पटना के पुनपुन व फुलवारी को मिलाकर 6 ब्लॉकों में बड़े पैमाने पर प्याज की खेती की जाती है। किसानों ने बताया कि प्याज की खेती के लिए अक्टूबर-नवंबर का महीना सबसे अच्छा होता है। अक्टूबर-नवंबर में वह अपनी फसल खेतों में लगा देते हैं व तीन-चार महीने में वह बाज़ार में बिकने के लिए तैयार हो जाती है।
एक किसान ने बताया क्योंकि उनके पास अपनी ज़मीन नहीं है तो तीन किसान मिलकर 13 बीघा ज़मीन किराये पर लेकर प्याज की खेती करते हैं। वह पिछले 10 सालों से प्याज की खेती कर रहे हैं।
प्याज़ की खेती के लिए सबसे ज़्यादा ज़रूरी है ज़मीन व साथ ही इसकी खेती करके फिर आप इसे छोड़ नहीं सकते। उसमें सारा दिन लगा रहना पड़ता है। 4 महीने तक उसकी देख-रेख करनी पड़ती है। उसमें कोई कीड़ा नहीं लगना चाहिए। उसे कोई रोग नहीं होना चाहिए। उसमें समय-समय से पानी, खाद व दवा देनी चाहिए। प्याज की फसल में पानी लगाने का भी एक अलग तरीका होता है। इसमें कई क्यारियां बनाई जाती हैं। उन्हीं को काट-काटकर पानी दिया जाता है। ज़्यादा पानी भी नहीं होना चाहिए। दूसरा यह है कि खेत का पानी सूख जाना चाहिए इसके लिए 4 से 5 मज़दूर लगते हैं। जब तक प्याज तैयार नहीं हो जाती, मज़दूरों की ज़रूरत रहती है।
किसानों ने बताया,1 बीघा खेत में 80 मन प्याज पैदा होती है। अगर मार्केट में अच्छा रेट मिलता है तो उन्हें कोई नुकसान नहीं होता। अगर अच्छा रेट नहीं मिलता है तो नुकसान होता है। प्याज़ बेचने के लिए उन्हें व्यापारियों से संपर्क करना पड़ता है फिर उनका जो रेट होता है वह उसी रेट में प्याज़ लेकर चले जाते हैं। कभी-कभी प्याज को निकालना बड़ा ही मुश्किल हो जाता है। प्याज खराब भी हो जाती है। अगर बाजार में 20-25 रूपये रेट उन्हें मिलता है तो सही रहता है। मंडी ना होने की वजह से उन्हें बड़ी दिक्कत होती है। जो व्यापारी अपना रेट देते हैं उसी में उन्हें देना पड़ता है।
फ़िलहाल 2 साल से उनका घाटा हो रहा है। उन्हें क़र्ज़ भी लेना पड़ता है। किसानी एक जुआं है जिसमें पैसा लगाकर किसानी की जाती है। मिल गया तो सही नहीं तो भगवान भरोसे।