स्कूल में इस बार यहां पढ़ने वाले बच्चों को किताबें नहीं मिली हैं। नतीजा यह है कि बच्चे पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं और शिक्षक भी असहाय महसूस कर रहे हैं।
रिपोर्ट – आलीमा, लेखन – रचना
सरकारी स्कूल का मुद्दा वर्तमान में काफी चर्चा में है। यूपी में पांच हजार सरकारी स्कूलों को मर्ज करने की बात चल रही है और छत्तीसगढ़ में चार हजार स्कूलों को बंद कराया जा रहा है। ये बातें इसलिए की जा रही है क्यों कि वर्तमान में देश की शिक्षा की हालत बेहद चिंताजनक है। सरकार के द्वारा शिक्षा को लेकर किए हुए वादों को देखकर ही माता-पिता अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजते हैं। ख़ासकर वो परिवार जो दो वक्त की रोटी जुटाने में जद्दोजहद करते हैं। उन्हें लगता है कि कम से कम उनके बच्चे पढ़-लिखकर आगे बढ़े। मगर क्या होगा जब स्कूल में किताबें ही ना हों?
दरअसल मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले के सारणी दरवाजा में स्थित एक सरकारी प्राथमिक स्कूल की स्थिति निराशाजनक और गंभीर है। खबर लहरिया द्वारा छतरपुर में ग्राउंड रिपोर्ट से पता लगा कि छतरपुर जिले के सारणी दरवाजा में एक सरकारी प्राथमिक स्कूल है जहां 1 से 8 तक की कक्षा चलती है। इस स्कूल में इस बार यहां पढ़ने वाले बच्चों को किताबें नहीं मिली हैं। नतीजा यह है कि बच्चे पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं और शिक्षक भी असहाय महसूस कर रहे हैं।
70% किताबें लेकिन 100% साइन, शिक्षक भी परेशान
शिक्षकों का कहना है कि किताब तो हमें मिल रही है लेकिन हमसे कहा जा रहा है कि आपको 70 प्रतिशत किताब दी जाएगी और 100 प्रतिशत साइन करवाया जाएगा इसलिए वे लोग किताबें ले नहीं रहे क्यों कि 30 प्रतिशत किताबें कहां से लाएंगे।
स्कूल के शिक्षकों से बात करने पर स्कूल के प्रिंसिपल (प्रधानाचार्य) बताते हैं कि स्कूल में बच्चों के लिए पूरी किताब नहीं दी जा रही। उन्हें अब तक सिर्फ 70 प्रतिशत किताबें मिली हैं। उन्होंने कहा “मैं यहां पर प्रिंसिपल पद पर हूं और यहां पर अभी एक से आठ तक की किताबें मिली नहीं है। हमें सिर्फ 70% किताबें मिल रही हैं लेकिन हम लोगों से शिक्षा विभाग द्वारा कहा जाता है कि 100% किताबें मिलते हैं ऐसा दस्तावेजों पर साइन करें। ऐसे में हम किताबें नहीं ले रहे क्योंकि ये गड़बड़ी है, धोखाधड़ी है।” उन्होंने आगे बताया कि बच्चों का कोर्स शुरू नहीं हो पाया है और तिमाही परीक्षा सिर पर है। उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा “जब किताबें नहीं होंगी तो बच्चे क्या पढ़ेंगे और परीक्षा में क्या लिखेंगे?”
बच्चों और शिक्षकों की परेशानियां
स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों से भी बात की गई जिसमें से एक छात्र सुनील अहिरवार ने कहा कि “हमको स्कूल से किताब नहीं मिली और हमारी पढ़ाई रुक रही है। कोर्स भी नहीं हो पा रहा है और बाहर से किताब इतनी महंगी है कि हम लोग गरीब लोग हैं हम लोग नहीं ख़रीद पाएंगे।” बाकी बच्चों ने भी सवाल करते हुए कहा कि जब सरकारी स्कूल है तो किताबें भी सरकार से मिलनी चाहिए।
कक्षा दूसरी की शिक्षिका उमा शिवहरे (उम्र 45 वर्ष) ने बताया जब किताबें होती हैं तो वे स्कूल और घर दोनों के लिए बच्चों को होमवर्क देते हैं। अब किताबें ही नहीं हैं तो बच्चे सीख ही नहीं पा रहे। उन्होंने आगे कहा कि ये बच्चे गरीब घरों से आते हैं किताबें बाहर से खरीदना उनके लिए बहुत मुश्किल है। उनका कहना है “बच्चों को रोज कुछ नया सीखना बहुत मुश्किल हो रहा है क्योंकि किताबें नहीं है तो मैं किस तरह से बच्चों को बताऊं क्या क्या पेपर में आएगा और क्या नहीं ये बताना मेरे लिए मुश्किल हो रहा है। हम लोग ने काफी बार शिक्षा विभाग के अधिकारियों से कहा है की किताब दे दीजिए पर कोई सुनवाई नहीं हो रही है। कुछ बच्चों को मिल जाती है और कुछ बच्चों को नहीं मिल पाती।”
सरकार के दावे और हक़ीकत
हर साल सरकार यह दावा करती है कि छात्रों को मुफ्त किताबें दी जाएंगी। लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही है। कई सरकारी स्कूलों में या तो किताबें समय पर नहीं पहुंचतीं या अधूरी आती हैं। कुछ जगहों पर पहली से पांचवीं कक्षा तक की किताबें तो आई ही नहीं हैं जिसके कारण बच्चों को पढ़ाई करने में काफी दिक्कत हो रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले कई गरीब परिवारों के पास निजी किताब में खरीदने का साधन नहीं है माता-पिता सरकार से उम्मीद करते हैं कि समय पर किताब मिले ताकि उनके बच्चे की शिक्षा अधूरी ना हो अगर परिजन बाहर से किताब खरीद पाते तो सरकारी स्कूल में पढ़ते ही क्यों।
शिक्षा विभाग से मिली जानकारी
शिक्षा विभाग के अधिकारी के. के. अभिनेत्री से बात करने पर उन्होंने बताया कि हर स्कूलों में किताब पहुंच गई हैं। वहां से जितने परसेंट किताब है टोटल छात्रों के अनुपात में 80 प्रतिशत किताब दे दी गई है। यह किताबें ऐसी ही आती है। अगर बच्चे 80 प्रतिशत हैं तो 80 प्रतिशत किताब जाएगी प्रत्येक बच्चे को किताब देना अनिवार्य है। उन्होंने आगे कहा अगर कहीं किताबें नहीं पहुंची है तो हम जांच करेंगे और जरूरत पड़ने पर किताबें पहुंचाई जाएंगी।
स्कूलों से आ रही जानकारी कुछ और ही कहानी कह रही है। इस ग्राउंड रिपोर्ट से साफ है कि सरकारी स्कूलों में किताबें ना मिलना बच्चों के शिक्षा पर सीधा असर डाल रहा है। सवाल उठता है कि जब हर साल मुफ़्त में सरकारी स्कूलों में किताबें देने का दावा किया जाता है तो फिर बच्चों को समय पर किताबें क्यों नहीं मिल रहीं?
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