प्रियंका बताती हैं, “अब मैं काफी आत्मनिर्भर हो चुकी हूं। अब मैं घर भी संभाल लेती हूं और अपने काम को भी देख सकती हूं। जो सपना मुझे था, कुछ कर दिखाने का वह आज पूरा हो गया है।
रिपोर्ट – सुमन, लेखन – सुचित्रा
सरकार ने महिलाओं के स्वास्थ्य पर काम करने के लिए हर गांव में एक आशा कार्यकर्ता नियुक्त की है ताकि वे महिलाओं से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं का समाधान कर सकें। उन्हें एक स्वस्थ जीवन जीने का मार्ग दिखा सकें। इसके लिए महिला आशा कार्यकर्ता होती हैं। इस तरह की आशा कार्यकर्ता के बारे में अपने सुना ही होगा लेकिन क्या आपने कभी जानवरों के लिए महिला आशा कार्यकर्ता का नाम सुना है? अगर सुना भी होगा, तो आपने जानवरों का इलाज करने के लिए डॉक्टरों के बारे में सुना होगा।
ग्रामीण क्षेत्रों में यदि किसी किसान या व्यक्ति के जानवर जैसे गाय, भैंस, बकरी बीमार पड़ जाते हैं, तो वे ब्लॉक स्तर पर बने पशु चिकित्सालय जाकर दवाइयां लाते हैं या फिर उन डॉक्टरों को बुलाकर इलाज करवाते हैं। लेकिन वहां पर भी ज्यादातर पुरुष चिकित्सक होते हैं जिनके पास डिग्रियां होती हैं, तभी वे डॉक्टर कहलाते हैं।
पशु आशा कार्यकर्ता / पशु सखी के रूप में बनाई पहचान
मैं आपको इस लेख के माध्यम से बताऊंगी कि एक कम पढ़ी-लिखी महिला भी गांव में एक पशु आशा कार्यकर्ता बन सकती है। इन्हें पशु सखी के नाम से भी जाना जाता है। फोटो में आप देख सकते हैं कि यह महिला प्रियंका पूजा भारती हैं जो पटना जिले के मसौढ़ी ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले पंचायत भैसवा की निवासी हैं।
वह बताती हैं कि जब वह दसवीं कक्षा में पढ़ाई कर रही थीं, तब उनकी शादी कर दी गई थी। उस समय उनकी उम्र 17 वर्ष थी, और 18-19 वर्ष में वह मां बन गई थीं। उनके दो बेटे हैं, बेटियां नहीं हैं। दसवीं के बाद उन्होंने पढ़ाई आगे नहीं की, क्योंकि ससुराल और घर संभालने की जिम्मेदारी आ गई थी। वह बताती हैं कि उनके भी बहुत सारे सपने थे कि वह पढ़-लिखकर अपने पैरों पर खड़ी हो सकें और कुछ काम कर सकें, क्योंकि घर के कामों को संभालना उनके लिए बहुत कठिन था।
‘पशु सखी’ बनने के लिए सास ने दिया साथ
दूसरे फोटो में आप देख सकते हैं कि यह प्रियंका पूजा भारती की सास हैं। उनकी सास बताती हैं, “जब मेरी बड़ी बहू विदा होकर हमारे घर आई थी, तो वह बहुत ही कम उम्र की थी और उसे घर के किसी भी काम की जानकारी नहीं थी। शुरुआत में उसे हर काम में समझाना और डांटना पड़ता था। मुझे लगता था कि वह घर के कामों को संभाल पाएगी या नहीं। लेकिन मेरी बहू ने कभी भी मेरी बातों का बुरा नहीं माना। हम दोनों ने मां-बेटी की तरह साथ में सालों बिताए। अब मैं उसकी बातों को समझने लगी हूं। मुझे लगता है कि घर के कामों के अलावा वह कुछ और भी करना चाहती थी। हालांकि, उसकी पढ़ाई छूट गई थी, तो हम और क्या कर सकते थे। फिर कुछ समय बाद बिहार में हमारे गांव में जीविका बिहार में जीविका दीदी समूह आया, जिसमें महिलाओं को जोड़ने का काम चल रहा था। समूह से जुड़ने के लिए बस ₹10 देने होते थे, तो मैंने अपनी बहू से कहा, ‘आप जाओ और देखो, क्या होता है?’ वह वहां जाने लगी, और फिर धीरे-धीरे उसने कई सारी चीजें सीख लीं। अब मुझे अपनी बहू के लिए बहुत खुशी होती है।”
