#MeToo बुंदेलखंड का पहला भाग- जिसमे महिलाओं के खिलाफ हो रही हिंसा और प्रताड़ना को दर्शाया जाएगा। आज के दौर में हर महिला कार्यस्थल पर हो रहे इस उत्पीडन का शिकार बन रही है। ऐसे में खबर लहरिया आप सभी के समक्ष बुंदेलखंड की एक ऐसी कहानी को पेश करना चाहता है, जिसने इस #MeToo के दौर में एक नया रूप ले लिए है। एक ऐसी कहानी जिसमे अभी तक ये स्पष्ट नहीं कि इसमें पीडिता आत्महत्या का शिकार हुई या हत्या का?
एक ऐसी कहानी जिसमे एक महत्वकांक्षी और कामकाजी महिला के बारे में बताया गया है जिसे आखिर में अपने इस हुनर, अपने इस जज़्बे के लिए बहुत सी कीमतें चुकानी पड़ी हैं। आखिर क्यों इस दौर में भी महिलाएं हो रही हैं हिंसा का शिकार?
सनसनी खबर और इस तेज़ी से चल रहे मीडिया के दौर में, खबर लहरिया आपके सामने एक ऐसी कहानी पेश करना चाहता है ,जिसकी सच्चाई तो हम सभी जानते हैं लेकिन उसे दिखाना कोई नहीं चाहता है। एक ऐसे अपराध की घटना, जिसके बारे में जानना–पहचानना हम सबके लिए बहुत ज़रूरी है। आइये आगे बढ़ते हैं और जानते हैं आखिर क्या है इन सबकी सच्चाई जो हम सबसे अब तक छुपी थी।
सितम्बर
इन सबकी शुरुआत सितम्बर के महीने में हुई।
4 सितंबर की वो शाम – जब तनुश्री दत्ता को अपनी उस यौन उत्पीड़न की कहानी को सुनाये कुछ ही समय हुआ था। उनकी वो दर्दनाक दास्ताँ जिसमे कैसे इस दौर की महिला को अपने खिलाफ हो रहे इस हिंसा को सहना पड़ रहा है। उनकी इस दास्ताँ को सुनाने के लिए भले ही पहले उन्हें कोई मौका नहीं मिला। लेकिन अब #MeToo के दौर में उन जैसी हर महिला को अपनी आवाज़ उठाने का मौका मिला है। आखिर कब तक वो अपनी इस चुपी को थामे रखती?
लेकिन बताया जाता है ठीक उसी दिन , नीतू शुक्ला नामक एक महिला कांस्टेबल की लाश , उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के एक थाने में लटकी हुई पाई गई। #MeToo के दौर में भी ऐसी घटना का सामने आना केवल हमारे लिए ही नहीं सभी के लिए काफी चौकाने वाला है।
नीतू की उम्र अभी केवल 22 साल ही थी। और इस उम्र में इतना बड़ा फैसला लेना क्या जायज़ था?
