भारत सरकार ने यात्रियों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए हर रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड और एयरपोर्ट जैसी सार्वजनिक जगहों पर कुलियों की नियुक्ति सुनिश्चित की है। इन कुलियों की एक निर्धारित ड्रेस होती है जिससे उन्हें आसानी से पहचाना जा सकता है। यह ड्रेस कोड ही से ही हम उन्हें आसानी से पहचान सकते हैं।
रिपोर्ट – सुमन, लेखन – कुमकुम
जब हम यात्रा करते हैं और हमारे पास ज़्यादा सामान होता है या हमारे साथ कोई बुज़ुर्ग या असहाय व्यक्ति होता है तो उसे प्लेटफॉर्म या गाड़ी तक सुरक्षित पहुँचाना एक मुश्किल काम बन जाता है। ऐसे में कुली हमारी मदद के लिए मौजूद होते हैं। वे न केवल सामान उठाते हैं बल्कि यात्री को सही जगह तक पहुँचाने में भी मदद करते हैं।
लाल ड्रेस और और पगड़ी है कुली की पहचान
पटना के रेलवे स्टेशन पर करीब 80 से 100 के आसपास कुली हैं। यह वह कुली है जिनको एक लाल ड्रेस और उनके बाजू में एक कुली नंबर निर्धारित किया जाता है और सर पर वह पगड़ी या कोई साफ़ा का कपड़ा बांधते हुए नजर आते हैं जिससे आप उनकी मदद ले सकते हैं। यह ड्रेस पाना लाइसेंस पाने जितना उनके लिए एक कड़ी मेहनत होती है।
कुली स्टेशन पर यात्रियों का अनदेखा सहारा
पटना जिले के कमला नेहरू नगर में रहने वाले एक कुली कर्मी ने बताया कि वे अब अपने पिता के गुजर जाने के बाद यह काम कर रहे हैं। उनके पिता भी एक कुली थे और उन्होंने अपने बेटे को वह लाइसेंस और पहचान पत्र सौंपा जिससे यह काम करने की अनुमति मिलती है। इसके साथ ही उन्हें एक निर्धारित कपड़ा (ड्रेस) भी मिलता है जिससे लोग उन्हें पहचान पाते हैं और काम मिलना थोड़ा आसान हो जाता है।
उन्होंने बताया कि यह काम बहुत मेहनत भरा है। स्टेशन पर रोजाना ऐसे कई यात्री आते हैं जो भारी सामान के साथ उतरते हैं। सामान को एक कोने से दूसरे कोने तक, एक प्लेटफॉर्म से दूसरे प्लेटफॉर्म तक, सीढ़ियों के जरिए ले जाना और कभी-कभी किसी बुज़ुर्ग यात्री को प्लेटफॉर्म से ऑटो स्टैंड या ट्रेन के डिब्बे तक पहुँचाना ये सब जिम्मेदारियां कुलियों पर होती हैं। हमारी मेहनत का कोई फिक्स रेट नहीं होता। कोई 50 रुपये देता है तो कोई 100 रुपये। जैसा जिसकी मर्जी और जैसा काम। उन्होंने यह भी कहा कि कई बार काम रुक-रुक कर मिलता है लेकिन यही काम उनके परिवार की आजीविका का मुख्य सहारा है।
पटना रेलवे स्टेशन पर कार्यरत एक कुली ने बताया कि यह काम उनके पिता पहले किया करते थे। पिता की मृत्यु वर्ष 2020 में हो गई और उसके बाद परिवार की ज़िम्मेदारी चार भाइयों में बंटी। वे बताते हैं कि चारों भाई अलग-अलग मजदूरी के काम करते हैं लेकिन वे खुद स्टेशन पर कुली का कार्य कर रहे हैं।
