खूबसूरत वादियों और संस्कृति से ओत–प्रोत है, मध्यप्रदेश का नरवर किला। शिवपुरी जिले से 302 किमी. दूर और ग्वालियर से तकरीबन 82 किमी. दूर, यह किला काली सिंध नदी के पूर्व में 500 फीट की ऊंची पहाड़ी पर बसा हुआ है। पूरा किला 7 किलोमीटर के दायरे में फैला हुआ है। कहा जाता है कि आज से लगभग 200 साल पहले पूर्व दिल्ली–पूना राजमार्ग का प्रमुख नगर नरवर ही था।
किले के नाम और उससे जुड़ा इतिहास
महाभारत में किले की चर्चा राजा नल की राजधानी के रूप की गई है। नरवर को, नलपुल नाम से जाना जाता था। यहां की संस्कृति के अभिलेखों से जगह के नाम के बारे में पता चलता है। 12 वीं शताब्दी में इस पर कचवाह, परिहार और तोमर शासकों का अधिकार रहा। काफ़ी समय तक इस पर मुगलों ने भी राज़ किया। फिर 18वीं से 19वीं शताब्दी में किला मराठों सिंधियों के अधीन आ गया। किले को कचवाहा शासकों ने बनवाया था। इसका पूरा डिज़ाइन राजपूताना है।
किले से जुड़ी है ऐतिहासिक प्रेम कहानी
नरवर किला को नल और दमयंती की प्रेम कहानी की वजह से भी जाना जाता है। दमयंती विदर्भ देश के राजा भीम की पुत्री थी। वहीं, नल निषध के राजा वीरसेन के पुत्र थे। कहा जाता है कि दोनों ही बहुत रूपवान थें। उनकी सुंदरता की चर्चा दूर–दूर तक थी। दोनों एक दूसरे की सुंदरता के बारे में सुनकर ही, एक–दूसरे को बिना देखे ही प्रेम करने लगे थे।
जब दमयंती के स्वयंवर का आयोजन हुआ तो उसमें इन्द्र, वरुण, अग्नि तथा यम भी आए। चारों स्वयंवर में नल का चेहरा धारण करके आए थे। नल की तरह दिखने वाले पाँच पुरुषों को देखकर दमयंती डर गयी। कहा जाता है कि दमयंती के प्यार में इतनी ताकत थी कि उसने देवताओं से शक्ति मांगकर अपने असली प्रेम को पहचाना और उससे शादी कर ली।
दोनों कुछ समय तक ही साथ रह पातें हैं और फिर एक–दूसरे से अलग हो जातें हैं। नल अपने भाई पुष्कर से जुएं में सब कुछ हार जाता है। जिसके बाद दमयंती किसी राजघराने में रहती है और फिर अपने परिवार के साथ रहने लगती है। लेकिन अपना सब कुछ हार जाने के बाद नल गायब हो जाता है। नल को ढूंढने की बात करके दमयंती के पिता उसके स्वयंवर की घोषणा कर देते हैं।
दमयंती से अलग होने के बाद नल को कर्कोटक नाम के सांप ने काट लिया होता है। जिसकी वजह से उसका रंग काला पड़ गया और उसे कोई पहचान नहीं सकता था। वह बाहुक नाम से सारथी बनकर विदर्भ पहुंचा। दमयंती के लिए नल को पहचान पाना मुश्किल नहीं था। उसने अपने प्रेम को पहचान लिया। नल ने अपने भाई पुष्कर के साथ फिर से जुआ खेला और हारी हुई सारी चीजें जीत ली। कहा जाता है कि दमयंती का प्रेम इतना सच्चा था कि नल के रंग से भी उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ा।
किले से जुड़ी मनमोहक बातें
कई सीढ़ियों को चढ़ने के बाद किले तक पहुंचा जाता है। लेकिन सीढ़ियों पर चढ़ने की थकान किले तक पहुंचने के बाद तब खत्म हो जाती है। जब नज़रे वहां की खूबसूरती को अपने अंदर भरने लगती हैं। नरवर किले का पूरा क्षेत्र चार स्थानों में बंटा हुआ है। वह चार स्थान हैं– मचलोक, मदार, गजूर और ढोल अहातों। किले के चारों तरफ मन को मोह लेने वाली हरियाली वादियां हैं। चारों तरफ़ से किला पहाड़ों से घिरा हुआ है। जिसे जितना देखो, उतना ही कम लगता है। नज़रे उन नज़ारों को बार–बार देखना चाहती हैं।
????जैसे यह कुछ स्थान हैं, जहां आप घूमना पसंद करेंगे। तालकटोरा, चंदन खेत महल और कचहरी महल।
????किले के अंदर एक अखाड़ा भी है जहां कुश्ती और मल युद्ध का आयोजन होता था।
????किले में एक ही जगह 8 कुएं और 16 बावरियां हैं। ऐसा कहा जाता कि यहां से 16 सौ पनिहारिन ( पानी भरने वालीं) एक साथ पानी भरती थीं।
????ऐसा कहा जाता है कि किले के अंदर एक पूरा नगर बसा करता था। जिसमें मीणा बाज़ार सबसे मुख्य था। जहां से लोग ज़रूरत की चीजें खरीदते थें।
इस तरह से पहुंचे
ट्रेन से – शिवपुरी स्टेशन
हवाईअड्डा – ग्यालियर एयरपोर्ट
खुलने का समय – सुबह 9 से शाम बजे तक ( वीरवार बंद)
किला, मुख्य जिले से ज़्यादा दूर नहीं है। आप अपने वाहन से भी किले तक पहुंच सकते हैं। ठहरने के लिए आपको पास में होटेल और खाने–पीने की सभी व्यवस्था मिलेगी। जिसे प्रेम कहानियों में दिलचस्पी है तो यह जगह उसके लिए भी है। साथ ही किले में कई भव्य तालाब और डिज़ाइन उकेरे गए हैं कि आप उनके बारे में जाने बिना नहीं रह पाएंगे। पहाड़ों और पेड़–पौधों के बीच बसा ये किला आपको रोमांच से भर देगा।
द्वारा लिखित – संध्या