खबर लहरिया जवानी दीवानी कालिंजर मेला की व्यवस्था पस्त, पानी तक को तरसे लोग

कालिंजर मेला की व्यवस्था पस्त, पानी तक को तरसे लोग

बांदा जिला का कालिंजर किला में 12 से 16 नवंबर तक कालिंजर मेला लगा है। यह मेला ऐतिहासिक और पारंपरिक है। कई दशक से होता चला रहा है। यहां पर गैरसरकारी मेला कमेटी बनी हुई है जो पूरी व्यवस्था देखती है। 

 

इस साल मेला दिलचस्प होने वाला था, क्योकि डीएम की अध्यक्षता में कालिंजर को महोत्सव का नाम दिया। इसकी तैयारी और प्रचार प्रसार बहुत जोरो से चल रहा था।  

 

कालिंजर दुर्ग के अच्छे दिन आने के आसार हैं। केंद्र और राज्य सरकारों ने दुर्ग को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए 8 करोड़ 77 लाख रुपये स्वीकृत किए हैं। प्रशासन इस बजट से किले की कायाकल्प की तैयारियों में जुट गया है। साथ ही 12 नवंबर से शुरू हो रहे 5 दिवसीय कालिंजर महोत्सव की तैयारियां भी की जा रही हैं।

 

डीएम के हिसाब से कालिंजर दुर्ग महोत्सव में पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए मनोरंजन के भी विशेष इंतजाम होने थे। एयर हॉट बैलून राइडिंग, पैराशूट, हेलीकाप्टर से पर्यटकों का मनोरंजन कराया जाएगा। संगोष्ठी, प्रदर्शनी और सांस्कृतिक कार्यक्रम होने थे। उद्योग, कृषि, शिक्षा, समाज कल्याण, जल संस्थान, पंचायती राज, पशु पालन, स्वास्थ्य, सुपोषण, जल संरक्षण आदि की गैलरी बनेगी। महोत्सव मंच और किले के मार्ग में रोशनी पानी और फायर ब्रिगेड, एंबुलेंस आदि की व्यवस्था रहेगी। 

 

जहां एक तरफ यह सब व्यवस्थाएं और मनोरंजन के साधन होने की वजह से सब लोग बहुत उत्साहित थे, बहुत लोग आने की तैयारी कर रहे थे। वहीं दूसरी तरफ डीएम की जरिए होने वाले मेले को रद्द करने की खबर फैलने से लोगों का उत्साह कम जैसे दिखा। पिछले सालों की अपेक्षा इस साल भीड़ भी कम दिखी। 

 

कालिंजर किला को पर्यटक स्थल जरूर बना दिया गया है लेकिन कोई विकास नहीं हुआ। मेला चलने के समय के लिए भी पीने के पानी, सड़क, बजबजाती नाली, रोड में बहता पानी, शौचालय, बस स्टॉप और साफ सफाई आदि की व्यवस्था कमजोर दिखीं। किले के नीचे से ऊपर जाने के लिए चढ़ाई वाले लगभग साढ़े तीन किलोमीटर रास्ते पर पानी की कोई व्यवस्था नहीं थी। लोग प्यास के मारे व्याकुल हो रहे थे। कुछ स्कूली बच्चे टूर में घूमने आए थे किले के ऊपर भी पानी की टंकियां सूखी पड़ी थीं। लगभग तीन किलोमीटर एरिया में फैले किले के ऊपर भी पानी लोग ढूढ़ते रहे। मेला कमिटी भी परेशान रही इस बात को लेकर कि कोई व्यवस्था नहीं की गई। 

वहां के लोगों का यह भी कहना था कि पूर्व सांसद भैरों प्रसाद ने इस गांव को गोद लिया तब भी बजट का पता नहीं चला क्यों कि यहां पर विकास कार्य नहीं किया गया। तो पर्यटल स्थल बना है तो विकास भी होना चाहिए