मध्य प्रदेश के ऐतिहासिक जिले पन्ना के निकट 6.81 वर्ग किलोमीटर में फैला अजयगढ़ लगभग 250 साल पुराने किले प्राकृतिक वन संपदा के लिए प्रसिद्ध है।
अजयगढ़ का अजयपाल नाम से जाना जाने वाला यह किला आज भी लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बना है। आप किसी भी शहर से और किसी साधन से आ रहे हैं इस किले की सैर करने तो ध्यान रखें कि अजयगढ़ जैत स्तम्भ से 2 किलोमीटर की दूरी आपको पैदल तय करनी पड़ेगी। और किले की सैर करने के लिए 500 सीढियाँ भी चढ़नी होगी तभी आप इस किले की सैर कर सकेंगे।एक बात तो है सीढ़ियाँ चढ़ने के बाद जो थकान होती है वह किले की चकाचौध देख छू मंतर हो जाती है। तो आप ये सोंचकर बिलकुल भी न घबराएं की सीढियाँ चढ़नी होगी बल्कि घूमने का प्लान बनाएं और अपना वीकेंड हैप्पी बनायें।
अजयगढ़ किले की खासियतें यह हैं कि 250 वर्षों के बाद भी इस किले में बने चित्रों के रंग धूमिल नहीं हुए हैं। इस किले के कारण ही माधवगढ़ को तहसील का दर्जा मिला। और खजुराहों से मिलती जुलती कला कृतियाँ भी यहाँ आपको देखने को मिल जाएगी।
यह विशाल किला समुद्र तल से 1744 फिट व धरातल से लगभग 860 फिट की ऊंचाई पर स्थित है। इस किले का ऊपरी भाग बलुआ पत्थर का है। यह दुर्लभ प्रकृति का है। लोगों का मानना है कि अजयगढ किला के निर्माण का श्रेय शासक अजयपाल को दिया गया। लेकिन हाल का आलम यह है कि शासन- प्रशासन इसपर ध्यान नहीं दे रहा, या यूँ कहें की जानते हुए भी अनजान हैं ।
किले का इतिहास-
ब्रिटिश राज के दौरान अजयगढ़, राजसीराज्य अजयगढ़ की राजधानी था। बुंदेलखंड राज्य के वीर महाराजा छत्रसाल (1649-1731) के वंशज बुंदेला राजपूत जैतपुर के महाराजा कीरत सिंह के पौत्र (दत्तक पुत्र गुमान सिंह के पुत्र) बखत सिंह ने सन 1765 में इस राज्य की स्थापना की थी। सन 1909 में रियासती अजयगढ़-राज पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया था और तब यह ‘सेंट्रल इंडिया एजेंसी’ की ‘बुंदेलखंड एजेंसी’ का भाग बनाया गया।
बाँदा में नरैनी तहसील से 47 किलोमीटर दूर यह धरोहर महोबा के दक्षिण पूर्व, कालिंजर के दक्षिण पश्चिम तथा खजुराहो के उत्तर-पूर्व में स्थित है। यह किला चंदेल शासकों के पूर्व शक्ति का केंद्र है। यह चारों ही स्थान एक चतुर्भुज का निर्माण करते हैं जो चंदेल राज्य शक्ति, धर्म व कला के केंद्र थे। किले में दो प्रवेश द्वार हैं।
किले के उत्तर में एक दरवाजा और दक्षिण पूर्व में तरहौनी द्वार है। दरवाजों तक पहुंचने के लिए 45 मिनट की खड़ी चट्टानी चढ़ाई चढ़नी पड़ती है।
किले के बीचोंबीच अजय पाल का तालाब नामक झील है। झील के अन्त में जैन मंदिरों के अवशेष बिखरे पड़े हैं। झील के किनारे कुछ प्राचीन काल के स्थापित मंदिरों को भी देखा जा सकता है।
तो चलिए चलते हैं अजयपाल किले की सैर करने!