खबर लहरिया Blog पटना के विशू, पीरियड (मासिक धर्म) को लेकर फैला रहे जागरूकता, ग्रामीण क्षेत्रों से की शुरुआत

पटना के विशू, पीरियड (मासिक धर्म) को लेकर फैला रहे जागरूकता, ग्रामीण क्षेत्रों से की शुरुआत

“मैं पीरियड के बारे में पहले से थोड़ा बहुत जानता था क्योंकि मेरी मम्मा को पीरियड होने पर सेनेटरी ला करके दिया था। मेरी भाभी को जब डिलीवरी होनी थी तो उस समय भी ब्लडिंग जब होता था, तो मैं ही सेनेटरी पैड देता था।”परिवार से ही हिम्मत आती है और लोगों की समझ बनती हैं कि ये कोई गलत चीज नहीं है। यदि हर कोई इसके बारे में खुलकर बात करें चाहे लड़का हो या लड़की तो काफी हद तक समाज में सुधार आ सकता है। लड़के को भी शुरू से ही इनसब के बारे में पता होगा तो आगे जाकर वह भी अपनी होने वाली पत्नी या साथी को समझा सकता है। पीरियड में होने वाले दर्द को समझ सकता है – विशु

Patna's Vishu spreading awareness in rural areas about menstruation

                                                                                                                            ग्रामीण क्षेत्रों में मासिक धर्म को लेकर जागरूकता फैलाने की तस्वीर

रिपोर्ट – सुमन 

पीरियड, मासिक धर्म या महीना जो प्रत्येक स्त्री को 11 या 12 साल की उम्र से हर महीने आते हैं। पीरियड को लेकर बातचीत करने में अक्सर लोग हिचकिचाते हैं, चाहे वो लड़का हो या लड़की इस पर बात करना समाज में सभ्य नहीं माना जाता है। पीरियड का विषय कोई शर्म वाला विषय नहीं है जो इस पर बात न की जा सके। इसके बारे में सभी को सही जानकारी होना भी बेहद जरूरी है। महिलाएं तो इस बारे में किसी से कहने में कतराती हैं और पुरुष पर इसका बात करना समाज में निंदनीय समझा जाता है। समाज में पुरुषों को पीरियड के बारे में ज्ञान हो इसकी जरूरत नहीं समझी जाती क्योंकि ये उन्हें नहीं होता। समाज में हर चीज का ज्ञान किसी एक लिंग के लिए हो ऐसा नहीं है, इसकी जानकारी सभी को होनी चाहिए। इस तरह के कदम को पटना के एक गांव में रहने वाले विशू (35) ने उठाया। उन्होंने पीरियड (मासिक धर्म) के बारे में लोगों को बताने का फैसला लिया। इसके साथ ही उन्होंने पटना से मुंबई तक पैदल यात्रा भी की।

पीरियड के दौरान आज भी कई जगह महिलाएं कपड़े का इस्तेमाल करती हैं जबकि उन्हें सेनेटरी पैड का इस्तेमाल करना चाहिए। विशु ने अपने सफर में पीरियड के लिए नारा दिया “लाज शर्म सब छोड़ पीरियड पर बोल चुप्पी तोड़ पदयात्रा।” विशु बिहार के खगड़िया जिले के अंतर्गत आने वाले ज्वालापुर गांव के रहने वाले हैं। उन्होंने पहले पटना में झुगी बस्ती (slum) में महिलाओं व लड़कियों को पीरियड में कपड़ा इस्तेमाल न कर सेनेटरी इस्तेमाल करने के लिए जागरूक किया। इसके साथ ही कपड़ा इस्तेमाल करने से होने वाली बीमारियों के बारे में बताया।

2023 में पटना विश्वविद्यालय के जनसंख्या अनुसंधान केंद्र (PRC) द्वारा ‘बिहार के जलवायु संवेदनशील क्षेत्रों में किशोरियों में मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता’ पर एक अध्ययन किया गया। इस अध्ययन से पता चला कि बिहार में ग्रामीण इलाकों में रहने वाली करीब 40% किशोरियाँ अपने मासिक धर्म के दौरान कपड़े का इस्तेमाल करती हैं।

पीरियड से जुड़ी एक घटना ने विशु की बदली सोच

विशू बताते हैं कि उन्होंने बीए म्यूजिक से की है। उनके परिवार में मम्मी, पापा, एक बड़ा भाई और वह खुद हैं। अभी भाई की शादी हो गई है तो भाभी और उनका एक छोटा बच्चा भी है। विशु की कोई बहन नहीं है लेकिन परिवार की बहनें ही उनकी बहनें हैं। कुछ समय पहले की बात है, उनकी दूर के रिश्ते की बहन की मृत्यु गर्भाशय का कैंसर (युटेरस कैंसर) की वजह से हो गई थी जिसको सुनकर काफी दुख हुआ।

वे बताते हैं कि, “इस घटना के बाद मुझे लगा कि लोग हर चीज पर बात करते हैं लेकिन इस पर क्यों नहीं बात करते। कहीं ना कहीं मुझे भी इसकी ज्यादा जानकारी नहीं थी। फिर मैं इसके लिए डॉक्टर से, सोशल मीडिया से और किताबों के सहारे जानकारी हासिल की और फिर मैंने सोचा कि क्यों ना मैं इसकी पहल करूँ।”

लोगों के पास पैसे नहीं इसलिए करते हैं कपड़े का इस्तेमाल

वे जब रंगमंच का काम किया करते थे तो एक बार वह नाटक के लिए झुगी बस्ती में गए। उन्होंने कहा कि, “वहां पर देखा कि एक महिला सेनेटरी को लेकर के दुकान गई और बोलती हैं कि आप इसे खरीदेंगे तो कितने का लेंगे? मैंने उसको देख लिया, फिर मैंने उनसे पूछा कि आप यह बेच क्यों रही हैं? यह तो आपके ही काम का है, तो वह बोलने लगी कि हम महिलाएं हैं और यहां के जो लोग हैं हम लोग गरीब व्यक्ति हैं। हमारे पास इतने पैसे नहीं होते हैं कि हम लोग इसे खरीद पाए इसलिए हम बेच देंगे।  हम लोग कपड़ा तो इस्तेमाल करते हैं न, तो इसकी कोई जरूरत नहीं है। वैसे भी जब कोई संस्था आती है तब हमको एक बार देकर के चली जाती है, फिर तो कोई दोबारा नहीं आता है। हम इसका खर्च कहां से उठा पाएंगे और हम इसके बारे में ज्यादा जानते भी नहीं है कपड़ा इस्तेमाल करो या कुछ?”

विशु ने कहा, “इस बात को सुनकर लगा कि ये केवल एक महिला नहीं है जिसे इसकी जानकारी नहीं है। ऐसी कई महिलाएं होंगी जिन्हें इसके बारे में नहीं पता होगा। ऐसी लड़कियां जिनको पीरियड होने, गर्भ और उनसे जुड़ी हुई बीमारियों का पता ही नहीं है।”

अपनी कमाई का हिस्सा लगाते हैं इस अभियान में

“वर्ष 2022 में, पटना से मैंने लोगों को जागरूक करना शुरू किया। मैं जहां-जहां अपने काम को लेकर के जाता, वहां पर मुझे स्लम एरिया के लोग मिल जाते। उन्हें मैं पीरियड के बारे में बताता। अपने पैसों से कुछ सेनेटरी लेकर के उन्हें देता यह मैं कभी-कभी ही करता था क्योंकि संभव नहीं हो पाता था। मैंने यह काम एक साल तक ऐसे ही किया, बाद में एक टारगेट बनाया कि मेरे पास इतना पैसा है। मैं उसको किस हिसाब से खर्च करूं ? मैंने 5000 रुपए वितरण करने का फैसला लिया। मैंने सोचा कि क्यों ना मैं कुछ ऐसी जगह को देखूं जहां मैं हमेशा फ्री सेनेटरी पैड दे सकूं।”

पांच झुग्गी बस्तियों में जहां हमेशा मुफ्त देंगे सेनेटरी पैड

पटना के बुद्ध कॉलोनी से उन्होंने शुरुआत की। वहां पर महिलाओं और लड़कियों को सेनेटरी वितरित किया गया। वहां पर जाकर महिलाओं व लड़कियों को पीरियड से जुड़े हुए बीमारियों के बारे में बताया। यदि वह सेनेटरी का इस्तेमाल नहीं करते तो किस तरह की बीमारियां उन्हें हो सकती हैं। यदि इस तरह की जानकारी वह अपने बच्चों को नहीं देती हैं, तो आगे चलकर उन्हें कितनी खतरनाक बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है। सेनेटरी पैड भी इस्तेमाल कर रहे हैं तो उन्हें कितनी देर में बदलना चाहिए। धीरे-धीरे करके पांच झुग्गी बस्तियों को शामिल किया जहां वे पैड बांटते हैं। जिनके नाम हैं – बुद्ध कॉलोनी, हज भवन, चिड़ियाघर गेट नंबर दो, चितकोहरा ब्रिज, ज्ञान विज्ञान रेलवे होम इन जगहों पर जाकर महिलाओं को जागरूक कर सेनेटरी का वितरण किया है।

