खबर लहरिया Blog सत्ता की ताकत से बना मुख्तार अंसारी | Mukhtar Ansari

सत्ता की ताकत से बना मुख्तार अंसारी | Mukhtar Ansari

मुख्तार अंसारी के माफिया से बने राजनेता के इस पूरे सफर को देखा जाए तो इसमें सत्ता व ताकत हमेशा उसके साथ रही। यहां तक कि 60 से ऊपर आपराधिक मामलों के दर्ज़ होने के बाद भी उसे लगातार आगे बढ़ने व खुद को बचाने के लिए मौके मिलते गए। बार-बार उससे जुड़े मामलों को लेकर सुनवाई तो हुई लेकिन उतनी ही बार बल्कि उससे ज़्यादा बार नेता के रूप में उसे और उभरने का मौका मिला।

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                                                          मुख्तार अंसारी की तस्वीर ( फोटो – पीटीआई )

सत्ता,सुविधा,पहुंच व समाज में आर्थिक मज़बूती से जन्म हुआ मुख्तार अंसारी का, माफिया से बने राजनेता का। वह राजेनता जिसका इतना दबदबा रहा कि अब उसकी मौत के बाद भी उसके नाम पर राजनीति खेली जा रही है।

63 साल की उम्र में यूपी के बाँदा जिले में 28 मार्च 2024 को रानी दुर्गावती कॉलेज में दिल का दौरा पड़ने से मुख्तार अंसारी की मौत हो गई। जून 30,1963 को यूपी में जन्मे मुख़्तार अंसारी भारतीय राजनीति में जाने-माने नेता रहे जिसकी राजनीति व क्राइम का सिलसिला 28 मार्च 2024 को अंततः खत्म हुआ।

आज यह नाम पूरे यूपी में फिर से गूंज रहा है। इस गूंज व नाम के पहचान की वजह है उसके द्वारा किये गए अनगिनत अपराध जिसकी उसने आज तक कभी पूरी सज़ा नहीं काटी। ऐसा इसलिए क्योंकि उसके पास परिवार से मिली हुई सत्ता व मज़बूती की ताकत थी। वह ताकत जिसने उसे कानून से भी बचाया और अपराधों के परिणामों से भी। वह परिणाम जो संघीन अपराधों के मामलों में कठिन होने चाहिए, वह अंसारी के लिए सुविधाजनक थे।

अंसारी का संबंध समाज में एक प्रमुख व मज़बूत परिवार से रहा। दादा मुख़्तार अहमद अंसारी पूर्व में इंडियन नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष थे। वहीं नाना भारतीय सेना में ब्रिगेडियर थे।

माता व पिता, दोनों के ही तरफ से पारिवारिक व सामाजिक तौर पर अंसारी को ताकत मिली हुई थी। अंसारी ने पीढ़ी से मिली ताकत का इस्तेमाल समाज में क्राइम करने में लगाया। इस ताकत ने जहां अंसारी को अपराध करने में मदद की, इसी ताकत ने उसे अपराधों से बचाने का भी काम किया क्योंकि समाज ताकत का भोगी है। ताकत जहां, समाज वहां, अधिकतर तौर पर।

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क्राइम की शुरुआत

अंसारी के आपराधिक दौर का सिलसिला 80 व 90 के दशक में शुरू हुआ, मुख्यतः मऊ, गाज़ीपुर, वाराणसी व जौनपुर से। वहीं 1995 में बनारस हिंदू युनिवर्सिटी में छात्र संघ के ज़रिये अंसारी ने अपने कदम राजनीति में रखे।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, साल 1990 के दशक के अंत तक अंसारी ने पूर्वांचल में संगठित अपराध के रूप में अपना अच्छा-खासा नाम बना लिया था। कॉन्ट्रेक्ट व्यवसायों को लेकर अपने प्रतिद्वंद्वी गैंग के साथ झगड़ों व हिंसा के कार्यों में वह संलग्न था।

अंसारी के आपराधिक कार्यों ने उसके राजनीतिक करियर को उछाल देने का काम किया। वह पूर्वांचल में एक माफिया से राजनेता बन चुका था जिसे कोई हरा नहीं सकता था। आरोप के अनुसार, यह तब हुआ जब उसने अपने प्रतिद्वंद्वी बृजेश सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी।

इसके बाद मुख्तार अंसारी व उसका भाई अफ़ज़ल अंसारी साल 2007 में मायावती की पार्टी बहुजन समाज पार्टी से मिल गए। जानकारी के अनुसार, यहां बसपा प्रमुख मायावती ने अंसारी को ‘गरीबों के मसीहा’ के रूप में चित्रित किया।

