रिपोर्ट – सुनीता, लेखन – कुमकुम
प्रयागराज के शंकरगढ़ ब्लॉक गांव शिवराजपुर मजरा नई बस्ती और बिहरिया का पुरवा में आज भी बिजली जैसी सुविधा से वंचित हैं ये गांव। यहां के ग्रामीण आज़ादी के 75 साल बाद भी अंधेरे में जीवन बिताने को मजबूर हैं। सौ से अधिक परिवारों में रात के समय ना तो रोशनी होती है और ना ही मोबाइल चार्ज करने की सुविधा।
बिजली न होने की वजह से गई पत्नी की जान
बिहरिया के गांव के निवासी बाबूलाल ने बताया तीन पीढ़ियों से इस गांव में रह रहे हैं। वह बताते हैं कि यहां गर्मी के मौसम में तो किसी तरह दिन कट जाता है लेकिन बरसात में अंधेरे की वजह से हालात बहुत बिगड़ जाते हैं। हम जमीन पर ही सोते हैं। गांव जंगल से सटा है इसलिए अक्सर बिच्छू और सांप घर में घुस आते हैं। अंधेरे में कुछ दिखाई नहीं देता । एक रात मेरी पत्नी जमीन में लेटी हुई थी। उसी समय कोई जहरीला सांप आया और पैर में काट गया। अंधेरे की वजह से हमें कुछ पता ही नहीं चला। जब उसके मुंह से झाग निकलने लगा। तब हम घबरा गए और जसरा अस्पताल ले गए। डॉक्टर ने बताया कि अगर कुछ घंटे पहले पहुंच जाते तो जान बच सकती थी।
हमारे यहां आये दिन इस तरह से घटनाएं होती हैं जिनके पास पैसे हैं। वे छोटे-छोटे सौर लाइट खरीदकर कुछ घंटे के लिए घर रोशन कर लेते हैं। हमारे घर में कोई कमाने वाला नहीं है इसलिए हम ऐसा भी नहीं कर सकते। रात को कुछ दिखाई नहीं देता न ज़मीन, न दीवार,न ही कुछ. इस गांव में लाइट की सबसे ज़्यादा जरूरत है।
अंधेरे में बनाना पड़ता है खाना
बिहरिया पुरवा की सुमित्रा देवी का कहना है कि अंधेरा उनकी जिंदगी का परमानेंट हिस्सा बन चुका है। रात में खाना बनाते हैं तो चूल्हे की रोशनी ही एकमात्र सहारा होती है। जंगल से लकड़ी तोड़कर लाते हैं। उसी से चूल्हा जलाते हैं और उसी उजाले में किसी तरह खाना बनाते हैं। अपने लिए तो जैसे-तैसे बना लेते हैं लेकिन जब मेहमान आ जाते हैं तब बड़ी शर्मिंदगी उठानी पड़ती है। अंधेरे में थाली परोसना भी मुश्किल हो जाता है। लॉकडाउन के समय का जब समय था उस समय भी सब लोग टीवी और मोबाइल पर न्यूज़ देख रहे थे। पर हमारे यहां तो बिजली ही नहीं थी। न मोबाइल चार्ज कर सकते थे। न टीवी देख सकते थे। जब उनके परिवार के लोग बाहर प्रदेशों में काम करते हैं। तब फोन की जरूरत और ज्यादा होती है। हम दूसरे गांव जाकर फोन चार्ज करवाते हैं। जब कोई शादी होती है, तब दहेज में पंखा, टीवी, कूलर आता है, लेकिन वह सब बेकार पड़ा रहता है बिना बिजली के।
शादी-ब्याह में भी अंधेरा उनका पीछा नहीं छोड़ता। लड़के की बारात जब निकलती है तो अंधेरे में ही जाती है। लड़की की बारात आती है तो एक दिन के लिए जनरेटर किराए पर ले लेते हैं लेकिन शादी के बाकी रस्म तो कई दिन चलते हैं उसमें फिर अंधेरे में ही काम करना पड़ता है। हर चुनाव में गांववाले बिजली की मांग करते हैं। नेता आश्वासन देते हैं कि व्यवस्था हो जाएगी लेकिन फिर कोई नहीं आता।
एप्लीकेशन देते हैं हर साल
बिहरिया गांव की ग्राम प्रधान लक्ष्मी सिंह बताती हैं कि उन्होंने अपने स्तर पर कई बार प्रयास किए लेकिन अब तक कोई ठोस परिणाम नहीं मिला। हमारे गांव में तीन पुरवा हैं और तीनों आज भी अंधेरे में हैं। जब प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना के तहत बिजली के खंभे और तार लग रहे थे। उस समय भी मैंने जेई और एसडीओ को कई बार आवेदन दिया पर हमारे गांव पर ध्यान नहीं दिया गया। हर साल बिजली विभाग में आवेदन दिया है। मैं जब से प्रधान बनी हूं तब से लगातार प्रयास कर रही हूं लेकिन अभी तक विभाग से कोई ठोस जवाब नहीं मिला।
अब कोई पुरवा अंधेरे में नहीं रहेगा
बिजली विभाग के एसडीओ अरुण सिंह ने बताया कि बिहरिया जैसे कई गांव सौभाग्य योजना के दौरान बिजली से वंचित रह गए थे। उन्होंने बताया जब सौभाग्य योजना के तहत खंभे और तार लगाए जा रहे थे उस समय मेरी यहां नियुक्ति नहीं थी। अगर मैं उस वक्त होता तो कोशिश करता कि कोई गांव छूटने न पाए। वह हाल ही में एसडीओ के पद पर नियुक्त हुए हैं। उनका कहना है कि ऐसे सभी गांवों और मजरे जहां अब तक बिजली नहीं पहुंची है उन्हें चिह्नित किया जाएगा। अगर कोई नई योजना आती है तो सबसे पहले इन्हीं क्षेत्रों पर ध्यान दिया जायेगा।
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