हर साल 24 जनवरी को देश भर में नेशनल गर्ल चाइल्ड डे यानी कि राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है. है. इसी दिन इंदिरा गांधी को नारी शक्ति के रूप में याद किया जाता है. इस दिन इंदिरा गांधी पहली बार प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठी थीं. इंदिरा गांधी ही वजह है कि 24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में मनाने का फैसला लिया इसका मकसद देश की लड़कियों को हर मामले में ज्यादा से ज्यादा सहयोग देना और सुविधाएं मुहैया कराना है.
साथ ही सदियों से लड़कियों के प्रति होने वाले भेदभाव के प्रति लोगों को जागरुक करना हमारे समाज में लड़कियां आज से नहीं बल्कि हमेशा से जीवन के हर मामले में पक्षपात का सामना करती हैं, फिर चाहे वह शिक्षा का अधिकार हो, अच्छा खाना-पान हो, कानूनी अधिकार, स्वास्थ्य सुविधाएं हों या फिर सुरक्षा और सम्मान ही क्यों न हों. इस दिन को सरकार बहुत ही धूम धाम से मनाती है लेकिन जमीनी स्थर पर इसका असर देखने को नहीं मिलता है कुछ हद तक तक शिक्षा के छेत्र में पिछले एक दशक से बदलाव तो देखने को मिल रहे है लेकिन पूरी शिक्षा हासिल नहीं कर पापा रही हैबाँदा: वनांगना संस्था के एक दिवसीय शिक्षा साक्षरता मेले का लीजिए आनंद
हमने अपनी कई ऐसे मुद्दों पर रिपोर्टिंग की है जहाँ पर देखा है की लड़कियों के साथ आज भी भेदभाव जारी है ग्रामीण लेवल पर हर स्थर पर लड़कियों के साथ भेदभाव हो रहा है ज्यादातर लोग बेटी नहीं चाहते सबको बेटा चाहिए किसी बहन बेटी नहीं चाहिए लेकिन पत्नी भाभी मां तो सबको चाहिए इसका एक जीता जागता उदाहरण मैं बताना चाहती हूं बांदा जिला के एक गांव में एक महिला के पांच बेटियां थीं परिवार के दबाव से कि लड़का पैदा करो इस वजह से छठवां बच्चा भी उसको पैदा करना पड़ा लेकिन फिर से लड़की ही पैदा हुई इस बात को लेकर उसने पति ने बहुत प्रताड़ित किया औरत को चाकू से गोद लिया
महिला पुलिस के भी किया लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई ये एक उदाहरण है बहुत ऐसे मामले हैं जहां पर लोग लडकियां पैदा ही नहीं करना चाहते हैं चित्रकूट के स्वास्थय विभाग से हमने लिंग अनुपात जानने के लिए आंकड़े निकलवाये जो बतातै है बताते है एक हजार लडके पर 869 बेटियां हैं अगर इसी तरह बेटे की चाह में बेटियों कम होती गई तो आंकड़ों के हिसाब से आने वाले समय मे बेटियां और भी कम होंगी महिला हिंसा और बढेगी हर रेप की घटनाएं बढ़ेगी होंगे अगर लोगो से बात करें की क्या कारण है बेटियों का जन्म कम हो रहा है अधकारी साफ तौर पर पल्ला झाड लेते हैं की पिछडा इलाका है आशिक्षित लोग है समझाना मुश्किल जागरूक कर रहे हैं
जबकि देखा जाए तो ग्रामीण स्तर पर हैं कुछ लोग जिनको बेटे की आस मे बेटियों की सख्या बढ रही है इस वजह से अर्थिक मार भी झेलनी पडती है और महिलाओ का भी स्वास्थ्य गिरता जाता है बार बार बच्चे को जन्म देने से महिला के सेहत पर बूरा अहर पडता है और वो मानसिक तनाव मे रहने लगती है क्योंकि अगर किसी महिला के बेटा नहीं पैदा होता तो महिला ही समाज परिवार की नजरो मे दोषी है इस तरह से बेटियों की सख्या घटती ही जा रही है बेटी बचाओ बेटी पढाओ अभियान कहा गया बेटियां बच ही नहीं रही तो जन्म से पहले ही मार दी जाती हैं किसी तरह समाज मे जिन्दा रह भी ली तो सुरक्षित नहीं हैं जब बचेंगी बेटियां तभी तो पढेंगी सरकार को इस मुद्दे पर ठोस कदम ऊठाने की जरूरत है