खबर लहरिया Blog छत्तीसगढ़ का सुहाना सफर

छत्तीसगढ़ का सुहाना सफर

छत्तीसगढ़ की संस्कृति के बारे में बात करें तो बात शायद खत्म ना हो क्योंकि वहां का कल्चर बहुत ही अच्छा है और वहां की महिलाओं से तो आप बहुत ही ज्यादा प्रभावित होंगे और वहां की भाषा तो सुनने और बोलने में बहुत प्यारी लगती है।

                                                                                                 साइकिल चलाती महिला की तस्वीर ( फोटो – खबर लहरिया)

मैं कुमकुम यादव, अयोध्या से हूँ और खबर लहरिया में सीनियर रिपोर्टर के पद पर काम करती हूँ। छत्तीसगढ़ कवरेज के लिए यह मेरी दूसरी यात्रा थी। ऐसे तो वहां मैं काम के लिए गई थी लेकिन रिपोर्टिंग के साथ एक अलग अनुभव भी होता है जो हमारे जीवन में एक नया अध्याय जोड़ता है। वहां की भाषा, वहां की खूबसूरती, वहां का पहनावा और भी बहुत कुछ जो छत्तीसगढ़ को बाकि राज्यों से अलग करता है और जो मुझे फिर से यहां आने के लिए मजबूर करेगा।

छत्तीसगढ़ की संस्कृति के बारे में बात करें तो बात शायद खत्म ना हो क्योंकि वहां का कल्चर बहुत ही अच्छा है और वहां की महिलाओं से तो आप बहुत ही ज्यादा प्रभावित होंगे और वहां की भाषा तो सुनने और बोलने में बहुत प्यारी लगती है। जैसे अगर मुझे अपना नाम आपको छत्तीसगढ़ी भाषा में बताना हो तो मैं ऐसे बोलूंगी – मोर नाव कुमकुम हावे।” यहां की सड़कों पर, दफ्तरों में, होटल स्टाफ में, रिक्शा चालक, कुली अधिकतर महिलाएं ही दिखेंगी जोकि बहुत गर्व की बात है। यहां की महिलाएं आत्मनिर्भर है और घर और बाहर के कामों की जिम्मेदारी को बखूबी निभाती हैं।

आपको छत्तीसगढ़ रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म पर पहुंचते ही कामकाजी महिलाएं दिखने लगेंगी। भीड़ को चीरती हुई कई महिलाएं (कुली) जो अपना हाथ आपके सामान का बोझ हल्का करने के लिए आगे बढ़ाती हैं और कुछ महिलाएं स्टेशन के बाहर ई-रिक्शा चालक ई-रिक्शा लिए खड़ी दिखाई देती हैं जो आपको आपकी मंजिल तक सुरक्षित पहुंचाने का काम करती हैं। यहां के अधिकतर होटल में सभी कर्मचारी महिलाएं होती हैं ऐसा बहुत कम देखने को मिलता है।

आत्मनिर्भर महिलाएं

गांव की सारी महिलाएं मनरेगा में काम करने के लिए जाती हैं और फिर 12:30 बजे वापस आकर घर का पूरा काम करती हैं। कामकाजी महिलाएं सिर्फ बड़े-बड़े शहरों में देखने को नहीं मिलती हैं। महिलाओं को भी इस बढ़ती महंगाई में खुद के भविष्य और बच्चों के अच्छे भविष्य के लिए दोहरी शिफ्ट करनी पड़ती है। फैक्ट्री में काम करते देख और साड़ी पहने कपड़े से ढक कर साइकिल चलाते हुए देखकर काफी अच्छा लगता है और अगर आप महिला हैं तो काफी गर्व भी महसूस होता है। यहां पर महिलाओं ने खुद बोला कि महिलाएं घर का भी काम करती हैं और बाहर का काम भी। चाहे वह गांव की हो या शहरी क्षेत्र की महिलाएं वह अपने पति पर निर्भर नहीं रहती हैं। पतियों ने भी यह बात मानी कि हमारी पत्नियां घर की जिम्मेदारी के साथ-साथ बाहर भी काम करती हैं और उनका साथ देती है। सब जगह महिलाएं अधिक दिखती हैं और पुरुष कम। जब हम लोगों ने महिलाओं से पूछा कि आप के पति क्या करते हैं? महिलाओं ने हंस कर जवाब दिया – “पति तो बेवड़े हैं। पीकर पड़े रहते हैं हम ही सब काम करते हैं।”

स्वास्थ पर ध्यान देती है महिलाएं

महिलाओं पर काम का इतना बोझ होता है कि उन्हें खुद के स्वास्थ की फिक्र नहीं होती है लेकिन यहां की महिलाएं काम के साथ-साथ अपने स्वास्थ्य का बखूबी ख्याल रखती हैं। वह समय पर अपने सभी काम पूरे करती हैं जैसे समय पर खाना बनाना, समय पर खाना और काम पर साथ में खाना ले जाना वे कभी नहीं भूलती।

छत्तीसगढ़ के सफर में काफी कुछ अलग देखने को मिला जैसे यहां पर उत्तर प्रदेश में जिस तरह की घूरने वाली आंखे मैंने देखी है वो ऑंखें मुझे यहां नहीं मिली। वहां कई लड़के घूरते हैं, भद्दे कमेंट करते हैं। यहां मैंने देखा लोग एक दूसरे का बहुत सम्मान करते हैं बस, ऑटो में आपको असहज महसूस नहीं करवाते। सबसे अच्छी बात गांव के लोग अपने गांव का जन्मदिन मनाते हैं। आपने सुना होगा कि लोग अपना जन्मदिन मनाते हैं, अपने जानवरों का जन्मदिन मनाते हैं, चाहे वह कुत्ते, बिल्ली हो लेकिन छत्तीसगढ़ राज्य के दुर्ग जिला का ऐसा गांव नेवादा जहां पर लोग अपने गांव का जन्म उत्सव मनाते हैं। उन्होंने बताया कि इस दिन हम पर्यावरण को बचाने के लिए अपने पूर्वजों के नाम पेड़ लगाते हैं।

 

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