खबर लहरिया Blog यूपी में ‘स्वछता’ के नाम पर भोजनालय मालिकों को ‘नाम’ प्रदर्शित करने के आदेश, धर्म-जातीय हिंसा बढ़ने का भी उठा सवाल 

यूपी में ‘स्वछता’ के नाम पर भोजनालय मालिकों को ‘नाम’ प्रदर्शित करने के आदेश, धर्म-जातीय हिंसा बढ़ने का भी उठा सवाल 

विशेषज्ञों के पैनल की 2022 की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि “भारतीय कानूनी प्रणाली धार्मिक भेदभाव से निपटने के लिए डिज़ाइन किए गए कानूनों और संस्थानों की एक विस्तृत श्रृंखला प्रदान करती है। हालांकि, पैनल को यह निष्कर्ष निकालने के लिए पर्याप्त आधार मिले कि वर्तमान सरकार के वैचारिक और धार्मिक पूर्वाग्रह सभी स्वतंत्र संस्थानों में मौजूद हैं, जिसके परिणामस्वरूप प्रभावी और पर्याप्त जवाबदेही पहल की कमी है।”

                                       यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की तस्वीर (फोटो साभार – सोशल मीडिया)

यूपी में सभी भोजनालयों को अपने संचालकों,मालिकों और प्रबंधकों के नाम और पते प्रमुखता से सामने प्रदर्शित करने का निर्देश दिया गया है। यह निर्देश मंगलवार, 24 सितंबर को यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ द्वारा दिया गया।

राज्य सरकार दावा करती है कि इसका संबंध केवल स्वछता से है। क्या स्वछता किसी के नाम सामने रखने और पता होने से आ सकती है? कहीं इस विचार का संबंध केंद्रित किसी धर्म व उससे जुड़े लोगों से तो नहीं जिन्हें लेकर एक कथित विचारधारा समाज में चली आ रही है? कहीं इसका संबंध मुस्लिम समुदाय से तो नहीं जिनके तरफ अंगुली टेढ़ी करके बात कही जा रही है?

यूपी एक ऐसा राज्य है जहां मुस्लिम समुदाय का गहरा इतिहास रहा है। वहीं लखनऊ तो नवाबों का ही शहर है जहां का मांसाहारी भोजन दुनिया भर में मशहूर है। लेकिन आज भारत में जो मुस्लिम समुदाय की परिस्थिति है, उसमें सरकार का यह निर्देश कहीं से भी राज्य के सभी लोगों के लिए अनुकूल नज़र नहीं आता।

जब हम आज से दो महीने पहले हुए कांवड़ यात्रा नेमप्लेट विवाद को देखते हैं जहां कुछ राज्यों ने धार्मिक आस्था के संरक्षण के नाम पर भोजनालयों के मालिकों को अपने नाम प्रदर्शित करने के लिए कहे थे, उस समय भी इस नाम की राजनीति को लेकर आवाज़ उठाई गई थी। वह नाम जो किसी की जाति,लिंग,धर्म और कहीं न कहीं किसी की आस्था को दिखाते हैं, उनसे जुड़ी व कथित तस्वीर को दिखाते हैं, जहां से हिंसा,भेदभाव और धर्म के नाम पर टारगेट करने के मामले सामने आते हैं। इन सभी तथ्यों को नज़रअंदाज़ करते हुए सरकार दावा करती है कि नाम से स्वछता आएगी। वह स्वछता जो साल 2014 से सत्ता में आने के बाद भाजपा की सरकार लाने का दावा कर रही है।

सुप्रीम कोर्ट ने 22 जुलाई को कांवड़ यात्रा नेमप्लेट विवाद को देखते हुए कई याचिकाओं के बाद आदेश पर अंतरिम रोक लगा थी। इसमें यह तर्क भी दिया गया था कि इससे धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव को बढ़ावा मिलेगा।

इसके बाद भी यूपी में ‘नाम’ के साथ ‘धर्म और जाति’ की राजनीति इस बार स्वछता के नाम पर लागू करने के निर्देश दिए गए है। विपक्षी नेताओं, मुस्लिमों समूहों और अधिकार विशेषज्ञों ने भाजपा अधिकृत यूपी सरकार के निर्देशों को “भेदभावपूर्ण” और “मुस्लिम विरोधी हिंसा” का उपकरण बताया।

ये भी पढ़ें – Kanwar Yatra nameplate controversy: सुप्रीम कोर्ट ने कांवड़ मार्ग पर नाम प्रदर्शित करने के फैसले पर लगाई रोक, जानें दुकानदार,विपक्षी व कोर्ट ने क्या कहा

‘नाम’ के ज़रिये धर्म की राजनीति

धर्म और जाति के नाम पर भेदभाव और हिंसा को एक बार फिर हवा दी गई है। यहां स्वछता से सरकार का इशारा किस तरफ है, यह आज की राजनीति को देखकर समझना आसान है। बस मुश्किल तब है जब हम खुद उस राजनीति का हिस्सा हो। अगर किसी का नाम और जाति सामने आने से वह हिंसा का केंद्र बनते हैं तो यहां ये सवाल उठाये जाने चाहिए कि ऐसे निर्देश क्यों लाये जा रहे हैं? वह भी यूपी जैसी राज्य में जहां एक मुस्लिम नाम होने से ही किसी की हत्या कर दी जाती है। यहां सवाल होना चाहिए कि वे लोग या संगठन कहां हैं जो मानव सुरक्षा व अधिकारों के लिए काम करने की बात करते हैं?

