मज़ाक बनाते हुए द टेलीग्राफ अख़बार के मुख्य पृष्ठ पर एक रोते हुए मगरमच्छ की तस्वीर को कैप्शन के साथ दिखाया गया था जो दिखावटी आंसू व दर्द की तरफ इशारा कर रहे थे। ये हेडलाइन लगभग दो महीने से मणिपुर में चल रही जातीय हिंसा/महिलाओं के साथ हो रही निंदनीय हिंसा पर पीएम मोदी की चुप्पी पर कटाक्ष है।
Manipur Violence: “56 इंच के सीने को दर्द और शर्म से भेदने में 79 दिन लग गए” (It took 79 days for pain and shame to pierce 56 inch skin) – द टेलीग्राफ के पहले पन्ने पर पीएम मोदी के 79 दिनों बाद चुप्पी तोड़ने के लिए उपहास उड़ाते हुए ये लाइनें लिखी गई।
मज़ाक बनाते हुए द टेलीग्राफ अख़बार के मुख्य पृष्ठ पर एक रोते हुए मगरमच्छ की तस्वीर को कैप्शन के साथ दिखाया गया था जो दिखावटी आंसू व दर्द की तरफ इशारा कर रहे थे। ये हेडलाइन लगभग दो महीने से मणिपुर में चल रही जातीय हिंसा/महिलाओं के साथ हो रही निंदनीय हिंसा पर पीएम मोदी की चुप्पी पर कटाक्ष है।
हाल ही में जब मणिपुर से दो महिलाओं को निर्वस्त्र कराकर उन्हें परेड कराने का 4 मई का वीडियो वायरल हुआ तब जाकर पीएम मोदी ने राज्य में महीनों से हो रही हिंसा को लेकर अपनी चुप्पी तोड़ी। आखिर और कितने वीडियो या फोटोज़ सामने आने के बाद इस बात को समझा जाएगा या गौर किया जाएगा कि महिलाओं के साथ बर्बरता की जा रही है? राज्य में हिंसा हो रही है? लोग मारे जा रहे, कितना और?
अगर ये वीडियो सामने नहीं आती तो शायद आज भी कोई कुछ नहीं कहता। जब चुनावी राजनीति चरम सीमा पर है और ऐसे में मणिपुर में महिलाओं के साथ हो रही क्रूर हिंसाओं की वीडियो वायरल हो रही है, तो यह अब हैरान करने वाली बात भी नहीं लगती, क्यों? सत्ताधारी सरकार व पार्टियों की यही तो राजनीति है? कोई कितना चिल्ला ले, कितनी ही बर्बर घटनाएं हो जाए, ये पितृसत्ता का ढोल पीटने वाले समाज के दर्शक व नाम के कहे जाने वाले राजनेता सिर्फ अपने फायदे के समय ही अपना मुंह खोलेंगे।
पीएम मोदी कहते, “मेरा हृदय पीड़ा और क्रोध से भरा हुआ है। यह किसी भी सभ्य समाज के लिए शर्मसार करने वाली घटना है। मैं देशवासियों को यकीन दिलाता हूँ, किसी गुनहगार को बख्शा नहीं जाएगा। मणिपुर की बेटियों के साथ जो हुआ है उसे कभी माफ़ नहीं किया जा सकता।”
#WATCH | Prime Minister Narendra Modi says, "…I assure the nation, no guilty will be spared. Law will take its course with all its might. What happened with the daughters of Manipur can never be forgiven." pic.twitter.com/HhVf220iKV
— ANI (@ANI) July 20, 2023
मणिपुर के सीएम एन. बिरेन सिंह कहते हैं, “वीडियो देखने के बाद इतना खराब लगा, इतना बुरा लगा। यह मानवीयता नहीं है। जो भी गुनहगार ऐसे वाला काम कर रहा है, क्राइम कर रहा है, ऐसे वाले को मौत की सज़ा देंगे।”
#WATCH | Manipur CM N Biren Singh speaks on the viral video, says, "We saw the video and I felt so bad, it's a crime against humanity. I immediately ordered the police to arrest the culprits and the state govt will try to ensure capital punishment for the accused. Every human… pic.twitter.com/02y8knvMD4
— ANI (@ANI) July 20, 2023
ये बयान अगर आज से दो महीने पहले दिए जाते तो शायद, शायद ये थोड़ा दिलासा देते कि देश के कर्त्ता-धर्ता कहे जाने पीएम, खुद को समाज का सेवक कहे जाने वाले मुख्यमंत्री, मंत्री, राजनेता इत्यादि को यह इल्म है कि देश में क्या चल रहा है।
इतना हास्यप्रद लगता है पीएम से यह सुनना है कि उन्हें दर्द हो रहा है। अब आपके द्वारा झलकाये इस दर्द का क्या करें? देश में भाजपा की सत्ता है, मणिपुर में भाजपा की सत्ता है। भाजपा नारी के सम्मान की बात करती है और फिर जब कहीं हिंसा की खबर आती है तो चुप हो जाती है।
मणिपुर के सीएम बिरेन द्वारा कुछ समय पहले छः घंटों तक अपना इस्तीफ़ा देने का भी खेल भी खेला गया था, ये कहते हुए कि वह विफल हो गए। आगे क्या? कुछ नहीं।
आप ये तो मानेंगे नहीं कि आपकी सरकार मणिपुर में हो रही हिंसा को रोकने में नाकामयाब रही है? ये भी विपक्ष की गलती है क्यों? आप दो महीने तक राज्य में चल रही हिंसा को नकारते है, ये आपकी गलती थोड़ी है? बस हिंसाएं थोड़ी और संघीन और मानवीयता की हद पार कर देने वाली होनी चाहिए, तभी आप उसे देखेंगे और दुःख जताएंगे?
