देश की आज़ादी के लिए भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने हँसते-हँसते फांसी को गले लगा अपने प्रेम को अमर कर दिया।
मैं मरकर भी याद आऊंगा
मैंने मेरे देश से बेइंतहा मोहब्बत की है।
आज़ादी की लड़ाई में शहीद हुए नौजवान भगत सिंह, सुखदेव थापर और शिवराम राजगुरु की याद में हर साल 23 मार्च को ‘शहीद दिवस’ मनाया जाता है। आज इन शहीदों की 91वीं पुण्यतिथि है। 23 मार्च 1931 को अंग्रेज़ों ने देश के इन नौजवानों को फांसी की सज़ा दी थी। इन्होंने कोई गुनाह नहीं किया था बस देश से अपनी जान से भी ज़्यादा मोहब्बत कर बैठे थे।
फांसी उनके लिए सज़ा नहीं उनकी महबूबा का तोहफ़ा था जिसे उन्होंने बड़े प्यार से अपने लबों से चूमते हुए अपने गले में लपेट लिया था। उस दिन यह तीन नौजवान अपनी महबूबा, अपने देश से चीख-चीखकर अपने प्यार का ऐलान कर रहे थे।
प्रेम ऐसा की महबूबा ने भी उन्हें गले लगा लिया। जब भी देशप्रेमियों का नाम आता है तो उनमें इनकी मोहब्बत हमेशा शामिल रहती है।
यह सच है कि मोहब्बत इंसान को बागी बना देती है। देश की मोहब्बत और उसे ज़ंजीरो से आज़ाद करने के लिए इन शहीदों ने हर हद तोड़ दी। इनकी मोहब्बत इतनी परवान चढ़ी की आज हर कोई इनकी प्रेम-गाथा गाता है।
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जानें भगत सिंह से जुड़े हुए कुछ अनजाने तथ्य
– जब 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग़ हत्याकांड हुआ था तब भगत सिंह की उम्र सिर्फ 12 साल थी। इसके बाद ही उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में शामिल होने का फैसला किया था।
जलियांवाला बाग हत्याकांड से भगत सिंह इतने परेशान थे कि उन्होंने घटनास्थल का दौरा करने के लिए स्कूल तक बंक किया था। बताया जाता है कि कॉलेज के समय वह एक शानदार एक्टर थे।
– भगत सिंह मार्क्सवादी विचारधाराओं से काफी प्रभावित थे। साल 1917 में वह व्लादिमीर लेनिन की बोल्शेविक क्रांति से भी बेहद प्रभावित हुए थे।
वह हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्य थे। समाजवादी विचारों की वजह से उन्होंने क्रांतिकारी संगठन का नाम बदलकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन कर दिया था।
– जब उनके माता-पिता ने उन्हें शादी करने के लिए ज़ोर दिया तो वह घर छोड़कर कानपुर आ गए थे। उन्होंने कहा, “अगर मैं औपनिवेशिक भारत में शादी करूंगा, जहां ब्रिटिशों का राज है, तो मेरी दुल्हन ही मेरी मौत होगी।” (Bhagat Singh ran away from his home to Kanpur when his parents insisted him to marry. He said, “if I will marry in colonial India, where British Raj is there, then my bride will be my death.”)
– वह एक बहुकृतिक लेखक थे। उन्होंने कीर्ति और वीर अर्जुन जैसे कई अखबारों और पत्रिकाओं के लिए लिखा।
– भगत सिंह ने “इंकलाब जिंदाबाद” के नारे को लोकप्रिय बनाया था। यह नारा 1921 में उर्दू कवि और भारतीय स्वतंत्रता सेनानी मौलाना हसरत मोहानी द्वारा बनाया गया था।
– भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने मिलकर दिल्ली के सेंट्रल असेंबली हॉल में बम फेंके और ‘इंकलाब जिंदाबाद!’ के नारे लगाए। उन्होंने इस दौरान भी अपनी गिरफ्तारी का विरोध नहीं किया था।
– 7 अक्टूबर 1930, यह वही दिन था जब भगत सिंह को मौत की सजा सुनाई गई। जेल में रहते समय भी उन्होंने विदेशी मूल के कैदियों के लिए बेहतर इलाज की नीति के खिलाफ भूख हड़ताल की थी।
यह थे भगत सिंह के जीवन से जुड़े कुछ ऐसे तथ्य जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। भगत सिंह का प्रेम आज उनके शरीर के चले जाने के बाद भी जीवित है और आगे भी रहेगा।
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