खबर लहरिया Blog प्रयागराज: 2007 में बना महिला अस्पताल, लेकिन 17 साल बाद भी ताले में बंद

प्रयागराज: 2007 में बना महिला अस्पताल, लेकिन 17 साल बाद भी ताले में बंद

स्थानीय महिलाओं का कहना है कि जब पेट में दर्द, बच्चेदानी में गांठ, अचानक ब्लीडिंग या जलन जैसे गुप्त रोग होते हैं तो उन्हें खुलकर किसी से बात करने में झिझक होती है। पास में महिला डॉक्टर होती तो वे निसंकोच इलाज करवा सकती थीं।

महिला अस्पताल के बोर्ड की तस्वीर (फोटो साभार: सुनीता)

रिपोर्ट – सुनीता, लेखन – कुमकुम 

जिला प्रयागराज के बारा तहसील के लालपुर गांव में 2007 में एक बड़ी उम्मीद के साथ महिला अस्पताल की नींव रखी गई थी। अमिलिया गांव में तैयार इस अस्पताल को लेकर दर्जनों गांवों की महिलाओं ने सोचा था कि अब उन्हें इलाज के लिए दूर नहीं जाना पड़ेगा। आज 17 साल बाद भी अस्पताल सिर्फ नाम के लिए मौजूद है – न डॉक्टर है, न सुविधा, न ही दरवाज़ा खुलता है।

बिल्डिंग निर्माण में बजट खर्च लेकिन अस्पताल नहीं खुला

अस्पताल की बिल्डिंग खड़ी है। यहां कैमरे लगे हैं, कमरे बने हैं लेकिन उसमें न कोई स्टाफ है, न डॉक्टर है। आसपास के गांवों की महिलाओं के लिए यह भवन सिर्फ एक अधूरी उम्मीद बन कर रह गया है। रामवती, जो अमिलिया की ही रहने वाली हैं। उन्होंने बताया कि इस अस्पताल को बनने में अच्छा खासा बजट भी खर्च हुआ लेकिन अस्पताल बन तो गया, लेकिन कभी खुला ही नहीं। डिलीवरी या कोई बीमारी हो, तो 40 किलोमीटर दूर शंकरगढ़ या जसरा जाना पड़ता है।

20 गाँव की महिलाएं प्रभावित

इस महिला अस्पताल के न खुलने का असर सिर्फ एक गांव पर नहीं, बल्कि दर्जनों गांवों पर पड़ा है – जैसे लालपुर, अमिलिया,महेरवा, माझियारी, पडुवा, प्रतापपुर, नागनपुर, मानपुर, नौढिया और आसपास के कई अन्य गांव। इन गांवों की महिलाएं आज भी मामूली इलाज के लिए भी लंबा सफर तय करने को मजबूर हैं।

वक्त पर इलाज न मिलने से बच्चे की मौत

महेरवा गांव की सबिता बताती हैं- “एक बार गांव की ही महिला की डिलीवरी हो रही थी। बरसात का मौसम था, सड़कें टूटी थीं। एंबुलेंस समय पर नहीं पहुंच सकी। बच्चा आधा बाहर आ चुका था और उल्टा था। बड़ी मुश्किल से गाड़ी का इंतजाम कर जसरा अस्पताल ले जाया गया, लेकिन तब तक बच्चे की मौत हो चुकी थी। महिला तो बच गई, पर वह दिन हम कभी नहीं भूल सकते।”

बजट तो खर्च हो गया पर लाभ किसी को नहीं मिला

स्थानीय महिला कुंती निषाद कहती हैं-“इस अस्पताल के नाम पर करोड़ों खर्च हो गए होंगे। लेकिन अगर डॉक्टर की नियुक्ति ही नहीं होनी थी, तो अस्पताल बनाया ही क्यों गया? हम गरीब लोग हैं, रोज़ की मजदूरी से खर्च चलता है। इलाज के लिए 40 किलोमीटर जाना, किराया देना, एक दिन की मजदूरी छोड़ना. ये सब हमारे लिए बहुत भारी पड़ता है।

महिलाओं की समस्याएं

स्थानीय महिलाओं का कहना है कि जब पेट में दर्द, बच्चेदानी में गांठ, अचानक ब्लीडिंग या जलन जैसे गुप्त रोग होते हैं तो उन्हें खुलकर किसी से बात करने में झिझक होती है। पास में महिला डॉक्टर होती तो वे निसंकोच इलाज करवा सकती थीं। मजबूरी में उन्हें या तो इलाज टालना पड़ता है या दर्द सहना पड़ता है।

अस्पताल अब जर्जर हालत में

17 साल से बंद पड़े अस्पताल की बिल्डिंग अब जर्जर हो चुकी है। खिड़कियां टूटी हैं, दीवारों पर सीलन है, बाउंड्री गिर चुकी है। स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर समय रहते अस्पताल चालू हो गया होता तो ना केवल इलाज की सुविधा मिलती बल्कि सरकारी संपत्ति भी यूं बर्बाद न होती।

जनप्रतिनिधियों ने उठाई मांग, अधिकारी बोले – हैंडओवर नहीं हुआ

अमिलिया के ग्राम प्रधान देवेंद्र कुमार कहते हैं कि वे कई बार अधिकारियों को पत्र दे चुके हैं कि अस्पताल को शुरू किया जाए। बिल्डिंग तो पूरी तरह तैयार है और कैमरे भी लगे हैं लेकिन पता नहीं क्यों हैंडओवर नहीं हुआ। अगर यह खुल जाए तो हजारों लोगों को राहत मिलेगी।

शंकरगढ़ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के अधीक्षक डॉ. अभिषेक सिंह का कहना है कि अस्पताल की बिल्डिंग बनी हुई है लेकिन अभी तक उसे हमें हैंडओवर नहीं किया गया है इसलिए डॉक्टरों की नियुक्ति नहीं हो सकी है।

प्रयागराज के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. आशु पांडे भी इस मुद्दे से अवगत हैं। वे कहते हैं- “एक बार पत्र जरूर आया था अस्पताल चालू करने को लेकर लेकिन जब तक बिल्डिंग स्वास्थ्य विभाग को हैंडओवर नहीं होती तब तक कोई कार्रवाई संभव नहीं है।

 

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