है। छोटी सी झोपड़ी में वह अपने पूरे परिवार के साथ रहती हैं। वह एक महिला है इसलिए प्रधान द्वारा उसकी आवाज़ को एहमियत नहीं दी जाती। उसकी परेशानी को नजरअंदाज कर दिया जाता है। उनकी भी यह मांग है कि अगर उन्हें आवास योजना का लाभ मिल जाए तो वह भी सुकून से अपने घर में रह सकती हैं।
????सुमंत कहते हैं कि वह लगभग बीस सालों से कच्चे घर मे रह रहे हैं। लेकिन फिर भी उन्हें योजना का लाभ नहीं मिला। जब प्रधान से आवास की मांग की गयी तो पहले तो उसे बस आश्वासन दिया गया। फिर उसे 5 हज़ार रुपए दिए गए, जो की कुछ दिनों बाद वापस ले लिया गया। उनकी यही मांग है कि अगर सरकार गरीबों के सर पर छत देने की बात कर रही है तो उन्हें भी घर दिया जाए ताकि वह भी अपना सर ढक सकें।
प्रधान ने कहा सचिव ने सूची से हटाया पात्र लोगों के नाम
निवादा गांव के प्रधान मेवालाल का कहना है कि गांव की कुल आबादी लगभग 7 हज़ार है। जिसमें लगभग 3,200 वोटर हैं। उनके अनुसार उन्होंने आवास के पात्र लोगों में 335 लोगों की सूची तैयार की थी। जिसमें से अब सिर्फ 185 लोग ही बाकी है। उनका आरोप है कि इसमें सचिव का ही हाथ है। 185 लोग जो बाकी है, उनमें गरीब लोग कम है और उन लोगों के नाम ज़्यादा है जिनके पास पहले से ही कई सुविधाएं हैं। साथ ही 51 पात्र लोगों को अपात्र कर दिया गया है। प्रधान का कहना है कि जब उन्होंने सचिव से इसके बारे में बात की तो उन्होंने बहुत आराम से यह कह दिया कि इसमें उनकी कोई गलती नहीं है। उन्हें नहीं पता कि किस तरह से व्यवस्था की जानी चाहिए। वह कहते हैं कि वह कुछ नही कर सकते। वहीं प्रधान का आरोप है कि सचिव ने ही सब करवाया है।
एक तरफ सरकार की योजना के उद्देश्य में गरीबों को आवास देने की बात की जाती है। वहीं आवास प्रदान करने वाले अधिकारी उन्हें पात्रता की सूची से ही अलग कर देते हैं। फिर कहा जाता है कि सरकार की तरफ़ से आवास के लिए बजट ही नहीं आया। तो कभी प्रधान द्वारा काम नहीं किया जाता तो कभी सचिव का नाम सामने आता है। आखिर यह सारी समस्याएं गरीबों को लाभ देने के समय ही कैसे पैदा हो जाती हैं?