इसके बाद अंसारी ने साल 2009 में बसपा की टिकट से लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन बीजेपी के मुरली मनोहर जोशी से उसे हार का सामना करना पड़ा।

अंसारी के आपराधिक कार्यों ने जहां उसे राजनीति में आगे बढ़ाया तो कई बार उसके अनगिनत क्राइम उसके सामने बाधा बनकर भी खड़े हुए। इसका परिणाम यह हुआ कि साल 2010 में दोनों भाइयों को उनके आपराधिक कामों की वजह से पार्टी से निकाल दिया गया। इसका भी अंसारी के राजनीतिक करियर पर कुछ खासा असर नहीं हुआ।

पार्टी से निकाले जाने के बाद दोनों भाइयों ने मिलकर साल 2010 में ही अपनी एक पार्टी बनाई, जिसका नाम रखा गया (Quami Ekta Dal) ‘कौमी एकता दल”।

इसके बाद मुख़्तार अंसारी ने साल 2014 में वाराणसी से नरेंद्र मोदी के खिलाफ लोकसभा चुनाव में उतरने का सोचा लेकिन फिर अपने फैसले को वापस ले लिया।

26 जनवरी 2016 को अंसारी फिर से बसपा में शामिल हो गया वह भी साल 2017 में होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव से ठीक पहले। यहां उसे जीत भी मिली। बसपा के प्रत्याशी के तौर पर उसने मऊ विधानसभा की सीट जीती।

मुख्तार अंसारी से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें

– 1952 के बाद से उत्तर प्रदेश के मऊ निर्वाचन क्षेत्र से कोई भी लगातार दूसरी बार नहीं जीता है। वहीं मुख्तार अंसारी ने 1996 से लगातार पांच बार सीट इस सीट से जीत हासिल की और अपना दबदबा बनाया। इसमें दो जीत बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार के रूप में भी है। अंसारी ने आखिरी बार 2017 में विधानसभा चुनाव लड़ा था।

– अलग-अलग आपराधिक मामलों में 2005 से जेल में बंद मुख्तार अंसारी को अदालती लड़ाई के बाद उत्तर प्रदेश सरकार उसे पंजाब से बांदा जेल लेकर आई थी। बता दें, मुख़्तार अंसारी को फ़िरौती के मामले में साल 2019 से पंजाब की रूपनगर जेल में रखा गया था। साल 2021 में उसे उत्तर प्रदेश की पुलिस बंदा लेकर आई।

– गैंगस्टर से नेता बने अंसारी के खिलाफ 60 से अधिक आपराधिक मामले लंबित थे। उत्तर प्रदेश की अलग-अलग अदालतों द्वारा सितंबर 2022 से आठ मामलों में उसे सजा सुनाई गई थी।

– अप्रैल 2023 में, मुख्तार अंसारी को भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के लिए दोषी ठहराया गया और 10 साल कैद की सजा सुनाई गई। 1990 में हथियार लाइसेंस प्राप्त करने के लिए जाली दस्तावेजों के उपयोग से संबंधित एक मामले में भी अंसारी को 13 मार्च, 2024 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।

– मऊ के रहने वाले माफिया अंसारी का ग़ाज़ीपुर और वाराणसी जिलों में भी अच्छा प्रभाव माना जाता था। अंसारी का नाम पिछले साल उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा जारी 66 गैंगस्टरों की सूची में भी था।

बता दें, फिलहाल इस मामले में मजिस्ट्रियल जांच का आदेश दिया गया है। अंसारी के बेटे द्वारा यह आरोप लगाया गया था कि जेल में उसके पिता के खाने में ज़हर मिलाया गया था। इससे पहले भी मारने को लेकर धमकी दी गई थी।

अतः, मुख्तार अंसारी के माफिया से बने राजनेता के इस पूरे सफर को देखा जाए तो इसमें सत्ता व ताकत हमेशा उसके साथ रही। यहां तक कि 60 से ऊपर आपराधिक मामलों के दर्ज़ होने के बाद भी उसे लगातार आगे बढ़ने व खुद को बचाने के लिए मौके मिलते गए। बार-बार उससे जुड़े मामलों को लेकर सुनवाई तो हुई लेकिन उतनी ही बार बल्कि उससे ज़्यादा बार नेता के रूप में उसे और उभरने का मौका मिला। उसके पास हमेशा खुद को किसी भी अपराध से बचा पाने के लिए सुविधा रही। आज उसकी मौत के बाद भी उसके नाम की सत्ता समाज में देखी जा सकती है।

 

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