बिजली निजीकरण को लेकर बिजली कर्मचारी और उत्तर प्रदेश विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे का विरोध प्रदर्शन जारी है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, उनका आरोप है कि निजीकरण करने के लिए कई संविदा कर्मचारियों बिजली कर्मचारियों को हटाया जा रहा है। इसके साथ ही चंडीगढ़ और राजस्थान में भी बिजली विभाग के निजीकरण को लेकर प्रदर्शन हो रहा है।
यूपी सरकार द्वारा नुकशान झेल रही डिस्कॉम – दक्षिणांचल (आगरा) और पूर्वांचल (वाराणसी) के निजीकरण का प्रस्ताव रखा गया था जिसे वापस लेने की मांग के लिए काफी दिनों से कर्मचारी और इंजीनियर प्रदर्शन कर रहे हैं।
निजीकरण होने से कर्मचारियों की नौकरी खतरे में
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे ने आरोप लगाया है कि, “1,200 से ज़्यादा अनुबंध कर्मचारियों (जिन कर्मचारियों को एक निश्चित समय अवधि के लिए रखा गया है) को पहले ही नौकरी से निकाल दिया गया है। उनमें से कुछ ऐसे है जिनकी अभी 55 साल भी पूरी नहीं हुई है। ऐसे फैसले से 20,000 नौकरियाँ ख़तरे में पड़ सकती हैं।”
उन्होंने आगे बताते हुए कहा कि जिन्हें नौकरी से निकाला गया उनमें से कई कर्मचारी कई सालों से कम वेतन पर काम कर रहे थे। उनमें से कुछ ऐसे भी है जो काम के दौरान विकलांग भी हो गए। उन्होंने आने वाले समय के बारे में भी कहा कि निजी कंपनियों के दबाव से स्थायी कर्मचारियों को भी निकाला जा सकता है।
आपको बता दें कि यह उत्तर प्रदेश सरकार ने बढ़ते घाटे के कारण दो डिस्कॉम यानी दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (डीवीवीएनएल) और पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (पीयूवीवीएनएल) का निजीकरण करने का फैसला किया है।
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यूपी के कई शहरों में प्रदर्शन
यूपी में बिजली के निजीकरण को लेकर कई हफ़्तों से प्रदर्शन हो रहे हैं। हाल ही में कल सोमवार 3 फरवरी 2025 को लखनऊ, वाराणसी, आगरा, मेरठ, गोरखपुर, बरेली, कानपुर और झांसी समेत कई जिलों में विरोध प्रदर्शन हुए थे।
ग्रामीणों पर बिजली निजीकरण का असर
बिजली की पहुँच आज भी यूपी के कई गांव तक नहीं है। यदि निजीकरण हो जायेगा तो हो सकता है कि वहां तक बिजली कभी पहुँच ही न पाए। ग्रामीण इलाकों में आज भी यदि बिजली है तो बस नाम मात्र, कई दिनों तक बिजली नहीं आती है। लोगों को अँधेरे में रहना पड़ता है। ग्रामीण बस दिन की रोशनी में अपना सारा काम निपटा लेते हैं अँधेरा होने तक, क्योंकि बिजली का भरोसा नहीं कब धोखा दे दे और उनका काम अधूरा रह जाए।
यूपी के कई गांव ऐसे भी हैं जहां बिजली आती नहीं, फिर भी उनके घर बिजली बिल जरूर आता है। ऐसे में निजीकरण होने के बाद बिजली के दाम बढ़ सकते हैं जिससे वे बिजली भरने में असमर्थ हो जाएंगे और बिजली का पहुंचना उन तक और मुश्किल हो जायेगा।
सरकार, सरकारी कंपनियों का जिम्मा निजी कमापनियों को सौंप रही है लेकिन क्या निजी कंपनियों के हाथ में आने के बाद बिजली दरों और कर्मचारियों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा?
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