पितृपक्ष का समय आते ही लोग अपने पूर्वजों को याद करते हैं, श्राद्ध करते हैं और पितरों को विदाई देते हैं। लेकिन क्या हम उन माता-पिता और बुजुर्गों के लिए समय निकालते हैं जो हमारे सामने हैं? घर-घर में पत्तल सजती है, महिलाएं कढ़ाई बनाती हैं, और पुरुष नदी-तालाबों में जल अर्पण करते हैं। कहा जाता है कि इन दिनों पितरों की आत्माएं धरती पर आती हैं। लेकिन ज़रा ठहर कर सोचिए… जिन्हें हम देख नहीं सकते उनके लिए हम इतनी श्रद्धा रखते हैं, पर जो ज़िंदा पूर्वज, यानी हमारे माता-पिता हमारे सामने हैं, उनके लिए हमारे पास समय क्यों नहीं?
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