वह बताते है – “मेरी शादी हो चुकी है, मेरे दो छोटे बच्चे हैं। मां और एक बहन भी है जिसकी जिम्मेदारी मेरे ऊपर है। मेरे पास रहने के लिए जो एकमात्र जगह है। वह पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के शासनकाल में हमें एक कॉलोनी मिली थी वही हमारी एकमात्र छत है। पेट पालने के लिए यह नौकरी करना मेरी मजबूरी है। उन्हें यह नौकरी दो साल के संघर्ष के बाद 2022 में मिली। इस दौरान उन्होंने कई बार रेलवे अधिकारियों से विनती किया लेकिन बार-बार उनके दस्तावेजों में कोई न कोई कमी निकाल दी जाती थी। मैं ज्यादा पढ़ा-लिखा नहीं हूं। बस दसवीं तक पढ़ाई की है। घर की स्थिति ठीक नहीं थी इसलिए आगे पढ़ाई नहीं कर सका।
यही नहीं उन्होंने बताया कि मुझे यह नौकरी 50,000 देकर मिली। अगर मैंने पैसे नहीं दिए होते तो किसी और को यह लाइसेंस दे दिया जाता। अब हम मजबूर हैं और इसमें कुछ नहीं कर सकते।”
पटना के कुलियों का दर्द, संघर्ष, ट्रांसफर और आंदोलन की तैयारी
पटना स्टेशन पर कार्यरत कई कुलियों ने खबर लहरिया चैनल को बताया कि कुली की नौकरी पाना इतना आसान नहीं है जितना बाहर से दिखता है। एक कुली ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि उनके मोहल्ले में कई ऐसे युवक हैं जिनके पिता कुली थे लेकिन अब जब वे नौकरी पाना चाहते हैं तो सालों मेहनत करने के बाद भी नियुक्ति नहीं मिल रही।
उनका कहना है पैसे दो तो नौकरी मिलती है वरना ट्रांसफर कर दिया जाता है। कोई दानापुर भेजा जाता है कोई पटना सिटी। इन स्टेशनों पर कमाई बहुत कम है जबकि पटना जंक्शन पर काम ज्यादा मिलता है जैसे सामान ढोना, सवारी पहुँचाना जिससे हम 500 से 700 रुपये रोज़ तक कमा लेते हैं। महीने में 10000 तक हो जाता है जिससे घर चल पाता है।
किशोर कुमार बताते हैं कि वे अब भी दौड़-धूप कर रहे हैं कागज बनाने में लेकिन हर बार कागजात में कोई न कोई कमी निकाल दी जाती है। कभी आधार में उम्र गलत बता दी जाती है। कभी फॉर्म रिजेक्ट कर दिया जाता है। उन्हें अब समझ आने लगा है कि यह सब बहाना है। असली वजह पैसे हैं। उन्हें बताया गया कि अगर वे 1 लाख दे दें तो नौकरी मिल जाएगी लेकिन यह बात कोई सीधे नहीं कहता।
कुली भोलू कुमार ने बताया कि उन्होंने अपने पिता की मृत्यु के बाद रेलवे में आवेदन किया लेकिन उन्हें दानापुर स्टेशन भेजने की बात कही गई जबकि वे पटना में रहते हैं। उनका कहना है कि हम यहीं के रहने वाले हैं स्टेशन पास में है लेकिन कह दिया गया कि यहां जगह नहीं है। अब समझ में आया कि अगर हम पैसा दे देते तो यहीं पर पोस्टिंग हो जाती। उन्होंने यह भी बताया कि कई बार पिता की जगह नौकरी देने के नाम पर भी पैसे लिए जाते हैं और अगर कोई अपनी जगह छोड़ना चाहता है तब भी उससे पैसे वसूले जाते हैं। यह पूरा सिस्टम बिचौलियों और अंदरूनी मिली भगत से चलता है। जहां आम आदमी की आवाज़ कहीं नहीं सुनी जाती।
इन कुलियों ने यह भी कहा कि अगर यही हाल रहा तो वे जून 2025 में एक बड़ा आंदोलन करेंगे क्योंकि उस वक्त चुनाव नज़दीक होगा और वे चाहते हैं कि इस मुद्दे को चुनावी मंच तक पहुँचाया जाए। उनका कहना है कि अब और चुप नहीं बैठ सकते। हम मेहनत करते हैं और बदले में हमें भ्रष्टाचार झेलना पड़ता है।
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