खबर लहरिया Blog MP, Balaghat News : बालाघाट सरकारी जिला अस्पताल में प्रसव के दौरान बच्चे की मौत, महिला डॉक्टर पर ऑपेरशन न करने का आरोप

MP, Balaghat News : बालाघाट सरकारी जिला अस्पताल में प्रसव के दौरान बच्चे की मौत, महिला डॉक्टर पर ऑपेरशन न करने का आरोप

मध्य प्रदेश के जिला सरकारी अस्पताल बालाघाट में आई एक गर्भवती महिला के गर्भ में पल रहे बच्चे की मौत हो गई। दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट में सामने आया कि गर्भवती महिला का ऑपेरशन करने से महिला डॉक्टर ने मना कर दिया। गर्भवती महिला के परिजनों ने आरोप लगाया कि डॉक्टर ने कहा कि ड्यूटी का समय खत्म हो गया है। यह घटना सोमवार 1 दिसंबर की है।

बालाघाट जिला अस्पताल की तस्वीर (फोटो साभार : सोशल मीडिया इंस्टाग्राम lalburra481441_balaghat अकाउंट)

“ड्यूटी खत्म, नहीं होगा इलाज” – महिला डॉक्टर पर आरोप

दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार गर्भवती महिला को ऑपरेशन थियेटर से वापस भेजा गया। गर्भवती महिला की चचिया सास गीता डहरवाल ने बताया, “बहू को सोमवार सुबह 4-5 बजे के बीच प्रसव पीड़ा शुरू हुई। जब उसे रक्तस्राव होने लगा तो हम उसे जिला अस्पताल लेकर आए। आशा कार्यकर्ता अनीता जामुनपाने भी हमारे साथ थीं। अस्पताल पहुँचकर हमने तुरंत ऑपरेशन करने को कहा। वहाँ मौजूद डॉ. रश्मि बाघमारे ने ड्यूटी खत्म बोलकर झरना (गर्भवती महिला) को ऑपरेशन थियेटर से वापस भेज दिया।”

कुछ देर बाद एक और डॉक्टर आई। उसने ऑपरेशन किया लेकिन तब तक बच्चा गर्भ में ही मर चुका था।”

आशा कार्यकर्ता अनीता जामुनपाने ने बताया “जब हमने डॉ. रश्मि बाघमारे से ऑपरेशन करने को कहा तो उन्होंने कहा कि उनकी ड्यूटी खत्म हो गई है। जब मैंने उन्हें बताया कि झरना की हालत गंभीर है तो उन्होंने बदसलूकी शुरू कर दी।”

आशा कार्यकर्ता ने सीएमएमएचओ डॉ. परेश उपलाप को मामले की जानकारी दे दी है।

महिला डॉक्टर ने लगाए गए आरोप को किया ख़ारिज

महिला डॉक्टर डॉ. रश्मि बाघमारे ने लगाए आगे आरोप को गलत बताया और कहा कि “जब महिला को अस्पताल लाया गया तब तक उसके गर्भ में पल रहे बच्चे की धड़कन बंद हो चुकी थी। मैं सुबह 10 बजे तक ड्यूटी पर थी।”

फिलहाल इस मामले पर सीएचएमओ डॉ. परेश उपलाप ने कहा कि वे शहर से बाहर हैं और लौटने के बाद मामले की जांच करेंगे।

डॉक्टर को भगवान का दर्जा दिया जाता है वही भगवान यदि किसी महिला के दर्द को नज़रअंदाज कर दे तो व्यवस्था पर सवाल उठते हैं। सवाल ये भी उठता है कि क्या सरकारी अस्पताल में और महिला डॉक्टर उस समय मौजूद नहीं थी और अगर नहीं थी तो क्यों? यदि कोई और महिला डॉक्टर भी मौजूद होती तो समय पर इलाज मिलने पर बच्चे की जान बचाई जा सकती थी।

