खबर लहरिया Hindi एनटीपीसी (NTPC) के वादे पर पानी: पांच गोद लिए गांवों में विकास का इंतजार, समस्याएं जस की तस

एनटीपीसी (NTPC) के वादे पर पानी: पांच गोद लिए गांवों में विकास का इंतजार, समस्याएं जस की तस

राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम लिमिटेड (एनटीपीसी) / National Thermal Power Corporation भारत की सबसे अधिक बिजली उत्पादन करने वाली कंपनी है। प्रयागराज जिले के शंकरगढ़ ब्लॉक में स्थित लोहगरा गांव और आसपास के अन्य पांच गांवों को एनटीपीसी कंपनी ने गोद लिया था। कंपनी ने वादा किया था कि अगर उनके क्षेत्र में इसकी कंपनी स्थापित हो जाती है, तो इन गांवों में विकास तेजी से होगा और स्थानीय निवासियों को रोजगार भी देगी। कंपनी को स्थापित करने के लिए ग्रामीणों ने एक लाख रुपये प्रति बीघा की दर से अपनी जमीन भी दी थी। लगभग बीस साल पहले पावर प्लांट चालू हो गया, लेकिन ग्रामीणों के अनुसार, कंपनी ने अब तक विकास का कोई कार्य नहीं किया है। इन गांव में कंपनी बन तो गई लेकिन इससे गांव में पानी और बिजली की समस्या अब भी बनी हुई है और रोजगार भी ग्रामीणों को नहीं मिल रहा है। 

गांव के लोगों की तस्वीर (फोटो साभार: सोशल मीडिया)

कंपनी के झूठे वादे 

बेमरा गांव के निवासी सुमन और सुधीर बताते हैं कि कंपनी ने पावर प्लांट शुरू करने से पहले गांव के सभी लोगों को इकट्ठा करके मीटिंग की थी। इस दौरान सड़क, नाली, पानी और बिजली की सुविधा मुफ्त में देने का वादा किया गया था। साथ ही गांव के लोगों को रोजगार देने का भी आश्वासन दिया गया था। लेकिन जब से प्लांट चालू हुआ है, गांवों में किसी भी प्रकार का विकास नहीं हुआ है। यह पांच गांव बेमरा, कपारी, खान सेमरा, बेरूई, और लोहगरा हैं, जहां लोगों ने अपने विकास की उम्मीदों को लेकर अपनी जमीन दी थी।

बेमरा गांव में जलभराव की समस्या 

बेमरा गांव की आबादी लगभग तीन हजार है, और यहां के मुख्य रास्तों पर स्थिति काफी गंभीर है। कंपनी से निकलने वाले गंदे पानी से कम से कम तीन किलोमीटर तक के रास्ते में पानी भरा रहता है, जिससे हर दिन बच्चे और बुजुर्ग गिरकर घायल हो जाते हैं, और उनके हाथ-पैर टूट जाते हैं। यही रास्ता बच्चों के स्कूल जाने का है, और इसी पर चलते हुए उनके कपड़े, किताबें और कापियाँ खराब हो जाती हैं।

इसके अलावा, गांव में नालियाँ गंदगी से भरी हुई हैं और सफाई की कोई व्यवस्था नहीं है। त्यौहारों के समय भी सफाई नहीं की जाती, जिससे समस्या और बढ़ जाती है। इस कारण बच्चों और बुजुर्गों के गिरने की घटनाएं अधिक होती हैं।

बेरूई गांव में पानी की समस्या और अंधेरा

बेरूई गांव की निवासी रानी का कहना है कि गर्मियों में पीने के लिए पानी की कमी हो जाती है, और ग्रामीणों को नहर का पानी पीने के लिए मजबूर होना पड़ता है। बारिश के मौसम में स्थिति और खराब हो जाती है। बारिश का पानी घरों में भर जाता है, जिससे कच्चे मकानों के गिरने का खतरा रहता है। कंपनी ने चारों ओर बड़ी-बड़ी बाउंड्री दीवारें बना दी हैं, जिससे पानी का निकास बंद हो गया है और गांव में अंधेरा और असुविधाएं बढ़ गई हैं।

कपारी गांव में रोजगार की समस्या

कपारी गांव के निवासी लाला का कहना है कि जिन किसानों की दस बीघा से अधिक जमीन ली गई, उन्हीं के परिवार के एक सदस्य को नौकरी दी गई है। लेकिन वेतन केवल दस हजार रुपये है, जो आज के समय में महीने का खर्च चलाने के लिए पर्याप्त नहीं है। गांव वाले कई बार स्थानीय विधायक से इस मुद्दे पर चर्चा कर चुके हैं, लेकिन स्थिति जस की तस बनी हुई है।

अल्ट्राटेक मीटिंग कंपनी से स्वास्थ्य खतरा

गांव के लोगों का आरोप है कि अल्ट्राटेक मीटिंग कंपनी का पानी भी पूरे गांव के पास से बहता है। ग्रामीणों का कहना है कि अगर जानवर उस पानी को पी लेते हैं, तो बीमार हो जाते हैं। ग्रामीणों का मानना है कि कंपनी के आने से उन्हें कोई फायदा नहीं हुआ, बल्कि केवल नुकसान ही हुआ है।

ग्राम प्रधान और विधायक का कहना 

कपारी के प्रधान सुभाष बताते हैं कि ग्राम पंचायत को मिलने वाले बजट से जो भी कार्य संभव होता है, वह करते हैं। हाल ही में 25 आवास स्वीकृत किए गए हैं और नाली और सड़कों के लिए कार्य योजना भेजी गई है। विधायक वाचस्पति का कहना है कि कंपनी के शुरुआत में डीएम को बुलाकर मीटिंग की गई थी, जिसमें यह वादा किया गया था कि कंपनी इन पांच गांवों का संपूर्ण विकास करेगी, लेकिन आज तक कुछ नहीं हुआ है। 

विधायक वाचस्पति की तस्वीर (फोटो साभार: खबर लहरिया)

विधायक का कहना है कि उन्होंने विधानसभा में इन गांवों के विकास की मांग को उठाया है और पूरी कोशिश करेंगे कि इन गांवों का विकास करवाया जाए।

ग्रामीणों का कहना है कि कंपनी द्वारा किए गए विकास के वादे अधूरे रह गए हैं। जमीन देने के बाद भी गांवों में बुनियादी सुविधाओं की कमी बनी हुई है। कंपनी आने से गांव की हालत और खराब हो गई है। ग्रामीण अपनी समस्याओं को लेकर लगातार आवाज उठाते आ रहे हैं, लेकिन अभी तक उनकी सुनवाई नहीं हो पाई है। अब ग्रामीण उम्मीद लगाए बैठे हैं कि जल्द ही उनकी समस्याओं का समाधान होगा और गांवों का विकास होगा, जैसा कि उन्हें वादा किया गया था।

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