खबर लहरिया चुनाव विशेष MP Elections 2023: मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में चुनावी माहौल शांत क्यों? राजनीति रस राय

MP Elections 2023: मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में चुनावी माहौल शांत क्यों? राजनीति रस राय

एमपी विधानसभा चुनाव 2023: इस शो में आज हम बात करेंगे मध्य प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव की। पिछले महीने हम मध्यप्रदेश के पन्ना व छतरपुर और छत्तीसगढ़ के रायपुर, महासमुंद्र, कवर्धा जिलों में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों से रिपोर्टिंग की। दोनों क्षेत्रों में बहुत बड़ा गैप समझ आया। जहां पार्टियां अपना प्रचार करने में शहर की गलियों-दीवारों खंभों को अपने पोस्टर बैनर से भर दिए हैं। कहीं त्योहारों की मुबारकबाद तो कहीं भावी उम्मीदवार। छुटपुट कार्यक्रम के बैनर भी दिखे जैसे कांग्रेस का जन आक्रोश कार्यक्रम तो बीजेपी की आशीर्वाद यात्रा। वहीं अगर गांवों की बात की जाए और खासकर उन गांवों की जो जंगलों के बीच बसे हैं और आदिवासी समुदाय निवास करता है। वहां तक न कभी नेता पहुंचे हैं और न ही पहुंचेंगे।

अब तक लोग अपने क्षेत्र के विधायकों की शक्ल तक नहीं देखी। बस वोट करते हैं तो बड़े नेताओं के चेहरों पर। चाहें वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हों या इंदिरा गांधी रही हों। जिन योजनाओं के नाम पर सरकारें चुनाव लड़ती हैं। यहां तक कि जिनको योजनाओं का पात्र बनाती हैं उन लोगों को इन योजनाओं का लाभ अब तक नहीं मिला।

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वैसे एक बात बताऊं, इन लोगों में सरकार की योजनाओं पर उनको भरोसा नहीं यहां तक कि उनको चाह भी नहीं। वह कहते हैं कि वह सरकार के टुकड़ों पर नहीं पलना चाहते। सरकार खुद उनके टुकड़े जो कि जंगल है जिसकी जमीन और जंगल से मिलने वाली अपार संपदा को छीनकर उनके ही टुकड़ों में पल रही है। ऊपर से ज़ोर-ज़बरदस्ती करके वोट भी लेती है। उनके वोट बिना इनकी सरकार नहीं बन सकती।

अब आइए बीजेपी पार्टी की महिला वोट की राजनीति पर बात करें। योजनाओं का मुखिया महिलाओं को बनाकर उनको अपना वोट बैंक बना लेती है। इस वोट बैंक राजनीति को वह महिलाओं को राजनीति में लाने की बात करती है। महिलाओं की हितैषी खुद को बताती है। रक्षाबंधन के मौके पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने अपनी फोटो पर महिलाओं से राखी बंधवाई, तिलक लगवाया और बदले में ढाई सौ रुपये उनके बैंक अकाउंट में दिए और किसी को दिए भी नहीं मतलब की महिलाओं की भावनाओं से भी खेलते रहे। इतनी गिरी नियत सिर्फ वोट बैंक के लिए सिर्फ बीजेपी पार्टी और उनके नेता ही कर सकते हैं।

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अगर इतने ही हितैषी हो महिलाओं के तो उनको क्यों नहीं चुनाव में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करते हो? क्यों उनको चुनावों में टिकट नहीं देते? क्यों अब तक महिला आरक्षण बिल की चर्चा सिर्फ चुनावी मुद्दे तक सीमित है। अब तो महिला आरक्षण के अंदर जाति आरक्षण की भी बात हो रही है। सिर्फ राष्ट्रपति पद को महिला से भर देना या फिर बड़े स्तर पर कुछ महिलाओं को खड़ा करके खानापूर्ति करने से महिला वोट की राजनीति सब समझते हैं। फिर क्यों नहीं उन महिलाओं को जागरूक किया जाता जो किसी भी चुनाव में वोट सिर्फ नरेंद्र मोदी और इंदिरा गांधी के नाम करती है? क्यों नहीं हक से कह पाती कि अगर वह प्रधान या सरपंच पद पर हैं तो उसका नेतृत्व भी वही करेंगी?

 

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