बिहार के अररिया जिले में एक अनोखा केस सामने आया है जहाँ आरोप है कि बलात्कार पीड़िता और उसके सहयोगी को ही जेल भेज दिया गया ।अब इस मामले में देश के 350 से अधिक जाने-माने वकीलों ने पटना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और जजों को ख़त लिख कर इस मामले में दख़ल देने की मांग की है।
क्या है पूरा मामला
जानकारी के अनुसार पीड़िता को 6 जुलाई को उसके ही एक परिचित युवक ने मोटरसाइकिल सिखाने के बहाने उसको सुनसान जगह बुलाया । जहाँ मौजूद चार अज्ञात पुरूषों ने उसके साथ बलात्कार किया. एफ़आईआर के मुताबिक़ बलात्कार पीड़िता ने अपने परिचित से मदद मांगी, लेकिन वो वहाँ से भाग गया । घबराई हुई लड़की ने अररिया में काम करने वाले जन जागरण शक्ति संगठन के सदस्यों की मदद से अपने घर पहुँची । लेकिन जब उन्हें अपने घर में भी असहज लगा तो लड़की ने अपना घर छोड़कर जन जागरण शक्ति संगठन के सदस्यों के साथ ही रहने लगी । 7 और 8 जुलाई को उनकी मेडिकल जाँच हुई । जिसके बाद 10 जुलाई को बयान दर्ज कराने के लिए लड़की को ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट कोर्ट में ले जाया गया ।
क्यों हुई बलात्कार पीड़िता को जेल
मिडिया रिपोर्ट के मुताबिक कार्यकर्ता लड़की को लेकर 10 जुलाई को दोपहर 1 बजे कोर्ट पहुँचे।लेकिन सब को बहार ही इंतज़ार करने के लिए कहा गया । तकरीबन 4 घंटे के इंतज़ार के बाद बयान दर्ज हुआ । लेकिन ब्यान के लिए लड़की को अकेले अंदर बुलाया गया दोनों कार्यकर्ता ( कल्याणी बडोला और तन्मय निवेदिता ) बाहर ही थे । ब्यान के बाद जब उसे न्यायिक दंडाधिकारी ने ब्यान पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा, तो लड़की गुस्सा हो गई। और गुस्से में कहा कि मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है। आप क्या पढ़ रहे है, मेरी कल्याणी दीदी को बुलाइए। बाद में, केस की जाँच अधिकारी को बुलाया गया, तब रेप सर्वावइवर ने बयान पर हस्ताक्षर किए. बाहर आकर लड़की ने कार्यकर्ताओं को से तेज़ आवाज़ में पूछा कि ‘तब आप लोग कहाँ थे, जब मुझे आपकी ज़रूरत थी। बाहर से आ रही तेज़ आवाज़ों के बीच ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट ने कल्याणी को अंदर बुलाया। कल्याणी ने बलात्कार पीड़िता का ब्यान पढ़कर सुनाए जाने की मांग की। जिसके बाद वहाँ हालात खराब होते चले गए।
तकरीबन शाम 5 बजे कल्याणी, तन्मय और लड़की को हिरासत में लिया गया और 11 जुलाई को जेल भेज दिया गया।
जन जागरण शक्ति संगठन ने प्रेस विज्ञप्ति जारी की
जन जागरण शक्ति संगठन की ओर से जारी प्रेस रिलीज़ के मुताबिक बलात्कार पीड़िता अपनी मददगार की मौजूदगी में धारा 164 के तहत लिखित बयान पढ़वाना चाहती थी लेकिन, यह बात मजिस्ट्रेट साहब को नागवार लगी और पीड़िता समेत दोनों सामाजिक कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ ही कार्रवाई कर दी। उनपर आईपीसी की अलगअलग धाराओं के साथ आईपीसी की धारा 188 भी लगायी गयी है, जिसके तहत उनपर महामारी रोग अधिनियम के अंतर्गत भी कार्रवाई की जा सकती है’।
कई संगठन न्याय मांगने सामने आये
इस मामले में 350 से अधिक नामी वकीलों ने पटना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और बाकी जजों को ख़त लिख कर इस मामले में दख़ल देने की मांग की है इस पत्र में लिखा गया है कि न्यायालय की सामूहिक बलात्कार पीड़िता को जिन परिस्थितियों में न्यायिक हिरासत में भेजा गया है वो बेहद कठोर हैं। तो वहीँ इस घटना के सामने आने के बाद बिहार के महिला संगठनों ने लड़की और कार्यकर्ताओं को रिहा करने की मांग की है।
बलात्कार पीड़िता को रिहा किया लेकिन कार्यकर्ता को नहीं
जिला जज के आदेश पर स्पेशल कोर्ट के तहत इस केस ( लड़की और कार्यकर्ता की गिरफ्तारी वाले केस ) 17 जुलाई को वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई हुई। कोरोना महामारी की वजह से अररिया सिविल कोर्ट का न्यायिक कार्य 20 जुलाई तक के लिए स्थगित रहने के कारण तीनों महिलाओं की ओर से आशीष रंजन ने जिला एवं सत्र न्यायाधीश अररिया से जमानत के लिए अधिवक्ता नियुक्ति की मांग की थी। इसमें लड़की को तो रिहा कर दिया गया लेकिन दोनों कार्यकर्ता अभी भी जेल में है।
क्या ये है भारत का कानून ?
भारतीय कानून के अनुसार किसी महिला से बलात्कार किया जाना गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है। इस अपराध को अंजाम देने वाले दोषी को कड़ी सजा का प्रावधान है. इस अपराध के लिए भारत दंड संहिता में धारा 376 व 375 के तहत सजा का प्रावधान है। जिसमें अपराध सिद्ध होने की दशा में दोषी को कम से कम पांच साल व अधिकतम 10 साल तक कड़ी सजा दिए जाने का प्रावधान है। दिल्ली के निर्भया केस के बाद कानून में संशोधन भी किया गया जिसमे आईपीसी की धारा 376 (ई) के तहत बलात्कार के दोषियों को उम्रक़ैद या मौत की सज़ा का प्रावधान किया गया। लेकिन न तो बलात्कार रुका न अपराधियों को कानून का डर हुआ। नेशनल क्राइम ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक 2018 में बलात्कार के 33,356 मामले दर्ज किए गए। लेकिन बिहार का अनोखा केस ही कहेंगे जहाँ बलात्कार पीड़ित और उसके मददगार को ही जेल भेजा गया। ये है हमारे देश का कानून जहाँ पीड़िता को ही उलटे सीधे सवालों का जवाब देना होता है।
क्या ये बिहार का जंगल राज नहीं जहाँ बलात्कार पीड़ित के मदद करने वालों को ही जेल भेजा जाय क्या ये इंसाफ है ?