थाना प्रभारी प्रतिमा सिंह के निर्देशन में – कमासिन थाने पर तैनात तीन महिलाओं में से एक, नीतू भी थी। इस घटना के तुरंत बाद ही नीतू के शव को पोस्टमॉर्टेम के लिए भेज दिया गया था। हालाँकि इस घटना के बाद, नीतू के परिवार वालों को कोई जानकारी नहीं दी गई थी। नीतू के परिजनों को इसके बारे में बाद में पता चलते ही बहुत दुःख हुआ। उन लोगों के लिए इस सच का सामना करना काफी मुश्किल था। लेकिन असल सवाल तो ये उठाया गया कि आखिर क्यों उसके परिवार वालों को इस घटना के बारे में सूचित नहीं किया गया ? क्यों पुलिस प्रशासन ने उनसे इस बात को छुपाया? क्या परिवार वालों को इतना भी हक़ नहीं कि वो अपनी ही बेटी को उसके अंतिम समय में विदा कर सकें ? ऐसे कई और भी सवाल नीतू के परिवार वालों द्वारा उठाये गए हैं।
हालाँकि घटना के बारे में सूचना मिलते ही नीतू के भाई राहुल, जल्द ही लखनऊ से ट्रेन पकड़ मौके पर पहुंचे। और वहां पहुँचते ही उन्होंने अपने सवालों के जवाब मांगने चाहे कि आखिर कैसे उसकी मृत्यु हुई और उन्हें इस बारे में पहले कोई सूचना क्यों नहीं दी गई। ऐसे में उन्होंने नीतू के सहकर्मियों पर ही एक सोची समझी साज़िश का आरोप भी लगाया है। उनके अनुसार नीतू ने आत्महत्या नहीं की थी बल्कि उनके साथ काम कर रहे सहयोगियों ने ही उनकी हत्या की थी।
मीडिया द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक ये सामने आया कि नीतू ने अज्ञात कारणों की वजह से आत्महत्या कर ली थी।
अक्टूबर
बताया जाता है कि नीतू शुक्ला कांड सितम्बर और अक्टूबर के दौरान मीडिया में काफी प्रचलित रहा था। जिसके चलते मीडिया ने कई बार इस घटना को और इससे जुड़े वीडियो को दिखाया था। इन सभी वीडियो में ज़्यादातर उनके प्रेम सम्बन्ध से जुडी मनघड़त कहानियों को दर्शाया गया। जिसमे उनके प्रेमी पर हत्या की साज़िश का आरोप लगाया गया। और ये सभी वीडियो मीडिया के ज़रिये ढेरों लोगों तक पहुंचाई गए हैं। “ऐसे में हम अपनी बेटियों के भविष्य क्या ही सोचें ? उन्हें क्या ही शिक्षा प्रदान कर एक आईपीइस बनाएं ?जब उनकी किस्मत में ये ही सब लिखा है, कि जब उन्होंने हमे इन सब हालत में डालना है?” इस घटना के बारे में ज्यादा जानकारी हासिल न कर पाने की वजह से, कई पुरुष रिपोर्टरों ने इस घटनों को इस ढंग से भी दर्शाया है। कहानी में कुछ दिलचस्प ढूंढ न पाने की वजह से, मीडिया द्वारा इस एंगल को ज़्यादा दर्शाया गया है।
जबकि हमारी शुरुआती जांच से ये पता लगा है कि आत्महत्या को मंज़ूरी देने वाले सभी तर्क असामान्य माने गए हैं। सभी पहलुओं के बारे में सोचते हुए जैसे कि, कम छतवाले कमरे और उसके हिसाब से नीतू की ऊंचाई, चारपाई की नियुक्ति और दुपट्टे की लंबाई, ये सभी तर्क ये स्पष्ट करते हैं कि इस घटना को आत्महत्या का नाम नहीं दिया जा सकता है। इस घटना को आत्महत्या का नाम देकर, किसी बड़े जुर्म को छुपाने की कोशिश की गई है।
इस मामले में सबसे पहले शक की सुई गई कमासिन की स्टेशन ऑफिसर प्रतिमा सिंह पर, जिन्हें “एक ऐसी महिल एस.ओ के रूप में जाना जाता है, जिनका बर्ताव युवा महिला पुलिस कांस्टेबल के प्रति काफी दयनीय है, हालांकि किसी ने भी उनके इस बर्ताव की पुष्टि रिकॉर्ड में कभी नहीं की है”। लखनऊ में नीतू की माँ से बात करने पर भी उनके इस व्यवहार की पुष्टि की गई है। उनके अनुसार नीतू ने कई बार उनसे फोन पर बात करते समय प्रतिमा के इस व्यवहार को लेकर अपना दुःख व्यक्त किया है, कि कैसे वो उन्हें बात-बात पर डांटती हैं, कि वे काफी असभ्य भी हैं, उनके द्वारा कई बार बेमतलब के ताने भी मारे जाते हैं और कई बार उनकी पुरुषों के साथ दोस्ती पर भी सवाल उठाये जाते हैं।”अब साथ में उठाना-बैठना तो होता है ना, थाने में? तो क्या हर बार इसमें महिला को गलत ही समझा जाएगा?” ऐसा नीतू की माँ का कहना है।
इस मामले के बाद प्रतिमा सिंह खुद से ही गायब हो गई थी। हमें बताया गया था कि इस घटना के तुरंत बाद ही उन्हें जल्द ही स्थानांतरित कर दिया गया था, लेकिन उनकी नई पोस्टिंग का विवरण कुछ स्पष्ट नहीं था। नीतू के पिता अनिल शुक्ला के अनुसार, प्रतिमा सिंह पोस्त्मोर्तेम में भी मौजूद थी। देवरिया जिला के एक पूर्व उप-निरीक्षक शुक्ला ने हमें बताया कि उनके तबादले के बावजूद भी वो कमसिन थाने के आस-पास कई बार देखी गई थी। “आखिर उनका वहां से क्या लेना-देना था?” शुक्ला के अनुसार, बांदा के पुलिस अधीक्षक एस.आनंद ने पोस्टमार्टम पर अपने उनके हस्ताक्षर भी मांगे थे, ये कहते हुए कि इस मामले में नीतू को न्याय ज़रूर मिलेगा। लेकिन तब से लेकर अब तक आनंद को एक बार भी मीडिया के सामने अपना बयान देते हुए नहीं देखा गया है।
नीतू के भाई राहुल का कहना है कि “अगर इस मामले की जांच खुद अपराधियों द्वारा ही की जा रही है तो इसका क्या ही नतीजा निकलेगा? ऐसे में हमे कोई पोस्त्मोर्तेम की ज़रूरत नहीं है जहाँ आसानी से रिकार्ड्स को बदला भी जा सकता है।” दिनेश कुमार शुक्ला, नीतू के चाचा का कहना है कि “हम बांदा में कहीं भी हो रही इस जाँच के प्रति अपना समर्थन नहीं जताते हैं। ऐसे में हम एक उच्च हस्तक्षेप की मांग करना चाहते हैं।”
नवम्बर
राहुल के करीबी दोस्त और कमासिन के रहने वाले राम सिंह* का भी इस पर यही कहना है कि इस मामले में सीबीआई जांच ही सबसे महत्वपूर्ण मानी जानी चाहिए।
15 नवम्बर को कमासिन पुलिस थाने में नीतू के लिए एक शांति हवन का आयोजन किया गया था। इस आयोजन में नीतू को श्रधांजलि के लिए, भारी मात्रा में स्थानीय लोग भी मौजूद थे। बाँदा में मौजूद कई लोगों का ये भी कहना है कि ‘शायद इस घटना के बाद नीतू का भूत इन सबको अभी भी परेशान करता है… जिस कारण ही इस हवन का आयोजन किया गया था’।
इस बीच, मामले में दूसरा सबसे महत्वपूर्ण पहलु राहुल के दोस्त राम सिंह* को माना गया, जिन्होंने जानकारी प्रदान करने में सबसे अहम किरदार निभाया है। कमासिन से 10 किलोमीटर दूर नारायणपुर के निवासी राम सिंह* ने इस मामले को एक गंभीर अपराध के रूप में भयादोहन का नाम दिया है। स्थानीय कोटेदार के रूप में राहुल के ये दोस्त राम सिंह* की मुलाकात कई बार नीतू के साथ पुलिस थाने में भी हुई है। बताया जाता है कि थाने के पास चाय के ठेले पर दोनों अक्सर बैठकर कई बार बात भी किया करते थे। वहीँ ठेले पर मौजूद चाय बेचने वाले आदमी के अनुसार नीतू को एक हंसमुख लड़की बताया गया है।
राम सिंह* के अनुसार उनकी बहन नीतू का कांस्टेबल हरेंद्र पाल के साथ प्रेम सम्बन्ध था। हालाँकि कुछ समय बाद ही नीतू को संदिग्ध हालातों में छोड़कर, हरेंद्र पाल ने इस रिश्ते को खत्म करने का फैसला ले लिया था। बताया जाता है कि कुछ समय पहले हरेंद्र पाल द्वारा उन्हें जबरदस्ती नशे की स्थिति में लाकर, उनके साथ बदतमीज़ी की गई थी और इसी का फायेदा उठाते हुए उन्होंने उनकी एक फिल्म भी बना ली थी। इस घटना के बारे में नीतू की माँ द्वारा भी पुष्टि की गई है। उनके अनुसार नीतू ने एक बार उन्हें फोन कर अपनी इस स्थति को समझाया था। वे काफी घबराई हुई भी थी। वो बार-बार बस यही दोहराई जा रही थी कि पिछले 24 घंटों में उनके साथ जो भी हुआ, उन्हें उसमे से कुछ भी याद नहीं है। लेकिन उन्हें ये ज़रूर पता था कि उनके साथ कुछ गलत हुआ है, जिस कारण वो काफी परेशान थी। हालाँकि उस समय उनकी माँ ने इस बात पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया था। उन्हें लगा शायद प्रतिमा सिंह ने ही फिर से उनके साथ बदतमीज़ी की होगी। उन्हें ये बिलकुल भी अंदाज़ा नहीं था कि उनकी बेटी के साथ किसी ने इतना गलत किया था। उनकी माँ ने हमसे ये सभी बताते हुए कहा कि “मेरी बेटी ने कभी किसी के साथ कुछ गलत नहीं किया, फिर भी उसे इन सबसे क्यों गुज़ारना पड़ा? आखिर उसकी गलती ही क्या थी?”
