खबर लहरिया Blog MP News: युवक से पैर धुलवाए और फिर वही पानी पीने को किया मजबूर, ये कैसी सजा? 

MP News: युवक से पैर धुलवाए और फिर वही पानी पीने को किया मजबूर, ये कैसी सजा? 

परसोत्तम कुशवाहा नामक युवक ने गांव के ही अन्नू पांडेय का एक मीम इंस्टाग्राम पर पोस्ट कर दिया था। जिसमें AI तकनीक का इस्तेमाल करके अन्नू को जूते की माला पहने दिखाया गया था। मीम पोस्ट होने के कुछ ही मिनटों में गांव में मामले ने तूल पकड़ लिया।पीड़ित परिवार ने अब तक किसी तरह की शिकायत नहीं की है।

फोटो साभार: सोशल मीडिया

बड़े गर्व से कहा जाता है कि अब भारत में जातिवाद नहीं रहा। कुछ राजनीतिक नेता और कुछ लोग यह तक कहते हैं कि अब सब बराबर है लेकिन जब ऐसी घटनाएं सामने आती हैं तो ये दावे खोखले लगने लगते हैं। मध्य प्रदेश के दमोह जिले के एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। दमोह जिले के पटेरा ब्लॉक के सतरिया गांव का यह मामला है। यहां एक कुशवाहा समाज के युवक को सजा के तौर पर दंड के साथ ब्राम्हण समाज के युवक के पैर धोकर पानी पीने को कहा गया। 

क्या था इसका कारण 

दरअसल परसोत्तम कुशवाहा नामक युवक ने गांव के ही अन्नू पांडेय का एक मीम इंस्टाग्राम पर पोस्ट कर दिया था। जिसमें AI तकनीक का इस्तेमाल करके अन्नू को जूते की माला पहने दिखाया गया था। मीम पोस्ट होने के कुछ ही मिनटों में गांव में मामले ने तूल पकड़ लिया। विवाद बढ़ता देख परसोत्तम ने 15 मिनट के भीतर पोस्ट डिलीट कर दी और सार्वजनिक रूप से माफी भी मांग ली लेकिन बात यहीं नहीं थमी। लोगों ने उसे पकड़कर सजा दी। उसे अन्नू पांडे के पैर धोकर वही पानी पीने को मजबूर किया गया और पूरे समाज से माफी मांगने को कहा गया। इसके अलावा 5100 रुपए का अर्थदंड भी लिया गया। इस पूरे घटनाक्रम का वीडियो भी सामने आया है, जिसमें परसोत्तम को सार्वजनिक रूप से अपमानित किया जा रहा है। गांव के ही कुछ लोग इस दौरान मौके पर मौजूद थे, जिनमें कुशवाहा समाज के लोग भी शामिल हैं। पीड़ित परिवार ने अब तक किसी तरह की शिकायत नहीं की है। उनका कहना है कि वे डर के कारण कार्रवाई नहीं चाहते।

शराब बंद का था विवाद 

यह मामला गांव में लागू शराबबंदी से जुड़ा है। दरअसल गांव वालों ने सर्वसम्मति से शराबबंदी का फ़ैसला लिया था। लेकिन आरोप है कि अन्नू पांडे चोरी-छिपे शराब बेच रहा था। पकड़े जाने पर गांव की पंचायत ने उसे पूरे गांव से माफी मांगने और 2100 का जुर्माना भरने की सजा दी जिसे अन्नू पांडे ने यह सज़ा स्वीकार कर ली। लेकिन कुछ दिन बाद परशुराम कुशवाहा ने अन्नू की एक AI से बनी तस्वीर सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दी जिसमें अन्नू को जूतों की माला पहने दिखाया गया था। तस्वीर वायरल होते ही विवाद भड़क गया। परशुराम ने तस्वीर 15 मिनट के भीतर हटा दी और माफ़ी मांग ली पर तब तक मामला ब्राह्मण समाज के अपमान के रूप में फैल चुका था। इसी कारण से ब्राह्मण समुदाय के लोग एकजुट हुए और पंचायत बुला ली। पंचायत ने परशुराम को ‘प्रायश्चित’ के नाम पर अपमानजनक सजा दी। उसे ब्राह्मण युवक के पैर धोकर पानी पीने और पूरे समुदाय से माफ़ी मागंने के लिए मजबूर किया गया।

पुलिस को नहीं मिली अब तक शिकायत 

NDTV के खबर अनुसार पुलिस और प्रशासन अब तक औपचारिक शिकायत का इंतज़ार कर रहा है। दमोह पुलिस के एक अधिकारी ने कहा कि अब तक मामले में कोई लिखित शिकायत नहीं मिली है लेकिन वीडियो की जांच की जा रही है। यह घटना उस समय सामने आई है जब राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की 2023 की रिपोर्ट बताती है कि देश में अनुसूचित जातियों के खिलाफ अपराध के 57,789 मामले दर्ज हुए जिनमें मध्य प्रदेश 8,232 मामलों के साथ तीसरे स्थान पर है। वीडियो वायरल होने के बाद अब दोनों पक्ष इस मामले को आपसी समझ का मामला बताकर शांत करने की कोशिश कर रहे हैं। इस बीच पीड़ित परसोत्तम कुशवाहा ने खुद एक वीडियो जारी किया है जिसमें उन्होंने कहा है कि अन्नू पांडे उनके पारिवारिक गुरू हैं और उनके बीच गुरु-शिष्य का रिश्ता है। उन्होंने लोगों से अपील की है कि इस वीडियो को सोशल मीडिया पर और ना फैलाया जाए और इसे सामाजिक या राजनीतिक मुद्दा ना बनाया जाए।
परसोत्तम का कहना है कि उन्होंने अपनी गलती मानी और अपनी इच्छा से अन्नू पांडे के पैर धोकर माफी मांगी थी। उनका मकसद किसी को ठेस पहुंचाना नहीं था। उन्होंने एसपी, कलेक्टर और थाना प्रभारी से भी अपील की है कि उनका जो वीडियो वायरल हो रहा है उसे हटवाया जाए।
साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि अगर किसी को उनकी किसी बात या व्यवहार से दुख पहुंचा हो तो वे दिल से माफी मांगते हैं।

बता दें इस तरह का मामला पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी मध्य प्रदेश में एक ऐसी ही घटना सामने आई थी। मध्य प्रदेश के सीधी में एक व्यक्ति के ऊपर उंचे जाति का एक आदमी पेशाब करता है। इस घटना पर खबर लहरिया की टीम ने ग्राउंड रिपोर्टिंग किया है। 

यह मामला सिर्फ एक गाँव या एक व्यक्ति तक सीमित नहीं है यह सवाल खड़ा करता है कि 21वीं सदी में भी जाति के नाम पर अपमानजनक सजा क्यों दी जा रही है।

 

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