खबर लहरिया औरतें काम पर पटना: आशा कार्यकर्ताओं ने उठाया ‘वेतन नहीं तो काम नहीं का नारा’

पटना: आशा कार्यकर्ताओं ने उठाया ‘वेतन नहीं तो काम नहीं का नारा’

आशा कार्यकर्ता, जिन्हें सरकार रीढ़ की हड्डी कहा जाता है, उनके अनुसार अब उसमें दीमक लग रही है क्योंकि न तो उनके पास स्थायी मानदेय है और न ही सुरक्षा। वह पूरी तरह से खुद पर निर्भर हैं। चाहें वह डिजिटल रूप से काम को लेकर हो या फिर अन्य कोई काम – महोबा की आशा कार्यकर्ता आरती ने खबर लहरिया को बताया।

एक आशा कार्यकर्ता के रूप में उनका कहना है, “आशा सेवा में ऐसे लगती है कि वो अपने बच्चों को भी नहीं देख पाती ” – यह वाक्य स्पष्ट करता है कि काम के लिए उन्हें कितना कुछ त्यागना पड़ता है। वह काम जहां वह अपने परिवार,आराम, अपनी आर्थिक स्थिति से ज़्यादा सेवा देती हैं, काम करती हैं लेकिन इसके बदले में न तो उन्हें उस काम का उचित वेतन मिलता है और न ही सुविधाएं। वह बस सेवाएं देती रहती है। आगे जोड़ते हुए कहा, “हम बस देहरी पर खटखटाते रहते हैं” – यानी वह बस दरवाज़ें पर खटखटाती रहती हैं लेकिन उनकी कोई नहीं सुनता।

ये भी पढ़ें –

‘देहरी पर दवाई की सच्चाई’: डिजिटल युग में ग्रामीण स्वास्थ्य सुविधा

 

‘यदि आप हमको सपोर्ट करना चाहते है तो हमारी ग्रामीण नारीवादी स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करें और हमारे प्रोडक्ट KL हटके का सब्सक्रिप्शन लें’

If you want to support  our rural fearless feminist Journalism, subscribe to our  premium product KL Hatke 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *