16 नवंबर 2020 यानी आज हर साल राष्ट्रिय प्रेस दिवस के रूप में मनाया जाता है। 4 जुलाई 1966 को भारतीय प्रेस परिषद की स्थापना की गयी थी और 16 नवंबर 1966 से भारतीय प्रेस परिषद ने पूर्ण रूप से काम करना शुरू कर दिया था। प्रेस स्वंत्रता और ज़िम्मेदारी का प्रतीक है। वहीं भारतीय प्रेस परिषद ( प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया ) मीडिया पर नैतिक निगरानी रखने का काम करता है। साथ ही वह इस बात का भी ध्यान रखता है कि कोई भी बाहरी तत्वों से मीडिया की आज़ादी पर कोई प्रभाव या खतरा न पड़े। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (क) में भी ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ का अधिकार दिया गया है। इतना ही नहीं प्रेस को संविधान का चौथा खंभा भी कहा गया है।
स्वतंत्रता, चौथा खंभा, बोलने की आज़ादी का अधिकार सुनने में बहुत अच्छा लगता है। लेकिन जब पत्रकार इनका उपयोग मानव हित के लिए करते हैं तो उन्हीं को सबसे गलत ठहराया जाता है या ये कहें की उनकी बात ही दबा दी जाती है। जिनकी आवाज़ नहीं दब पाती, उन्हें मार दिया जाता है।
आज एक पत्रकार खुले तौर पर सच भी नहीं कह सकता। न उन्हें सरकार सुरक्षा देती है और न ही पुलिस क्यूंकि पत्रकारों के जीवन को कभी सुरक्षा की दृष्टि से देखा ही नहीं गया। प्रेस दिवस के मौके पर आज हम आपको उन पत्रकारों के बारे में बताएंगे जिन्हें अपना अधिकार इस्तेमाल करने, सच सामने लाने और सत्ता के विरुद्ध अपनी आवाज़ उठाने के लिए या तो झूठे मामले में जेल में डाल दिया या तो उन्हें मार दिया गया।
पत्रकार जिन्हें 2020 में मारा गया
- विक्रम जोशी
20 जुलाई 2020 को दिल्ली से सटे गाज़ियाबाद के विजय नगर इलाके में कुछ बदमाशों द्वारा उन पर हमला किया गया। विक्रम को बदमाशों द्वारा पहले माथे पर गोली मारी गयी और उसके बाद उसे बुरी तरह से पीटा गया। हमला रात को हुआ , जब वह अपनी दो बेटियों के साथ घर वापस जा रहे थे। हमले के दो दिन बाद ही अस्पताल में विक्रम की मौत हो गयी। विक्रम जोशी के भाई अनिकेत के मुताबिक विक्रम ने कुछ दिनों पहले कुछ बदमाशों के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट करवाई थी, जो उनकी भांजी के साथ छेड़छाड़ कर रहे थे। पुलिस ने इस मामले में अभी तक नौ लोगों को हिरासत में लिया है।
Ghaziabad: Journalist Vikram Joshi passes away. He was shot at in Vijay Nagar area on 20th July by unknown persons. Nine people have been arrested in the case so far.
— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) July 22, 2020
- रतन सिंह
विक्रम जोशी की मौत के एक महीने बाद ही एक और पत्रकार के हत्या का मामला सामने आ गया। यूपी के जिला बलिया में 24 अगस्त 2020 को हिंदी चैनल के पत्रकार रतन सिंह को धोखे से उसके गाँव के प्रधान के घर के सामने बुलाकर, गोली मारकर हत्या कर दी गयी। पुलिस के अनुसार पुरानी रंजिश में रतन सिंह को मारा गया। इस मामले में पुलिस ने अभी तक दो आरोपी हीरा और अनिल सिंह को गिरफ्तार किया है।
झूठे यूपीए (गैरकानूनी गतिविधि ) के तहत गिरफ्तार पत्रकारों के नाम
- किशोरचंद्र वांग्केम
अक्टूबर 2020 में पत्रकार किशोरचंद्र वांग्केम को भाजपा राजनेता की पत्नी द्वारा किये गए एक वायरल मीडिया पोस्ट का जवाब देने के लिए गिरफ्तार किया गया। पत्रकार पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया था।
- राजीब सरमा
असम के पत्रकार और DY365 के संवाददाता, सरमा को 16 जुलाई, 2020 को एक जिला वन अधिकारी की शिकायत के आधार पर गिरफ्तार किया गया था। सरमा पशु तस्करी और अन्य अवैध गतिविधियों की जांच कर रहे थे। बाद में जब पत्रकार की गिरफ़्तारी पर आलोचना की गयी तो सरकार ने सीबीआई को पूरा मामला सौंप दिया।
- धवल पटेल
धवल पटेल जो की गुजरती समाचार पोर्टल के सम्पादक है, उन पर राजद्रोह का आरोप लगाकर गिरफ्तार किया गया था। 2020 मई की शुरुआत में पटेल ने राज्य के मुख्यमंत्री विजय रुपानी से जुड़ा एक सोचनीय लेख प्रकाशित किया था। फिर अदालत ने कुछ हफ्तों के बाद उन्हें ज़मानत दे दी थी।
- नरेश खोहल
हरियाणा के झज्जर के हिंदी समाचार के फोटो जर्नलिस्ट को यह कहकर गिरफ्तार किया गया कि उसने “उपद्रव पैदा करने” की कोशिश की है। खोहल ने 7 मई 2020 को अपने पड़ोस में हुए पथराव को लेकर पुलिस को सूचना दी थी, जिसे उपद्रव कहते हुए पुलिस ने उसे अपनी हिरासत में ले लिया था। एक महीने की सरकारी जांच के बाद पाया गया कि पुलिस द्वारा फोटो जर्नलिस्ट की गिरफ्तारी सही नहीं थी।
यह है ग्लोबल इमपयुनिटी इंडेक्स का कहना
कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट द्वारा तैयार की गयी ग्लोबल इमपयुनिटी इंडेक्स 2020 की रिपोर्ट का कहना है कि भारत उन दर्जनों देशों में से एक है जो अपने पत्रकारों के हत्यारों के खिलाफ बात करता है और जिसकी स्थिति इस समय बहुत खराब है। अक्टूबर 2020 को कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट ने अपनी रिपोर्ट “गेटिंग अवे” में उजागर किया कि ” जहां पत्रकारों को मौत के लिए छोड़ दिया जाता है और उनके हत्यारे आज़ाद हो जाते हैं”।
भारत इस साल ग्लोबल इमपयुनिटी इंडेक्स 2020 सूचकांक में 12वें स्थान पर है। वहीं भारत पिछले साल वह 13वें स्थान पर था और 2018 में 14वें स्थान पर। इससे यही दिख रहा है कि भारत में जर्नलिस्ट की स्थिति हर साल और भी खराब होती जा रही है। भारत के पड़ोसी, पाकिस्तान और बांग्लादेश 9 वें और 10 वें स्थान पर हैं। (स्त्रोत – न्यूज़ लौंडरी, 28 अक्टूबर 2020 )
1992 से 2020 तक 51 पत्रकारों की हत्या
कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट द्वारा तैयार किये गए डाटा में बताया गया कि साल 1992 से 2020 तक तकरीबन 51 पत्रकारों की हत्याओं का मामला सामने आया है। लेकिन कुछ मामले ऐसे भी हैं जो सामने नहीं आये, जिनकी रिपोर्ट तक दर्ज़ नहीं करायी गयी।