यह पहला मामला नहीं

मध्य प्रदेश के जिला अस्पताल की व्यवस्था पर उठे यह सवाल पहली बार नहीं है। इससे पहले 11 नवंबर को किरनापुर की किरण डोंगरे के गर्भ में पल रहे बच्चे की ऑपरेशन में देरी के कारण मौत हो गई थी। उस मामले में डॉ. गीता बारमाटे को सस्पेंड कर दिया गया था।

मध्य प्रदेश के छतरपुर जिला अस्पताल में भी व्यवस्था ख़राब

खबर लहरिया की रिपोर्ट में भी कई बार सामने आया है कि मध्य प्रदेश में सरकारी अस्पताल में मरीजों की सुविधा के लिए कोई इंतजाम नहीं है जिसकी वजह से खासकर एक्सीडेंट से प्रभावित लोग और गर्भवती महिलाएं परेशान रहती हैं। सरकारी अस्पताल को लोग इसलिए चुनते हैं क्योंकि वहां पैसे कम लगते हैं लेकिन वहां स्वास्थ्य और सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है। इसकी सच्चाई अस्पताल जाकर ही पता चलती है। यहां पर आए मरीज और परिजन अस्पताल की व्यवस्था को लेकर अक्सर सवाल उठाते हैं लेकिन उन पर ध्यान नहीं दिया जाता।

MP / Chhatarpur News : जिला अस्पताल छतरपुर की तीसरी–चौथी मंज़िल पर पानी नहीं, डिलीवरी और एक्सीडेंट मरीज सबसे ज़्यादा परेशान

एमपी के जिला अस्पताल छतरपुर में महिला सुमन ने बताया कि उनकी बेटी की डिलीवरी के बाद उसे चौथी मंज़िल पर शिफ्ट किया गया। वे कहती हैं कि “घर वाले खाना और पानी लाते हैं लेकिन पानी खत्म होने पर नीचे जाना पड़ता है। ऊपर किसी भी वार्ड में पीने का पानी नहीं है। हमने कई बार कहा लेकिन जवाब मिलता है -‘पानी नीचे से लो’। अब बताओ मरीज को छोड़कर कैसे जाएँ?”

कई बार ये भी शिकायत आती है कि इस अस्पताल में डिलीवरी के बाद महिलाओं को बाहर भेज दिया जाता है और उन्हें बेड तक भी नहीं मिलता। उन्हें नीचे लेटने के लिए कह दिया जाता है। दिखने में इस अस्पताल की इमारत चार-पांच मंजिल तक है। अस्पताल में इतनी भीड़ के बावजूद कोई व्यवस्था नज़र नहीं आती।

मध्य प्रदेश: छतरपुर जिला अस्पताल की व्यवस्था में कमी, गर्भवती महिलाओं पर इसका असर

मीराबाई ने कहा “मुझे तीन दिन हो गए हैं लेकिन अभी तक मेरा अल्ट्रासाउंड नहीं हुआ है। मेरी डिलीवरी होने वाली है आखिरी महीना चल रहा है। डॉक्टर ने लिखा था कि अल्ट्रासाउंड करवा लो लेकिन अब तक नहीं हुआ। अगर आज नहीं हुआ तो हमें प्राइवेट में जाकर करवाना पड़ेगा।”

जिला अस्पताल छतरपुर में अस्पताल के अंदर अल्ट्रासॉउन्ड के कमरे के बहार इंतजार में बैठे लोग (फोटो साभार : अलीमा तरन्नुम)

देश में सरकारी अस्पतालों की तस्वीर कुछ ऐसी ही है जहां बाहर की बिल्डिंग भले ऊंची हो लेकिन व्यवस्था एक दम ठप है। आखिर कब तक तकलीफ में भी मरीजों को अस्पताल में भी इस तरह की व्यवस्था का सामना करना पड़ेगा? सरकार की ऐसी व्यवस्था के चलते ही लोगों का सरकार की सुविधा पर से विश्ववास उठ गया है।

 

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