सुप्रीम कोर्ट ने 31 अगस्त सोमवार को वकील और सक्रीय कार्यकर्ता प्रशांत भूषण को अदालत की अवमानना करने के जुर्म में 1 रुपए जुर्माना भरने की सज़ा सुनाई। यह जुर्माना उन्हें 15 सितंबर तक भरना होगा। अगर वह तय समय सीमा पर जुर्माने की रकम नहीं भर पाते तो उन्हें तीन महीने की जेल और साथ ही वकालत का अभ्यास करने से रोक दिया जायेगा। भूषण को 14 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट और भारत के मुख्य न्यायाधीश बोबड़े के खिलाफ अपने ट्वीट पर अदालत की अवमानना करने का दोषी पाया गया था।
अदालत ने की भूषण के ट्वीट की निंदा
अदालत ने भूषण को कड़े शब्दों में फैसला सुनाते हुए कहा कि भूषण द्वारा किए गए ट्वीट बनाये हुए तथ्यों पर आधारित थे और न्यायपालिका की नींव को अस्थिर करने वाले थे। साथ ही यह भी कहा गया कि भूषण से ऐसे आचरण की उम्मीद नहीं की गई थी, जो की अदालत में 20 साल से वकील हैं ।
अरुण मिश्रा ने इनहाउस प्रक्रिया पर ज़ोर दिया
न्यायधीश अरुण मिश्रा ने सजा के आदेश को पढ़ते हुए कहा कि ” सर्वोच्च अदालत का कहना है कि जजों के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायतों के लिए इन–हाउस प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए।“
भूषण ने ट्वीट करते हुए कहा, “मेरे वकील और वरिष्ठ सहयोगी राजीव धवन ने अवमानना के फैसले के तुरंत बाद ही 1 रुपए का योगदान कर दिया,जिसे मैंने कृतज्ञतापूर्वक स्वीकार कर लिया।“
My lawyer & senior colleague Rajiv Dhavan contributed 1 Re immediately after the contempt judgement today which I gratefully accepted pic.twitter.com/vVXmzPe4ss
— Prashant Bhushan (@pbhushan1) August 31, 2020
अदालत के फैसले के बाद भूषण ने ट्वीट करके रखी अपनी बात
कुछ समय बाद भूषण ने दिए हुए फैसले पर अपना एक विस्तृत बयान जारी किया और कहा कि “मैं अनगिनत लोगों के समर्थन के लिए आभारी हूँ।कार्यकर्ता, वकील, न्यायाधीश और साथी नागरिक जिन्होंने मुझे अड़े रहने के लिए प्रोत्साहित किया। साथ ही इस लड़ाई ने दूसरे लोगो को भी अन्याय के खिलाफ अपनी आवाज़ उठाने के लिए लोगो को मज़बूत किया।” पूरी बात यहां लिंक पर जाकर पढ़िए |
My Statement on my Contempt order today: I am grateful for the support of countless people: activists, lawyers, judges and fellow citizens who encouraged me to stand firm. I am gratified that it seems to have given strength to many people to stand up &speak out against injustice pic.twitter.com/CvfWIPl1sr
— Prashant Bhushan (@pbhushan1) August 31, 2020
भूषण द्वारा किये गए दो ट्वीट
पहला ट्वीट जिसके लिए भूषण को दोषी ठहराया गया था। भूषण ने उच्च न्यायालय द्वारा पिछले छह सालों में जो भी काम किया था, उसकी आलोचना की थी।” अदालत ने यह कहा कि भूषण ने जो भी कहा वह लोकतंत्र के विनाश की ओर इशारा करता है।
भूषण ने अपने दूसरे ट्वीट में कहा ” सुप्रीम सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बोबडे एक तरफ हार्ले डेविडसन मोटरसाइकिल पर बैठे हुए है। वहीं भाजपा का एक नेता 50 लाख की मोटरसाइकल बिना हेलमेट लगाए चला रहा है। वहीं दूसरी तरफ लॉकडाउन के नाम पर आम नागरिकों को उनके मौलिक अधिकारों से दूर रखा जा रहा है।
जब भी कोई अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाता है तो उसे किसी न किसी तरह से गतल चीज़ो में फंसाकर नीचे दबा दिया जाता है। यह कोई पहली बार नहीं है। जब भी व्यक्ति अपनी बोलने की आज़ादी का इस्तेमाल करता है, उसे आवाज़ उठाने की वजह से चुप करा दिया जाता है। ऐसे ही जब दिसम्बर 2019 में नागरिकता संशोधन कानून यानी एंटी– सीएए लागू करती है तो पूरे देश में लोग एंटी– सीएए के खिलाफ धरने पर बैठ जाते हैं। एंटी– सीएए के अनुसार हर एक व्यक्ति को अपने भारतीय होने का प्रमाण देना होगा। उसके लिए उन्हें उचित दस्तावेज़ दिखाने होंगे। साथ ही जो व्यक्ति 2014 के बाद भारत आया है उसे भारत की नागरिकता नहीं दी जाएगी। ऐसा एंटी– सीएए कानून कहता है।
यूपी सरकार ने एंटी– सीएए के प्रदर्शनकारियों को भरने को कहा मुआवज़ा
यूपी के लखनऊ में एंटी– सीएए प्रदर्शनकारियों सरकार का विरोध करने और निजी सम्पत्ति को नुकसान करने के जुर्म में लाखो का मुआवज़ा भरने को कहा। वो भी सिर्फ इसलिए क्यूंकि वह अपनी आवाज़ उठा रहे थे। यूपी सरकार ने 57 लोगो पर 1.5 करोड़ रुपयों का मुआवज़ा भरने को कहा। जिसमे ऐसे लोग थे जिनके पास न अपना घर था और न ही दैनिक जीवन की चीज़ो को पूरा करने के लिए पैसे। प्रदर्शनकारियों में कुछ लोग ऐसे ज़रूर थे जो विद्रोही तरीके से विरोध कर रहे थे। ऐसे में इन लोगो पर मुआवज़ा लगाने की बजाय सरकार ने सब पर ही भरपाई करने का आदेश दे दिया।
एंटी– सीएए के खिलाफ पूरा देश मिलकर विरोध कर रहा था और सरकार को एंटी– सीएए कानून को वापस लेने को कह रहा था। लेकिन सरकार ने नागरिको के विरोध को नज़रअंदाज़ कर दिया और अपने फैसले पर टिकी रही, यह कहते हुए कि यह कानून नागरिको के लिए ही है।
अब हम प्रशांत भूषण की बात कर ले या फिर एंटी– सीएए लोगो की। आवाज़ उठाने की आज़ादी यहां सरकार अपने अनुसार तय करती है। जो सरकार के हित में बात करे, उसके द्वारा लिए गए फैसलों का साथ दे , उसकी आज़ादी की स्वतंत्रता बनी रहती है। अगर वहीं लोग जब असल मायने में अपनी स्वतंत्रता का इस्तेमाल करते है तो उनसे उनके अधिकारों का हनन कर लिया जाता है। सज़ा दी जाती है और अवमानना करने का मुआवज़ा लगाया जाता है। देश में अन्याय के खिलाफ अपनी आवाज़ उठाने वाले लोग , सरकार और अदालत के लिए बस उनके विरोधी बनकर रह गए है।