अभियान में आने वाली चुनौतियां

उन्होंने बताया कि, “मैंने शुरुआत की तो बहुत सारी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। जब कुछ महिलाओं और लड़कियों को सेनेटरी वितरण किया तो उसका फोटो, वीडियो बनाकर के अपने स्टेटस पर लगा दिया करता था। जिसको लेकर के मेरे परिवार के लोग मुझसे नाराज होते थे। मेरी मम्मी को लोग बोलते थे कि क्या कर रहा है आपका लड़का। लड़का हो करके इसको यही मिला है।”

सड़कों पर खड़े होकर लोगों को किया जागरूक

सेनेटरी को लेकर शुरुआत में जब पैसों की कमी हो गई थी, तो मैं एक बोर्ड पर सेनेटरी को लिख करके खड़ा हो गया। सड़कों पर खड़ा हुआ तो कुछ लोगों ने मजाक बनाया तो कुछ ने मेरी मदद की। जो मेरे लड़के और लड़कियां काफी अच्छे दोस्त थे उन्होंने मेरा साथ नहीं दिया। दोस्तों को भी मेरे इस तरह के काम पर शर्म महसूस हुई।  उन्होंने मेरा साथ तक छोड़ दिया। फिर भी मैंने हिम्मत नहीं हारी मैं खड़ा रहा। बहुत से लोगों ने मुझे पॉजिटिव भी लिया और बहुत सारी ऐसी चीजें भी बीच-बीच में होती रही जिनको मैं बात भी नहीं सकता हूं।”

परिवार ने किया सपोर्ट

“मैं पीरियड के बारे में पहले से थोड़ा बहुत जानता था क्योंकि मेरी मम्मा को पीरियड होने पर सेनेटरी ला करके दिया था। मेरी भाभी को जब डिलीवरी होनी थी तो उस समय भी ब्लडिंग जब होता था, तो मैं ही सेनेटरी पैड देता था।”

परिवार से ही हिम्मत आती है और लोगों की समझ बनती हैं कि ये कोई गलत चीज नहीं है। यदि हर कोई इसके बारे में खुलकर बात करें चाहे लड़का हो या लड़की तो काफी हद तक समाज में सुधार आ सकता है। लड़के को भी शुरू से ही इनसब के बारे में पता होगा तो आगे जाकर वह भी अपनी होने वाली पत्नी या साथी को समझा सकता है। पीरियड में होने वाले दर्द को समझ सकता है।

पटना से मुंबई तक की पदयात्रा की शुरुआत

“इन सब के बाद मेरा जब यह लक्ष्य पूरा हो गया तब मुझे लगा मुझे रुकना नहीं है आगे कई मीलों दूर तक लोगों को जागरूक करना है। उसके बाद में मुझे लगा कि इसमें मुझे पदयात्रा कर मुंबई जाना चाहिए। वहां पर मुझे नीता अंबानी से मिलना चाहिए जिससे इस विषय पर की जा सके। वह हमें दान दें ताकि हम उन महिलाओं की मदद कर सके। कुछ एक्टर से भी मिलना चाहता हूँ ताकि वे भी हमारी मदद के लिए आगे आए। सरकार भी इसके लिए कदम उठाए और उन महिलाओं की मदद करें जो पैड खरीदने में असमर्थ हैं। पीरियड के समय में उनका सम्मान करने की आवश्यकता है उनसे घृणा या दूर भागने की आवश्यकता नहीं है।”

पीरियड में सेनेटरी पैड का इस्तेमाल बहुत जरूरी है लेकिन इसके साल दर साल बढ़ते दाम से इसको खरीद पाना सच में मुश्किल होता है। हर महीने कमाई का कुछ हिस्सा पैड में जाता है इसलिए अधिकतर महिलाएं न चाहते हुए भी कपड़ों का इस्तेमाल करती हैं।

विशु से बातचीत के दौरान मुझे उन पर गर्व महसूस हुआ कि वे किस तरह से पूरे मेहनत और लगन से लड़कियों, महिलाओं के पीरियड से जुड़ी बातें करते हैं। अकेले इतनी बड़ी लड़ाई उन्होंने लड़ी एक पुरुष होकर बिना डरे, बिना शर्म किए। उन्होंने समाज की परवाह नहीं की कोई उनका साथ देगा भी की नहीं बस खुद पर भरोसा किया और अब उनके साथ बहुत लोग जुड़ गए हैं।

 

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