Kathia Wheat : कठिया गेहूं की खेती बुंदेलखंड में पुरानी हो चुकी है। इसका उपयोग बिस्किट, सूजी, दलिया, उपमा आदि के रूप में किया जाता है। इस गेहूं में बहुत से गुण होते हैं। इसका दलिया खाने से गैस की बीमारी और अर्थराइटिस नहीं होती है। इसकी रोटी खाने में बहुत स्वादिष्ट होती है। इसमें भरपूर मात्रा में कार्बोहाइड्रेट, विटामिन ए, फाइबर, एंटीऑक्सिडेंट होते हैं।
बांदा, बुंदेलखंड में कठिया गेहूं की उपज को बढ़ाने और इसे राष्ट्रीय पहचान देने की कोशिश हो रही है। इस कार्य की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। सवाल यह है कि गेहूं को राष्ट्रीय पहचान देने की जरूरत क्यों पड़ी और किसानों को उससे क्या फायदा होगा?
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महुई गांव के किसान शिव शरण बिहारी मिश्रा का कहना है कि कठिया गेहूं एक बहुत अच्छा और स्वादिष्ट गेहूं है, जिसे खाने से लोग स्वस्थ और प्रफुल्लित रहते हैं और उन्हें कभी बीमारी नहीं होती। इसका स्वाद बहुत मीठा होता था और लोगों को चिकित्सक के पास जाने की आवश्यकता नहीं पड़ती थी। हालांकि, अब यह गेहूं विलुप्त हो गया है क्योंकि इसे राष्ट्रीय स्तर पर पहचान नहीं मिली है। अगर सरकार इसे राष्ट्रीय पहचान देने की बात कर रही है, तो यह ठीक है क्योंकि अगर गेहूं को राष्ट्रीय पहचान मिलती है, तो वह देश और विदेश तक पहुँचेगा। सरकार कंपनियों के माध्यम से बातचीत करेगी और वह कंपनियां गेहूं खरीदेंगी, जिससे किसानों को उचित मूल्य मिलेगा। अब तक कठिया गेहूं की पहचान कम थी और उसकी उत्पादन भी उत्तम नहीं थी
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