गांव में रहने वाले निवासी दिनेश कहते हैं कि “हनुमान मंदिर के नाम से यह रास्ता पास हो गया था। इस रास्ते की कई बार नाप भी हो चुकी है पर पुराने मुखिया ने इस रास्ते का पैसा गांव का दूसरा रास्ता बनवाने में लगा दिया है। इसी वजह से अब ये रास्ता बनने में दिक्कत आ रही है। अब क्या पता यह सड़क कब बनेगी।”
रिपोर्ट – सुमन
सरकार के खोखले वादे और सरकार की नीतियों को उजागर करती बिहार के पटना जिले की सच्चाई। फुलवारी ब्लॉक में स्थित ग्राम पंचायत ढिबरा एक प्रमुख गांव है। इस गांव की कुल आबादी लगभग पांच हजार है, जिसमें तीन हजार से अधिक वोटर हैं। यहां तीन सौ से अधिक घर हैं जिनमें लोग अपने परिवारों के साथ रहकर जीवन यापन करते हैं। गांव में आने-जाने के लिए पक्की सड़क नहीं है जिससे यहां पर रहने वाले लोगो को रोजमर्रा के काम करने में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। एक गांव से दूसरे गांव जाने के लिए दो किलोमीटर दूर पैदल चलकर साधन पकड़ने के लिए आना पड़ता है इसकी वजह है मैन रोड से गांव के अंदर दो किलोमीटर कच्चे रास्ते का होना जिसकी वजह से गांव के अंदर कोई वाहन नहीं आता।
सड़क के लिए कई एप्लिकेशन दी पर कोई कार्यवाही नहीं
महेश ने बताया कि 2 किलोमीटर लम्बा रास्ता है जो खराब पड़ा हुआ है। सड़क बनवाने के लिए हम गांव के लोगों ने कई बार अधिकारियों को अप्लिकेशन दी है। अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है जिसकी वजह से हमे कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
गांव के रहने वाले संजय बताते हैं, “इस गांव में रहते हुए हमारी उम्र बीत गई। कई साल पहले खड़ंजा डाला गया था जिससे आने-जाने में थोड़ी राहत मिली थी लेकिन अब वह भी खराब हो गया है।”
प्रधानमंत्री सड़क योजना के तहत बनी सड़क
महेश ने कहा कि “जो मुख्य सड़क है वो प्रधानमंत्री सड़क योजना के तहत बनाई गई थी जो कई गांवों को जोड़ती है लेकिन जब हम अपने गांव के अंदर घुसते है तो हनुमान मंदिर के बाद से रास्ता खराब है। इस रास्ते से लोग खेत बाजार, स्कूल और काम पर भी जाते है। यह गांव का शॉर्टकट माना जाता है। इसकी हालत खराब के कारण इस रास्ते से निकलना मुश्किल हो जाता है। रास्ता पक्का न होने से लोगों को अक्सर पैदल ही गांव के अंदर जाना पड़ता है। जिनके पास ज्यादा समान है तो ऑटो बुक करके जाना पड़ता है। ऑटो वाले दूसरे गांव शाहपुर से अंदर से गोल-गोल घुमा करके आते हैं जो कि पूरा 3 से 4 किलोमीटर पड़ता है जिससे समय और पैसा दोनों बर्बाद होता है।”
मंदिर के नाम पर बनवाई दूसरे रास्ते की सड़क
गांव में रहने वाले निवासी दिनेश कहते हैं कि “हनुमान मंदिर के नाम से यह रास्ता पास हो गया था। इस रास्ते की कई बार नाप भी हो चुकी है पर पुराने मुखिया ने इस रास्ते का पैसा गांव
का दूसरा रास्ता बनवाने में लगा दिया है। इसी वजह से अब ये रास्ता बनने में दिक्कत आ रही है। अब क्या पता यह सड़क कब बनेगी।”
उप मुखिया की बात
ढिबरा उप मुखिया सत्येंद्र ने बताया कि “हमने अपने गांव के रोड के बारे में अपने मुखिया जी से बात की थी क्योंकि यह मुखिया के अंदर में बनता है। इस बात की जांच पड़ताल ब्लॉक स्तर से करवाई तो पता चला कि हनुमान मंदिर के नाम से ऑलरेडी रास्ता पास हो चुका है। जो पूर्व मुखिया थे उन्होंने इस रास्ते के बजट से दूसरे एरिया का रास्ता बनवा दिया था क्योंकि उस रास्तें पर स्कूल था बच्चे स्कूल आते जाते थे तो बच्चो को आने जाने में दिक्कत न हो।
मुखिया ने दिया सड़क बनने का आश्वाशन
ढिबरा पंचायत के मुखिया रवि का कहना है कि हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे हैं कि वह रास्ता बन जाए। भले ही वह रास्ता पास होकर के दूसरी जगह बन गया हो। हमने विधायक को अप्लिकेशन लिखी है। विधायक निधि से एक दूसरा रोड बनने की मांग रहे है जो एक गांव से दूसरे को जोड़ेगा। हम कोशिश करेंगे की ये रास्ता भी उसी में जोड़कर बनवा दिया जायेगा।
चुनाव के समय नेता भी कतराते हैं चलने से
फूल कुमारी बताती हैं कि “जब हमारे यहां पर शादी-ब्याह, पार्टी फंक्शन होते हैं, या कोई भी चुनाव के टाइम पर नेता को आना है तो कोई भी इस रास्ते से नहीं आता। सब लोग शाहपुर घूम कर आते हैं या तो फिर गंजगांव से होकर आते हैं जिसमें लोगों को काफी समय लगता है। इस कच्चे रास्ते से तो आप अपना बाजार का सामान सर पर रखकर भी नहीं ला सकते। यह कच्चा रास्ता 5 फुट का है। अगर यह रास्ता 10 से 12 फुट का चौड़ा बन आएगा तो अच्छा होगा।”
बरसात में रास्ता बन जाता है दलदल
वैसे तो सड़क का रास्ता ठंड और गर्मी के मौसम में ठीक होता है पर बरसात के मौसम में यह रास्ता कीचड़ से भर जाता है जिससे चलना भी मुश्किल हो जाता है। इस रास्ते पर ठीक से साइकिल भी नहीं चल पाती है। इंसान अकेले है तो उठते बैठते किसी तरह से अपने घर पहुंच जाता है। अगर बरसात की बात करें तो बहुत दिक्कत होती है। बरसात में तो इस रास्ते से आ ही नहीं सकते।
आखिर कब तक लोगों को ऐसे कच्चे रास्तों से होकर गुजरना पड़ेगा? उनकी बातें क्यों नहीं सुनी जाती? उनकी दी गई अर्जियों को सिर्फ नज़रअंदाज किया जाता है। सड़क भी बनने के इतंजार में और कमजोर होती चली जाती है, बिलकुल गांव के लोगों की उम्मीद की तरह।
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