गांव में जाकर पशुओं से सम्बंधित देती हैं जानकारी
तीसरी फोटो में आप देख सकती हैं कि प्रियंका पूजा भारती कुछ महिलाओं को जानवरों से संबंधित दवाइयों और उनके खान-पान के बारे में बता रही हैं। इस दौरान उनका सहयोग कर रहे हैं बाहर से आए हुए डॉक्टर। इसकी ट्रेनिंग उन्होंने पहले जीविका दीदी समूह के द्वारा दिए गए प्रशिक्षण में सीखा था।
प्रियंका महिलाओं को बता रही हैं कि “जो पास में बकरियों को खाने के लिए नादा आपने बनाया है उस पर खाना देने से पहले उसे अच्छी तरह से साफ करें। उस पर बकरी की लैट्रिन नहीं पड़ी होनी चाहिए वरना बकरी बीमार हो सकती है। हमेशा बकरी को साफ और स्वच्छ खाना दें और उसके खाने का जो नादा है उसे अच्छे से धोकर ही उस पर खाना डालें। बकरी को बासी या सड़ा-गला खाना बिल्कुल न खिलाएं, क्योंकि इससे वह बीमार हो सकती है।”

गांव में जाकर पशुओं से सम्बंधित जानकारी देती पशु सखी प्रियंका पूजा भारती की तस्वीर (फोटो साभार: सुमन)
पशु सखी का काम, पशु का टीककरण करना
चौथी फोटो में आप देख सकते हैं कि प्रियंका पूजा भारती एक बकरी को दवा पिला रही हैं। वह बताती हैं, “यह जो बकरी है इसका पेट खराब हो गया है इसीलिए इसे दवा दी जा रही है।”
आगे वह बताती हैं कि वह सिर्फ अपने ही गांव में नहीं, बल्कि पूरे मसौढ़ी के आसपास के गांवों में एक आशा कार्यकर्ता के रूप में जानी जाती हैं। वह जानवरों को दवा देना, उनकी बीमारियों का इलाज करना, उन्हें बांधना और उनके टीकाकरण का काम भी करती हैं।
पशु सखी बनने का सफर ऐसे हुआ शुरू
पांचवीं फोटो में आप देख सकते हैं कि प्रियंका पूजा भारती अपने कंधे पर टीकाकरण करने के लिए बॉक्स लटकाए चल रही हैं और लोगों से बात कर रही हैं। वह बताती हैं, “मसौढ़ी में पहले एक डॉक्टर थे, जो बड़े जानवरों जैसे – गाय और भैंसों के लिए दवा देने का काम करते थे लेकिन उनका पोस्टिंग कहीं और हो गया। इसके बाद यह जगह खाली हो गई। फिर उन्हें पता चला कि प्रियंका पूजा भारती बकरियों के लिए काम करती हैं, उन्हें दवा देती हैं, उनकी बीमारियों का इलाज करती हैं और टीकाकरण भी करती हैं। तो क्यों न उन्हें थोड़ी ट्रेनिंग देकर आगे का काम सौंपा जाए।”
इसके बाद, उन्हें गायों का टीकाकरण करने का काम भी सौंपा गया जिसमें उन्होंने 150 गायों को टीका दिया। इसके बदले उन्हें पैसे भी मिले थे। प्रियंका बताती हैं, “अब मैं काफी आत्मनिर्भर हो चुकी हूं। अब मैं घर भी संभाल लेती हूं और अपने काम को भी देख सकती हूं। जो सपना मुझे था, कुछ कर दिखाने का वह आज पूरा हो गया है। लोग मुझे अब ‘आशा कार्यकर्ता’ और ‘पशु सखी’ के नाम से भी जानते हैं। ‘पशु सखी’ का मतलब है, ‘पशुओं की दोस्त’।”
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