खबर लहरिया Blog मंदिर- मस्जिद की आड़ में धर्म को लेकर राजनीति

मंदिर- मस्जिद की आड़ में धर्म को लेकर राजनीति

कानपुर हो या इलाहाबाद या कोलकाता—इन जगहों पर जो हुआ वो आस्था नहीं, हुड़दंग था। और ये हुड़दंग अब पवित्रता के नाम पर फैलाया जा रहा है। सोचिए, अगर कोई ऐसा ही काम मंदिर में करता, तो कितने चैनलों पर दिनभर चीख-चीखकर इसे ‘तोड़फोड़’ और ‘अपमान’ बताया जाता।

रामनवमी के अवसर पर प्रयागराज में दरगाह पर भगवा झंडा लहराते हुए तीन लोगों की तस्वीर (फोटो साभार: सोशल मीडिया)

लेखन – मीरा देवी 

कभी सोचा है आपने कि मंदिर-मस्जिद से पहले कौन था? इंसान, लेकिन आज इंसान पीछे छूट गया है, और धर्म सत्ता का हथियार बन बैठा है। जब नमाज़ को शक की निगाह से देखा जाए और जुलूस को उत्सव कहा जाए तो समझ लीजिए कि हम धर्म नहीं, सत्ता का खेल देख रहे हैं। इस आर्टिकल के माध्यम से आज हम उस खेल का पर्दाफाश करेंगे, सवाल पूछेंगे और ज़मीर को झकझोरेंगे।

सत्ता में बैठे लोग आज कल इतना धार्मिक हो गए हैं कि धर्म अब राजनीति का सबसे चमकदार औजार बन चुका है। ये धर्म सिर्फ एक ही धर्म है ..हिंदू धर्म। उसे भी वही हिंदू धर्म, जो सत्ता की सुविधा के मुताबिक होता है। जो भी इस दायरे में फिट बैठता है, उसे खुली छूट है। ये ऐसा दौर है जब कानून की किताब को धार्मिक पहचान देखकर पलटा जाता है और संविधान की बात करने वाला ताने सुनता है कि तुम्हें ‘इतनी तकलीफ क्यों हो रही है?’

ईद पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुसलमानों को छत, गलियों, सड़कों पर नमाज पढ़ने से रोक देते हैं। ये बात नियम और कानून के नाम पर कही जाती है लेकिन जब रामनवमी का जुलूस निकलता है तो वही नियम और कानून लंबी छुट्टी पर चले जाते हैं। कानफोड़ू डीजे, लहराती तलवारे, बाइक सवार लहराते भगवा झंडे लेकिन किसी को कुछ नहीं दिखता। एक साधन पर 15, 15 बंधे डीजे जिन्होंने बुजुर्गों और मरीजों के दिल कंपा दिए। बिल्डिंगे कांप उठी, डीजे के आगे आगे रंग गुलाल उन्माद में नाचती भीड़, मतलब कि हुड़दंग का रेला। लेकिन मजाल है कोई रोक ले, चू भी कर ले। पुलिस नहीं चाहे पुलिस के सुपर डुपर सीनियर काहे न आ जाए। अगर इतना ही कानून और पुलिस का डर होता हो मस्जिद और मजारों में जो भगवा झंडा लहराया गया तो ये हिम्मत न आ पाती।

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रामनवमी के दिन शोभायात्रा के दौरान प्रयागराज के सिकंदरा इलाके में सालार मसूद गाजी की दरगाह पर हिंदू संगठनों के कार्यकर्ताओं ने चढ़कर भगवा झंडा फहराया और जय श्री राम के नारे लगाए। इस घटना के कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए। उधर कानपुर के रावतपुर में दोपहर करीब 2 बजे जुलूस से पहले पुलिस द्वारा डीजे जब्त करने पर विवाद हुआ, सड़क जाम और नारेबाज़ी हुई जबकि शाम 6 बजे नई सड़क क्षेत्र में पथराव की अफवाह फैली जिसे पुलिस ने निराधार बताया। इधर कोलकाता में भी रामनवमी जुलूस पर भारी सुरक्षा तैनात रही। सरकार ने जुलूसों की अनुमति नहीं दी थी पर भाजपा और टीएमसी ने शोभा यात्राएं निकालीं।

जब मस्जिदों और मजारों पर चढ़कर भगवा झंडा लहराया जाता है तो ये किस संविधान की इजाजत है? कानपुर हो या इलाहाबाद या कोलकाता—इन जगहों पर जो हुआ वो आस्था नहीं, हुड़दंग था। और ये हुड़दंग अब पवित्रता के नाम पर फैलाया जा रहा है। सोचिए, अगर कोई ऐसा ही काम मंदिर में करता, तो कितने चैनलों पर दिनभर चीख-चीखकर इसे ‘तोड़फोड़’ और ‘अपमान’ बताया जाता। हद ये है कि जो लोग खुलेआम नफरत फैला रहे हैं उन्हें सजा नहीं मिलती बल्कि प्लेटफॉर्म मिल रहा है। ऐसा लगता है जैसे नफरत फैलाना अब एक सरकारी ठेका है जिसे कुछ खास लोग जीत चुके हैं। ये लोग माहौल को जानबूझकर भड़काते हैं और फिर हाथ झाड़कर कहते हैं कि हम तो राम और बजरंग के भक्त हैं। भक्त होना अब इस देश में अपराधों को ढकने की सबसे आसान ढाल बन गया है।

अगर आप ये सब देखकर भी चुप हैं या फिर जो बोल रहा है उसे ही चुप करा रहे हैं तो समझ लीजिए कि ये चुप्पी एक दिन आपकी अगली पीढ़ी के गले की फांस बन सकती है। उन्हें बताने के लिए आपके पास कोई जवाब नहीं होगा कि आपने कब और क्यों चुप्पी साध ली थी। आज अगर आपने सवाल नहीं पूछा तो कल सवाल पूछने का हक भी छिन सकता है और तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।

इसलिए अब वक्त है कि हम सब धर्म की आड़ में हो रही इस राजनीति को पहचानें। कोई मंदिर पर हमला करे या मस्जिद पर चढ़ाई, तकलीफ इंसानियत को होती है। और इंसानियत, न हिंदू होती है न मुसलमान। अगर आज आपने आंखें मूंद लीं तो कल आपकी अगली पीढ़ी मंदिरों में भगवान और मस्जिदों में खुदा से नहीं, आपसे सवाल करेगी। अब भी वक्त है कि धर्म के नाम पर बंटने से पहले देश के नाम पर जुड़िए। वरना इतिहास गवाह बनेगा कि नफरत की आग को खामोशी से लिखने दिया।

 

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