नीतू की माँ के साथ ये बातचीत नीतू के मरने के दो दिन बाद यानी 1 सितम्बर को फोन पर की गई थी।
ये भी बताया जा रहा है कि कांस्टेबल हरेंद्र पाल की पोस्टिंग कमासिन पुलिस थाने में होने के बावजूद भी वो वहां से फरार थे। हालाँकि कई बार फोन नंबर बदलने के बावजूद भी हम प्रतिमा सिंह का पता लगाने में कामयाब रहे हैं। जिस पर उनके इस मामले में कहना है कि “इन सब मैं ही एक पीड़ित हूँ। और अंत में इस मामले से जुड़ी पूरी खबर की जानकारी आपको किसने दी थी? इस बीच किसको यहाँ से जाना पड़ा? इस कांड से जुड़े किसी भी पुरुष को यहाँ से नहीं जाना पड़ा न ही उन्हें ये सब झेलना पड़ा। वो मैं थी, जिसको अंत में इन सबकी कीमत चुकानी पड़ी।” हालाँकि इसके अलावा उन्होंने और कोई भी जानकारी देने से साफ़ इनकार कर दिया था। इस पूरी बातचीत में उन्होंने असली पीडिता यानी की नीतू के बारे में एक बार भी ज़िक्र नहीं किया। लेकिन जब हमने उनसे नीतू के बारे में पूछना चाहा तो उनका कहना था कि “मैं बस अपना काम कर रही थी। मैं उनके साथ सख्ती से इसलिए पेश आई क्योंकि एक पुलिस अधिकारी को हमेशा ऐसा ही होना चाहिये और उन्हें ये सब सिखाना मेरा काम था।”
दिसम्बर
और इस कड़कती सर्दी में भी हम एक बार फिर से, दो घंटे का रास्ता तय कर, बाँदा के कमासिन पुलिस थाने पहुंचे।
सुबह, जैसे ही हम वहां पहुंचे तो हमने पाया कि वहाँ के क्वार्टर को बाहर से बंद कर दिया था। हालाँकि हमारे लिए इसकी कल्पना करना तो बहुत दूर की बात होगी कि कैसे हर दिन नीतू, थाने में मौजूद उन 22 पुरुष कांस्टेबल के साथ काम करती थी। और इन सबके बीचे अकेले बाहर काम करना तो उनके लिए और भी मुश्किल होता होगा।
इस बीच डीटीपी ऑपरेटर योगेश मौर्या का कहना है कि “जो फांसी लगाता है, कारण तो वो ही जानता है। और कौन जानता होगा?” उनके अनुसार नीतू को इतना बड़ा फैसला लेने से पहले एक बार उनसे बात करनी चाहिए थी। उन्हें बताना चाहिए था कि आखिर वो किन परेशानियों का सामना कर रही हैं। ये सभी बोलते हुए उन्होंने अचानक से ये भी कहा कि “कुछ ज़्यादा मतलब नहीं रखती थी वो…” उनके अनुसार वहां सब अक्सर अपने-अपने काम में व्यस्त रहते हैं। इन सबके लिए किसी के पास समय नहीं होता है।
“वह पूरा दिन केवल कंप्यूटर पर ही काम करती रहती थी” ऐसा पर्यवेक्षक लक्ष्मी नारायण ने हमें बताया है । जनवरी 2018 में कमासिन में पोस्ट हुए, नारायण ने वहां काम करने वाले सभी लोगों का अवलोकन किया-