पिछले पांच सालों में 198 हमले
पत्रकार गीता सेशु और उर्वशी सरकार ने पिछले पांच सालों में पत्रकारों पर हुए हमलों पर “गेटिंग अवे विद मर्डर” नामक रिपोर्ट से कुछ निष्कर्ष निकालें हैं। जिसके अनुसार साल 2014 से 2019 के बीच में तकरीबन 198 पत्रकारों पर जानलेवा हमला हुआ है। 198 में से 36 मामले अकेले 2019 में हुए थे। 36 में से छह हमले नागरिकता संसोधन अधिनियम के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन के दौरान किये गए थे। साथ ही कई हमलों में तो रिपोर्ट भी दर्ज़ नहीं हुई और जिनकी हुई उन पर कोई कार्यवाही नहीं की गयी।
प्रेस दिवस पर अमित शाह और प्रकाश जावड़ेकर ने किये ट्वीट
गृह मंत्री अमित शाह ने अपने ट्वीट में लिखा,” ‘#NationalPressDay पर बधाई। हमारी मीडिया बिरादरी अपने महान राष्ट्र की नींव को मजबूत करने की दिशा में अथक प्रयास कर रही है। मोदी सरकार प्रेस की स्वतंत्रता के लिए प्रतिबद्ध है और इसका विरोध करने वालों के खिलाफ है। COVID-19 के दौरान मीडिया की उल्लेखनीय भूमिका सराहनीय है।’
Greetings on #NationalPressDay. Our media fraternity is working tirelessly towards strengthening the foundations of our great nation. Modi govt is committed towards the freedom of Press and strongly oppose those who throttle it.
I applaud Media’s remarkable role during COVID-19.— Amit Shah (Modi Ka Parivar) (@AmitShah) November 16, 2020
वहीं प्रकाश जावड़ेकर ने लिखा, ‘फ्री प्रेस’ हमारे लोकतंत्र की विशेषता और आधारशिला है | #राष्ट्रीय_प्रेस_दिवस , प्रेस की स्वतंत्रता एवं जिम्मेदारियों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करता है। आज सबसे बड़ा संकट है #FakeNews ,पत्रकारों को इसके लिए काम करना चाहिए। सभी पत्रकारों को शुभकामनाएं”।
'फ्री प्रेस' हमारे लोकतंत्र की विशेषता और आधारशिला है | #राष्ट्रीय_प्रेस_दिवस , प्रेस की स्वतंत्रता एवं जिम्मेदारियों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करता है। आज सबसे बड़ा संकट है #FakeNews ,पत्रकारों को इसके लिए काम करना चाहिए। सभी पत्रकारों को शुभकामनाएं।#NationalPressDay pic.twitter.com/oaGUqa3ZBC
— Prakash Javadekar (Modi Ka Parivar) (@PrakashJavdekar) November 16, 2020
नेताओं द्वारा पत्रकारों को राष्ट्रिय प्रेस दिवस पर बधाई तो दी जा रही है लेकिन उन्हें स्वतंत्रता से अपने ज़िम्मेदारी को निभाने की आज़ादी समय-समय पर अपनी आवश्यकता के अनुसार उनसे छीन भी ली जाती है। पत्रकारों के खिलाफ होती हिंसा, हत्याएं और हमले हर साल सिर्फ बढ़ ही रहे हैं। एक तरफ सरकार प्रेस को राष्ट्र की नींव कहती है। वहीं दूसरी तरफ उनकी सुरक्षा को लेकर सरकार ने अभी तक कुछ भी नहीं किया है। इस साल भी अपनी पत्रकारिता करने के दौरान कई पत्रकारों पर गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) एक्ट के तहत झूठा मामला दर्ज़ करके जेल में डाल दिया गया । क्या इसे ही प्रेस की आज़ादी कहा जाता है, जिसकी सरकार आज बधाई दे रही है? प्रेस द्वारा सत्ता के खिलाफ उठायी हर आवाज़ को झूठे मामलों में लपेटकर दरकिनार कर दिया गया है, जहां सच्ची पत्रकारिता का मोल हर पत्रकार को मौत से चुकाना पड़ता है।
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