बेरोजगारी की समस्या युवाओं के लिए नासूर बनती जा रही है हालात यह है कि शिक्षित युवा बड़ी-बड़ी डिग्री लेने के बाद भी बेरोजगारी से जूझ रहे हैं। काम के अभाव और आज की स्थिति को देखते हुए वाराणसी जिले में एक प्राइवेट कम्पनी ने महिलाओं के लिए रोजगार का द्वार खोला है।
वाराणसी जिले में बेरोजगारी को देखते हुए अचार मुरब्बा बनाने वाली एक कम्पनी ने महिलाओं के लिए रोजगार का द्वार खोला है। उन्हें हर मौसम में सीजनली काम मिल रहा है जिससे वह बहुत खुश हैं, और उनके परिवार का भरण-पोषण हो रहा है।
निर्मला (30 वर्ष) जो गांव खालिसपुर की निवासी हैं उन्होंने बताया कि कुछ दिन पहले से ही कुछ बाहरी लोग इनके गाँव में अदरक काटने का रोजगार देकर गये हैं। महिलाएं अदरक काटती हैं उसके बदले उनको पैसा दिया जाता है। बेरोजगारी इतनी बढ़ गई कि आज के दौर में इंटर, हाईस्कूल तो छोड़ो बड़ी-बड़ी डिग्रियां लेने के बाद भी लोग रोजगार के लिए भटक रहे हैं। निर्मला बताती हैं की बेरोजगारी बढ़ने से कई तरह की चोरी, डकैती जैसी घटनाएं सामने आ रही हैं। कहीं-कहीं तो ऐसा सुनने को मिल रहा है कि बेरोजगारी और कमाई ना होने से लोग हत्या भी कर लेते हैं। निर्मला कहती हैं कि आज की जो स्थिति है वह लोगों के लिए बहुत ही भारी पड़ रही है, क्योंकि पढ़ लिख तो लिए लेकिन कोई रोजगार नहीं है। घर में बैठ कर सोचना पड़ रहा है क्या करें कैसे चलेगा परिवार।
सोनी का कहना है कि इस बेरोजगारी में आदमी बाहर जा रहे हैं कमाने लेकिन वहां भी रोजगार नहीं मिल रहा है। इस गांव में लगभग 500 महिलाएं हैं जो कि हर मौसम में काम करती हैं। कुछ बहरी संस्थाएं कभी चने छीलना, कभी अदरक काटना जैसे काम हर मौसम में देकर जाते हैं। एक मिहीला को 6 किलो मिलता है। एक किलो का छह रुपया आमदनी मिलती है। कभी 10 किलो काट लिया कम ज्यादा या कम काटा तो उस हिसाब से मजदूरी देते हैं। उसी कमाई से महिलाये घर खर्च चला रही हैं।
चुनौतीपूर्ण है अदरक काटने का काम
सोनी का कहना है कि पहले तो उनके पास पैसा नहीं रहता था और जब कुछ आता था तो बच्चे भी रोते थे लेकिन आज इस रोजगार से थोड़ी सक्षम हो गई हैं कि वह अपने बच्चों की मांग पर उनको वह चीज दिला पा रही हैं। एक फैक्ट्री मालिक खुद ही अपना सामान ले आकर पहुंचाते हैं और काटने के बाद उन्हें पैसा भी देते हैं और अपना सामान ले जाते हैं। इन सामानों को काटने में चुनौतियाँ भी बहुत हैं कभी-कभी तो हाथ में भी लग जाता है तो 100-200 की दवा ही हो जाती है। कोई खास काम तो नहीं है लेकिन जो भी रोजगार मिला है इस भुखमरी में उससे यह लोग बहुत ही खुश हैं। आज के समय में तो कहीं मजदूरी भी नहीं है इसलिए वह बना खाकर इसी काम से अपना गुजारा करते हैं।
बेरोजगारी में पढ़े-लिखे लोग और अनपढ़ एक समान- मंजू
मंजू ने हमें बताया कि इस काम से वह अपने बच्चों की जरूरतें पूरी कर पा रही हैं। स्कूल की फीस, कॉपी, किताब का खर्च इसी काम से उठाती हैं। ऐसी स्थिति आ गई है कि इस समय पढ़े-लिखे और अनपढ़ लोगों में कोई अंतर ही नहीं रह गया है। पतियों के लिए कोई नौकरी नहीं है 6 महीना रोजगार है तो छह महीना खाली बैठे हैं पर इस रोजगार से वह संतुष्ट हैं। हर मौसम में यहाँ की महिलाओं को काम मिल जाता है। आम के मौसम में आम काटते हैं, मिर्चा के समय में मिर्चा मिलता है, नींबू काटने के लिए मिलता है और इस समय लोग अदरक काट रहे हैं। इसका अचार भी बनता है और हर चीज में लोग डालते भी हैं।
नंदिनी जो हाई स्कूल तक ही पढ़ी हैं। वह बताती हैं की घूस देकर नौकरी मिल सकती है लेकिन यहाँ खाने के लिए नहीं है तो नौकरी के लिए कहाँ से देंगे। इस कम्पनी से महीने के कभी 3000 तो कहीं 4000 मिल जाता है। इस भुखमरी से बेहतर है ऐसे रोजगार मिलता रहे ताकि परिवार का भरण पोषण होता रहे।
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इस खबर की रिपोर्टिंग सुशीला देवी द्वारा की गयी है।
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