मुख्यधारा की मीडिया जो खुद को पत्रकारों का संगठन कहती है, उसकी हिम्मत नहीं हुई अपने ‘सर’, ‘बॉस’ की सरकार पर नाकामयाब होने का सवाल करे, क्यों?
अब ये जो राजनेता दुःख अलापने का ढोंग कर रहे हैं, उसका क्या करें?
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मणिपुर हिंसा अपडेट
जानकारी के अनुसार, इस पूरे मामले में अभी तक 4 आरोपियों को पकड़ा गया है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने वीरवार को मणिपुर सरकार और राज्य पुलिस प्रमुख को नोटिस ज़ारी किया है। मणिपुर के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को नोटिस ज़ारी कर चार हफ्ते के अंदर पूरे मामले की विस्तृत रिपोर्ट मांगी गई है।
एएनआई की रिपोर्ट के अनुसार, मणिपुर के सीएम एन बीरेन सिंह ने कहा, कल रात करीब 1.30 बजे हमने मुख्य अपराधी को गिरफ्तार कर लिया।
भारत के चीफ़ जस्टिस डॉ. धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ ने इस मामले को लेकर कहा कि “सांप्रदायिक हिंसा में महिलाओं को एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल करना, संवैधानिक तौर पर सबसे बड़ा दुरूपयोग है। जो वीडियो सामने आए हैं उनसे हम बहुत परेशान हैं। अगर सरकार कार्रवाई नहीं करती है तो हम कार्रवाई करेंगे।”
लाइव मिनट की 20 जुलाई की रिपोर्ट बताती है कि मणिपुर राज्य में 3 मई से इम्फाल घाटी में केंद्रित बहुसंख्यक मैतेई और पहाड़ियों पर कब्जा करने वाले कुकी लोगों के बीच जातीय झड़पें हो रही हैं। हिंसा में अब तक 160 से ज़्यादा लोग मारे जा चुके हैं।
उदारहण में आप भारत-पाकिस्तान का जब बंटवारा हो रहा था, या गुजरात के दंगों को देख लीजिये, उसमें में भी महिलाओं को निशाना बनाया गया। अब कुछ भी हैरान नहीं करता। मणिपुर में चल रही हिंसा भी अब बस उन उदाहरणों में शामिल हो गई है।
महिलाओं को, उनके शरीर को हमेशा से हिंसा और लड़ाई के उपकरण की तरह इस पितृसत्ता वाले समाज में इस्तेमाल किया जाता आ रहा है। राजनेता चुनाव में महिलाओं के साथ हो रही हिंसाओं, उनकी मौजूदगी को वोट के लिए इस्तेमाल करते हैं और समाज अपनी इज़्ज़त के नाम पर।
यह जो विचार है न कि महिलाएं सिर्फ एक माँ, बहन, बेटी के रूप में ही सुरक्षा का अधिकार रखती है, यह विचारधारा, ये सोच ही सबसे बड़ी दिक्कत है। हर चुनाव में, हर मामले में, हर बात में यह कहा जाता है, “हमारे देश की बेटियों-बहनों की सुरक्षा हमारा दायित्व है, उनका ये अधिकार है, हम उनके लिए ये करेंगे, देश की बेटियों के साथ ऐसा हुआ सुनकर बुरा लगा” इत्यादि, और कितना दिखावा?
महिलाएं इन नामों से भी परे भी देश का नागरिक होने एक नाते सुरक्षा और गरिमा रखने का अधिकार रखती है। महिलाओं को सत्ता हासिल करने के लिए इस्तेमाल करना बंद करो। उन्हें उपकरणों की तरह इस्तेमाल करना बंद करो। यह कहना बंद करो, तुम्हें पता है कि महिलाएं कैसा महसूस करती हैं क्योंकि वो तो ये पितृसत्ता से बना समाज कभी समझ ही नहीं सकता, उसे तो सभ्य समाज के नाम पर बस इस्तेमाल करना आता है।
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