आर्टिकल 14 की रिपोर्ट के अनुसार, सितंबर 2015 और जून 2019 के बीच एमनेस्टी इंटरनेशनल (मानव अधिकार संगठन) द्वारा दर्ज किए गए भारत में 902 हेट क्राइम (घृणा अपराध) में से एक चौथाई अकेले सिर्फ यूपी से थे। वहीं 902 अपराधों में से 69 प्रतिशत दलितों के खिलाफ थे, मुस्लिम समुदाय जो यूपी की आबादी का 19.26 प्रतिशत हैं, उनके खिलाफ 22 प्रतिशत मामले थे।

जनवरी 2014 से मई 2022 के बीच मुस्लिम विरोधी हेट क्राइम (anti-Muslim hate crime) के 1,041 मामले दर्ज़ किये गए थे। डॉक्यूमेंटेशन ऑफ़ द ऑप्रेस्ड (Documentation Of The Oppressed) द्वारा यह रिपोर्ट तैयार की थी, जोकि भारत में धार्मिक पहचान-आधारित हिंसा के बड़े पैमाने पर दस्तावेज़ीकरण के लिए एक ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म है।

रिपोर्ट ने यह भी बताया कि 1,041 मामलों में से 387 मामले अकेले यूपी से थे जोकि अन्य किसी राज्य से सबसे अधिक थे।

स्वतंत्र विशेषज्ञों के पैनल की 2022 की रिपोर्ट में कहा गया था कि 2019 के मध्य से पूरे भारत में मुसलमानों के खिलाफ मानवाधिकारों के उल्लंघन का पैमाना और पैटर्न “चिंताजनक” था।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि, “मुसलमानों पर किये गये शारीरिक हिंसा के कृत्य, जिसमें राज्य अभिनेता भी शामिल थे, देश के कई प्लेटफॉर्मो के ज़रिये मुस्लिम विरोधी हेट स्पीच (घृणास्पद भाषण) उत्तेजना के साथ दिए गए, जोकि धार्मिक अल्पसंख्यक के अस्तित्व के लिए एक गंभीर खतरा पैदा करते हैं।”

विशेषज्ञों के पैनल की 2022 की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि “भारतीय कानूनी प्रणाली धार्मिक भेदभाव से निपटने के लिए डिज़ाइन किए गए कानूनों और संस्थानों की एक विस्तृत श्रृंखला प्रदान करती है। हालांकि, पैनल को यह निष्कर्ष निकालने के लिए पर्याप्त आधार मिले कि वर्तमान सरकार के वैचारिक और धार्मिक पूर्वाग्रह सभी स्वतंत्र संस्थानों में मौजूद हैं, जिसके परिणामस्वरूप प्रभावी और पर्याप्त जवाबदेही पहल की कमी है।”

द वायर की 24 अगस्त 2024 की रिपोर्ट में बताया गया कि किस तरह से मोहम्मद असलम, जोकि ज़ोमाटो में डिलीवरी का काम करते हैं, उन्हें उनकी मुस्लिम होने की पहचान की वजह से पीटा गया।

असलम ने आरोप लगाया कि यूपी की राजधानी लखनऊ में जब वह हर दिन की तरह डिलीवरी कर रहे थे, चार लोगों ने कथित तौर पर उन पर हमला किया। उन पर सांप्रदायिक टिप्पणियां कीं। उनके ऊपर शराब डाली और उन्हें एक मंजिला घर में एक घंटे से अधिक समय तक बंधक भी बनाकर रखा।

असलम ने यह भी कहा कि उसकी मुस्लिम पहचान को लेकर उन्हें निशाना बनाया गया और 20 और 21 अगस्त की रात को उस घर के निवासियों ने उसकी पिटाई की, जहां वह खाना देने गया था।

यह कोई अकेला मामला नहीं है जो सामने आया है पर हर दिन यह मामले सामने आते हैं। आज जहां सरकार स्वछता के नाम पर भोजनालयों के सामने नाम प्रदर्शित करने की बात कर रही है, वह यह नहीं सोच रही कि इससे एक पहचान के व्यक्ति को कितना खतरा है, यानी मुस्लिम पहचान रखने वाले व्यक्ति की। क्या इस बात पर गौर किया गया कि जहां मुस्लिम पहचान से ही उन्हें टारगेट किया जाता है, उनके साथ हिंसा की जाती है, वह राज्य जहां मुस्लिमों के विरोध में सबसे ज़्यादा हिंसाओं के मामले दर्ज़ हैं, वहां अगर वह खुलेतौर पर अपना नाम रखेंगे और कभी उन पर किसी भी तरह का आरोप लग गया या उन पर किसी चीज़ें को लेकर शक किया जाने लगा तो उनकी भी एक हिन्दू भीड़ द्वारा हत्या की जा सकती है। वह भी सिर्फ शक के आधार पर, उनकी पहचान के आधार पर।

पॉपुलेशन सेंसस ऑफ़ इंडिया 2011 (Population census of India 2011) की रिपोर्ट के अनुसार, यूपी में मुस्लिमों की संख्या 19.26 प्रतिशत है। वहीं 79.73 प्रतिशत आबादी हिन्दू धर्म से आती है। यूपी राज्य के 71 में से 70 जिलों में कुल मिलाकर हिंदू धर्म बहुसंख्यक है।

यूपी, जैसी जगह जहां मुस्लिम समुदाय की संख्या, हिन्दू धर्म से आने वाले लोगों से कम है और सुरक्षा के नाम पर सिर्फ हत्या या शक किये जाते हैं, वहां सरकार के फैसले का क्या परिणाम निकलेगा?

 

यदि आप हमको सपोर्ट करना चाहते हैतो हमारी ग्रामीण नारीवादी स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करें और हमारे प्रोडक्ट KL हटके का सब्सक्रिप्शन लें’

If you want to support  our rural fearless feminist Journalism, subscribe to our  premium product KL Hatke