“यहां सब अभी बच्चे हैं, वे आवेगपूर्वक कार्य करते हैं”। लक्ष्मी नारायण के अनुसार, मामला अभी भी विचाराधीन है। हालाँकि हमने उसे ये बताया कि भले ही जांच-पड़ताल के समय को तीन महीना बीत गया है लेकिन नीतू के परिवार वालों को इसमें अभी भी कोई न्याय का पहलु दिखाई नहीं पड़ता है। उन्होंने आख़िरकार हार मान ही ली है। इस पर नारायण का कहना है कि नीतू अक्सर बीमार ही रहा करती थी। यहां तक कि नेहा ने भी हमें बताया कि नीतू अक्सर तबियत ठीक न होने के कारण कई महत्वपूर्ण बैठकों में भी शामिल नहीं हुआ करती थी। जिसमे से एक बार मासिक स्टॉक-टेक सत्र की बैठक, जिसका आयोजन 29 अगस्त को किया गया था, इसमें नारायण के अनुसार-नीतू उसमे मौजूद नहीं थी। बताया गया था ठीक उसी दिन ही वो नशे के सेवन की वजह से अपने कमरे में सोती हुई पाई गई थी। हालाँकि जब हमने इसके चलते छुट्टी की रजिस्टर की जांच करी तो उसमे नीतू के नाम के आगे बीमार होने के कारण नहीं लिखा गया था।
इसके चलते लक्ष्मी नारायण ने हमे ये भी बताया कि उस दिन ज़्यादा भीड़ होने की वजह से वो उस दिन की वास्तविकता को ठीक ढंग से व्यक्त नहीं कर पा रही हैं। लेकिन उनका ये ज़रूर कहना है कि नीतू को बचाने के लिए वहां मौजूद सभी पुलिस अधिकारीयों से जो हो सकता था उन्होंने वो किया। लेकिन इस पर हमने उनसे पूछा “पर उस समय तक तो उनकी मृत्यु नहीं हो चुकी थी? तो कैसे ये सब…” ऐसे में उन्होंने कहा “अच्छा! उनकी मृत्यु हो गई थी तब तक?” ऐसे में उनका ये तर्क सही था या गलत हम कुछ नहीं कह सकते। इस पर ये भी नहीं बताया जा सकता कि आखिर उन्होंने इस घटना को देखा भी था या नहीं। क्योंकि उन्होंने हमसे ये सवाल किया कि “पंखे से ही हुई था ना मौत। आपने देखा?” इस पूरे मामले में अब तक ये स्पष्ट नहीं किया जा सकता कि आखिर कौन सच्चा है और कौन झुटा।
अपने मुंह से पान थूकते समय, उन्होंने हमे नीतू के बारे में और विस्तार से बताया। उनके अनुसार “नीतू की सभी के साथ दोस्ती थी। और वो बाकी लड़कियों से काफी अलग भी थी।”
पोस्टस्क्रिप्ट: हमने नेहा को ढूंढने की भी काफी कोशिश की- परिवार के बाद उनसे सबसे नजदीक वही थी- लेकिन वो अपने कार्यस्थल से काफी समय से एक लम्बी छुट्टी पर पाई गई। हरेन्द्र पाल, नीतू के प्रेमी और सहकर्मी, अभी भी कमासिन पुलिस थाने में दर्ज एक एएसए कांस्टेबल हैं, और अभी भी लापता हैं। अनुरोध पर बदला गया राम सिंह* का नाम।
यह लेख फर्स्टपोस्ट द्वारा भी सह-प्रकाशित किया गया है।
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