Mahoba News, Hindi News, Election 2019, Pushpendra Singh Chandel
जिला महोबा ब्लॉक करें गांव पिपरा माफ यहां पर सांसद पुष्पेंद्र सिंह चंदेल ने इस गांव को गोद लिया था और विकास करवाने की पूरी जिम्मेदारी ली थी पर यह गांव आज की बदहाली की हालत झेल रहा है आपको बता दें कि 2015 में लोकसभा का चुनाव भारतीय जनता पार्टी पूर्ण बहुमत से जीते थे जिसमें महोबा तिंदवारी और हमीरपुर लोकसभा क्षेत्र से पुष्पेंद्र सिंह चंदेल सांसद बने थे। उन्होंने महोबा जिला के पिपरा माफ गांव को गोद लिया था और उस गांव में सारी मूल वसुधा देने की कसम खाई थी। पूरे साढ़े 4 साल बीत जाने के बाद आज भी यह गांव विकास के नाम पर बदहाली के हाल झेल रहा है। आपको बता दें कि 5 साल में सांसद पुष्पेंद्र सिंह चंदेल पानी बिजली और सड़क को लेकर थोड़ा बहुत काम करवाया है गांव में जो भी सड़कें बनवाई गई हैं वह गड्ढों में तब्दील हो गई हैं दलित बस्तियों में आज भी लोग कीचड़ से निकलने के लिए मजबूर हैं पूरे गांव में कूड़ा के बड़े-बड़े ढेर लगे हुए हैं नालियां गंदगी से बुजी हुई हैं। स्वास्थ्य व्यवस्था की कोई सुविधा नहीं है।
लोगो का कहना है कि सांसद ने गांव को गोद लेकर बदनाम कर दिया है। क्योंकि जिससे भी हम शिकायत करते है वही कहता है कि सांसद से कहो, वही काम करवाएंगे। जब भी हम मिलने जाते है तो सांसद दिल्ली लखनऊ में रहते है। साढ़े चार साल बीत जाने के बाद सांसद गांव में सिर्फ दो बार आये है। जब कोई देखने नही आया तो विकास कैसे होगा।
इस पूरे मामले को लेकर सांसद कुँवर पुष्पेंद्र सिंह चंदेल से बात की तो का कहना है कि उन्होंने उस गांव में लगभग 70 से 80 लाख रुपए खर्च किया है। इश्क आंखों को किस लिए लिया गया था क्योंकि यह गांव पहले डैम बनने के उस में दोबारा से विस्थापित हुआ है गोद लेने की भावना सिर्फ यह थी कि लोग आपस में किसी तरह की कोई लड़ाई झगड़ा ना करें आपस में श्रद्धा प्रेम भाव के साथ रहे और यह ग्राम आमगांव एमपी के बॉर्डर में था इसलिए इसको गोद लिया गया था हमें खुशी है कि वहां के लोग सारे दुख दर्द और पुरानी रंग से भूलकर आपस में प्रेम के साथ रहते हैं अगर आप बाकी गांव की तुलना उसका से करें तो काफी विकास हुआ है सफाई के मामले को लेकर बात की तो उन्होंने कहा कि हम मानते हैं कि वहां पर सफाई नहीं है पर एग्जाम्पल देते हुए कहा कि जैसे सिर्फ अच्छा स्कूल बना देने से अच्छे टीचर भेज देने से अच्छी ड्रेस लेने से क्या अच्छे फर्नीचर मिल जाने से पढ़ाई नहीं होती है बल्कि परिवार वालों को भी और बच्चे को पढ़ने में खुद ही मिलने चाहिए तभी कोई आगे बढ़ सकता है ऐसी गांव का हाल है कि लोग सहयोग नहीं करते हैं जिससे हर काम पूरी तरह से नहीं हो सकता है। पर यह बजट कहां पर खर्चा किया गया है कोई जानकारी नहीं है।