चने की खेती आमतौर पर अक्टूबर-नवंबर में बोई जाती है। बुवाई के 15-20 दिन बाद खेत में चने की भाजी दिखाई देने लगती है।
“समधी तेरी घोड़ी चने के खेत में, आपने ये गाना तो सूना ही होगा”
आज हम आपको बुंदेलखंड की महिलाओं की एक दिलचस्प कहानी बताते हैं। अगर आपने यह कहानी पढ़ ली, तो यकीनन एक बार चने के खेत में महिलाओं के झुंड के साथ जाने का मन जरूर करेगा।
सर्दियों के इस कड़क मौसम में बुंदेलखंड में चने की भाजी (साग) हर खेत में तैयार हो चुकी है। लोग इसे अलग-अलग तरीकों से खाते हैं। नमक, हरी मिर्च, हरी धनिया और लहसुन की चटनी बनाकर इसे खेत में ही तोड़कर खाने का आनंद लेते हैं। इस ताजगी भरे स्वाद को लिखते हुए भी मेरे मुंह में पानी आ रहा है। चने की भाजी का साग बनाकर रोटी और चावल के साथ खाने का स्वाद तो किसी छप्पन भोग से भी अधिक लगता है।
चने की खेती का समय और महिलाएं
चने की खेती आमतौर पर अक्टूबर-नवंबर में बोई जाती है। बुवाई के 15-20 दिन बाद खेत में चने की भाजी दिखाई देने लगती है। वैसे तो घर की महिलाओं के लिए बिना काम के बाहर जाना मुश्किल होता है। बाज़ार जाने या कोई छोटा-मोटा काम करने के लिए भी पुरुष साथ जाते हैं या खुद ही काम कर आते हैं। महिलाओं को बाहर जाने की अनुमति बहुत कम मिलती है। लेकिन चने की भाजी तैयार होते ही उनके लिए यह समय मस्ती और आजादी का प्रतीक बन जाता है।
चने के खेतों में आजादी और हंसी-मजाक
खेतों में भाजी तोड़ने के बहाने महिलाएं और लड़कियां इकट्ठा होकर बाहर जाती हैं। सुनीता, जो यहां की एक महिला है, बताती हैं कि भाजी तोड़ने के लिए कोई उन्हें नहीं रोकता क्योंकि इससे सब्जी का पैसा बचता है और खाने का स्वाद भी बदल जाता है। इस बहाने उन्हें कुछ महीनों के लिए खुलकर हंसने-बोलने और सहेलियों के साथ गप्पें मारने का समय मिल जाता है।
खेतों में महिलाओं का दिन
खेत दूर जंगल क्षेत्र में होते हैं, इसलिए अकेले जाने में डर लगता है। इस वजह से मोहल्ले की कई महिलाएं इकट्ठा होकर योजनाएं बनाती हैं और अपने-अपने घरों में बताती हैं कि चाची खेत भाजी तोड़ने जा रही हैं या भाभी जा रही हैं, हम भी उनके साथ चले जाएंगे। घरवाले तुरंत इजाजत दे देते हैं। इसके बाद महिलाएं जल्दी-जल्दी घर के सारे काम खत्म करके खेतों के लिए निकल पड़ती हैं।
घूंघट से आज़ादी का एहसास
आज भी ग्रामीण इलाकों में महिलाओं को घूँघट में रखा जाता है, लेकिन यही एक जरिए होता है जहां घूँघट हटा वे खुले आसमान और अपनी आज़ादी को महसूस कर सकती हैं। खेत तक पहुंचने के लिए कई किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है, लेकिन यह दूरी भी पलक झपकते ही खत्म ही खत्म हो जाती है। साथ में होने की वजह से घूंघट हट जाता है, और वे बेफिक्र होकर दौड़ती हैं, खेलती हैं और आराम करती हैं। इस दौरान उम्र या रुतबे का कोई बंधन नहीं होता, सब एक-दूसरे की कहानियां सुनती और अपने सुख-दुख साझा करती हैं।
वे दौड़ लगाती हैं और एक-दूसरे के साथ पकड़म-पकड़ाई जैसा खेल भी खेलती हैं। जहां थकान महसूस होती है, वे वहीं बैठकर पैर फैला लेती हैं। इस समूह में कोई बड़ा या छोटा नहीं होता। सब एक-दूसरे की तरह, अपने-अपने गांव, शहर और परिवार को छोड़कर आई महिलाएं होती हैं।
किसानों और महिलाओं के बीच रोचक किस्से
सुनीता बताती हैं कि जब महिलाएं एक साथ भाजी तोड़ने खेत जाती हैं, तो किसान उन्हें रोकने की कोशिश करते हैं। लेकिन महिलाएं भी कम नहीं होतीं। वे रात में चुपके से खेतों में जाकर भाजी तोड़ लाती हैं। उनके लिए यह समय रोजमर्रा की जिम्मेदारियों से मुक्त होकर अपनी बात साझा करने और आनंद लेने का होता है।
जंगल और बेर का आनंद
सर्दियों में महिलाएं और बच्चे जंगल में जाकर बेर, बरारी और अन्य जंगली फलों का आनंद लेते हैं। नमक, मिर्च, और लहसुन की चटनी के साथ बैर का खट्टा-मीठा स्वाद हर किसी को लुभाता है। यह अनुभव शहर की किसी पार्टी से कम नहीं होता।
चने की भाजी का अनोखा स्वाद
चना की भाजी का स्वाद हल्का खट्टा होता है और यह स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है। लोग इसे चटनी के साथ खाते हैं और इसका साग बनाते हैं। गांव की महिलाएं इस मौसम में जंगल और खेतों में मिलकर घूमने और खाने का मजा लेती हैं।
जैसे शहरों में लोग पार्टी मनाने पहाड़ों पर जाते हैं, वैसे ही गांव की महिलाएं और बच्चे खेतों और जंगलों में जाकर खुश हो जाती हैं। चने की भाजी के बहाने यह एक ऐसा समय होता है, जब महिलाएं अपनी दबी भावनाओं को व्यक्त कर पाती हैं और खुलकर जीती हैं। यह न केवल उनका मनोरंजन है, बल्कि एक तरह की आजादी का अनुभव भी है।
रिपोर्ट – सुनीता, लेखन – सुनीता प्रजापति
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