छत्तीसगढ़ के रहने वाले रामबहोरन कहती हैं, “सबसे बड़ी समस्या शौचालय की है। हमारी दो बेटियाँ हैं, जब वे शौच के लिए बाहर जाती हैं तो हमेशा डर बना रहता है। हम न किसी को जानते हैं, न पहचानते हैं। ऐसे में उनके साथ कोई कुछ हों जाए या डर हमेशा बना रहता है।”
रिपोर्ट – सुनीता, लेखन – सुचित्रा
प्रयागराज के घूरपुर इलाके में कई ईंट भट्ठों पर लगभग 150 मजदूर काम कर रहे हैं जिनमें महिलाएं और पुरुष दोनों शामिल हैं। इन भट्ठों पर शौचालय जैसी बुनियादी सुविधा नहीं है, जिससे महिलाएं मजबूरी में खुले में शौच के लिए जाती हैं। यह न सिर्फ असुविधा, बल्कि उनकी इज़्ज़त और सुरक्षा के लिए भी खतरा बन चुका है। इन मज़दूरों में अधिकतर छत्तीसगढ़, झारखंड और यूपी के दूरदराज गांवों से आए मजदूर हैं, जो परिवार सहित यहाँ काम करते हैं।
छत्तीसगढ़ की रहने वाली ललिता देवी बताती हैं, कि अगर दिन में पेट खराब हो जाए तो बैठने की भी जगह नहीं मिलती। भट्ठे हाईवे के पास हैं इसलिए कहीं जाना भी मुश्किल हो जाता है। छोटे बच्चे तो किसी तरह काम चला लेते हैं, लेकिन बड़ी उम्र की लड़कियों और महिलाओं को सबसे ज्यादा दिक्कत होती है।
छत्तीसगढ़ के रहने वाले रामबहोरन जो पिछले चार महीने से अपनी पत्नी और दो बेटियों के साथ यहां ईंट पथाई का काम कर रहे हैं। उनका कहना है कि यहां पर शौचालय और नहाने सुविधा नहीं मिली है। हम लोगों को रहने के लिए एक छोटी-सी झोपड़ी और खाना पकाने के लिए लकड़ी तो मिल जाती है। राशन भी भट्ठा मालिक दिलवा देते हैं, लेकिन जब काम बंद होता है तो पूरे पैसे से कटौती कर दी जाती है।
सबसे बड़ी समस्या शौचालय की है। हमारी दो बेटियाँ हैं, जब वे शौच के लिए बाहर जाती हैं तो हमेशा डर बना रहता है। हम न किसी को जानते हैं, न पहचानते हैं। ऐसे में उनके साथ कोई कुछ हों जाए या डर हमेशा बना रहता है।
हम परिवार समेत आए हैं, ऐसे में सिर्फ काम करने वाले पुरुष ही नहीं, महिलाएं और बच्चे भी होते हैं। जिन्हें शौचालय की सुविधा सबसे ज़रूरी है। अगर कोई महिला बीमार हो जाए, तो उसके लिए सबसे ज्यादा परेशानी होती है। वह बताते हैं कि यहां अगर मज़दूर आवाज़ उठाते हैं, तो उन्हें भगा दिया जाता है इसलिए जैसे-तैसे चुपचाप काम करना पड़ता है।
घूरपुर इलाके में स्थित ईंट भट्ठों में काम करने वाली विलासपुर की रहने वाली गुलाब देवी बताती हैं, कि सरकार भले ही गांवों और सार्वजनिक जगहों पर शौचालय बनवाने का अभियान चला रही हो, लेकिन ईंट भट्ठों की ज़मीनी हकीकत कुछ अलग है।
ईंट-भट्ठा पर नहाने की सुविधा नहीं
यहां महिलाओं को नहाने और कपड़े बदलने की भी कोई कोई व्यवस्था नहीं है। एक ही झोपड़ी में पूरा परिवार रहता है, ऐसे में महिलाएं न खुले में नहा सकती हैं, न आराम से कपड़े बदल सकती हैं।
भट्ठा मालिक से कई बार शौचालय बनवाने की मांग की, लेकिन सिर्फ आश्वासन मिलता कि जल्दी बन जायेगा लेकिन अभी तक नहीं बना शौचालय
घूरपुर की रहने वाली गीता ने बताया कि वह ईंट भट्ठे पर ईंट पथाई का काम करती हैं। वह अपने परिवार के साथ रहती हैं और उनके चार छोटे बच्चे हैं। गीता बताती हैं कि भट्ठे के पास बच्चों के पढ़ने के लिए कोई स्कूल भी नहीं है।
जब बच्चे गांव में रहते हैं तो पढ़ाई करते हैं, लेकिन भट्ठे पर कुछ भी नहीं है। जब स्कूल खुलते हैं, तो बच्चों को गांव भेज देते हैं, हमारा गांव यहां से 10,15 किलोमीटर दूर है। वहां दादा-दादी के साथ रहते हैं और स्कूल जाते हैं।
भट्ठे पर बहुत गर्मी होती है। यहां तीन दीवार वाला एक कमरा बना है, लेकिन अंदर बहुत गर्मी होती है, इसलिए हम पेड़ के नीचे बैठते हैं। उनका कहना है कि सिर्फ वह ही नहीं, बल्कि कई महिलाएं ईंट उठाने और पथाई करने का काम करती है हम लोग किससे शिकायत करें कई लोग आते हैं, फोटो खींचते हैं और फिर चले जाते हैं। फिर दोबारा कोई नहीं आता न अधिकारी, न प्रशासन।
ईंट-भट्ठे मालिक ने दिया आश्वासन
ईंट-भट्ठा मालिक चिंटू उर्फ कुंवर बहादुर सिंह ने बताया कि, उनके भट्ठे पर करीब 150 मजदूर काम करते हैं। जिसमें 50 महिलाएं हैं सभी मजदूर अलग-अलग काम करते हैं जैसे – ईंट पथाई, जलाना, निकासी, जोड़ाई और ढुलाई। मजदूरों के लिए रहने के कमरे बनाए गए हैं। बिजली और खाना पकाने के लिए राशन व ईंधन भी दिया जाता है। अगर मजदूरों के बच्चे होते हैं तो उन्हें पास के स्कूल में पढ़ने भेजा भी जाता है। अभी शौचालय की व्यवस्था नहीं है, लेकिन उन्होंने वादा किया कि अगली बार शौचालय जरूर बनवाया जाएगा ।
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