25 सितम्बर 2017 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री सौभाग्य योजना के तहत हर घर को मुफ्त बिजली मिलने का ऐलान किया और यह भी कहा कि देश के 18 हजार गांव के हर घर में बिजली पहुंचेगी। जिसके लिये सरकार ग्रामीण क्षेत्र के लिये 14 हजार करोड़ रूपये खर्च करेगी और शहरी क्षेत्रों के लिये 50 करोड़ रूपये खर्च करेगी।
जिसमें से उत्तर प्रदेश के लिये 18 सौ करोड़ रूपये का बजट सरकार कि तरफ से है, पर ना तो बिजली का पता है ना ही बजट का। सरकार किस तरह कि सौभाग्य योजना की बात कर रही है?
अगर बुंदेलखंड की बात करें तो बिजली के लिये आज भी लोग भटक रहे हैं। जबकि सरकार का कहना है कि बिजली कनेक्शन के लिये लोगों को अधिकारी व विभागों के चक्कर नहीं लगाने होंगे, लेकिन कैसे? जब गांव तक खम्भे, कनेक्शन आये ही नहीं हैं, तो लोगों को बिजली कैसे मिलेगी? हमारा देश अंधेरा मुक्त कैसे होगा?
सरकार का इस योजना को शुरू करने का उद्देश्य था, कि शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएं और महिलाओं के जीवन में रोशनी ला सके। महिलाएं अँधेरे में ना निकलें। यह उद्देश्य तो फुस हो गया। लोग कल भी अन्धेरें में रहते थे। आज भी मोदी जी ने इस लक्ष्य को 31 मार्च 2019 तक पूरा होना बताया है।
सोचने वाली बात यह है कि जो काम पिछले एक साल में नहीं हो पाया। वह तीन महीने में कैसे पूरा हो सकता है?
हमारे पास हजारों ऐसे उदाहरण हैं, जहाँ कि चित्रकूट, बांदा, महोबा, ललितपुर, झांसी, फैजाबाद और बनारस जैसे जिलों में बिजली कनेक्शन के लिये हर रोज लोगों की आवाज सुनाई देती है, पर शायद यह आवाज सरकार को नहीं सुनाई देती हैं?
क्या होगा प्रधानमंत्री सौभाग्य योजना का? क्या कभी देश का हर गांव अंधेरा मुक्त हो पायेगा? या गरीब जनता को सरकार केवल लालीपॉप दिखाती रहेंगी।
– मीरा जाटव, खबर लहरिया संपादक