अलीनगर से बीजेपी ने लोक गायिका मैथिली ठाकुर को उतारकर साफ संकेत दिया है कि पार्टी अब राजनीति में सांस्कृतिक और प्रतीकात्मक चेहरों पर दांव लगा रही है। 25 साल की मैथिली, ब्राह्मण परिवार से आती हैं और सोशल मीडिया पर बेहद लोकप्रिय हैं। बीजेपी के लिए वो तीन चीज़ों का मेल हैं- उच्च जाति, हिंदू सांस्कृतिक प्रतीक और युवा महिला चेहरा।
लेखन – हिंदुजा
स्थानीय असंतोष के बीच बीजेपी का दांव- मैथिली ठाकुर
बिहार विधानसभा चुनाव में मैथिली ठाकुर की एंट्री ने राजनीतिक चर्चाओं का केंद्र बदल दिया है- अब हर ओर उन्हीं की बात हो रही है। उनके समर्थन में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार रोड शो में शामिल हो रहे हैं, और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह चुनावी सभाओं में उनके लिए प्रचार कर रहे हैं। मैथिली ठाकुर बीजेपी के लिए वह चेहरा बनती दिख रही हैं जिसकी भारतीय जनता पार्टी को बिहार में अब तक कमी थी- वो युवा हैं, महिला हैं, हिंदू सांस्कृतिक प्रतीक हैं और पहले से लोकप्रिय लोक गायिका भी। अभी अपनी सभाओं में वो भजन गाकर खास तौर पर महिलाओं और धार्मिक भावनाओं से जुड़ने की कोशिश कर रही हैं, जिससे उनकी छवि सिर्फ एक उम्मीदवार नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक प्रतिनिधि के रूप में भी उभर रही है।
मगर वहीँ दूसरी ओर उनके टिकट मिलने को लेकर स्थानीय स्तर पर नाराज़गी भी दिख रही है। कई लोगों का कहना है कि मैथिली स्थानीय नहीं हैं, इसलिए वो क्षेत्र की समस्याओं को नहीं समझ पाएंगी। अलीनगर के एक मतदाता ने कहा, “अगर हमें कोई परेशानी होगी तो क्या हम दिल्ली जाकर उन्हें अपनी परेशानी बताएँगे?”
एक और स्थानीय राजिंदर यादव का कहना था की, “हम हारमोनियम कितना अच्छा बजाती है ये तो नहीं न देखेंगे अपने विधायक में हम देखेंगे के वो कितना विकास कर सकते हैं, शिक्षा, स्वस्थ व्यहवास्ता देखेंगे।
दूसरी ओर, बीजेपी ने मैथिली ठाकुर को टिकट इसलिए भी दिया है क्योंकि 2020 में विकासशील इंसान पार्टी से जीतकर विधायक बने मिश्री लाल यादव, जिन्होंने बाद में बीजेपी ज्वाइन कर ली थी, एक मामले में दोषी ठहराए गए थे इसके बाद उनकी विधानसभा सदस्यता रद्द कर दी गई। इसी कारण क्षेत्र में पैदा हुई नाराज़गी और सरकार-विरोधी लहर (anti-incumbency) को संतुलित करने के लिए पार्टी ने मैथिली ठाकुर को नया चेहरा बनाकर मैदान में उतारा है।
कौन हैं मैथिली ठाकुर?
मैथिली मधुबनी ज़िले के बेनीपट्टी गांव के एक ब्राह्मण परिवार से हैं। उनके दोनों भाई ऋषभ ठाकुर, अयाची ठाकुर और पिता रमेश ठाकुर भी गायक हैं। अपने भाइयों के साथ उन्होंने मैथिली लोक संगीत, हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत, हारमोनियम और तबला की शुरुआती शिक्षा ली। बाद में उनके माता-पिता उन्हें बेहतर अवसरों की तलाश में दिल्ली ले आए।
जनसत्ता के मुताबिक, मैथिली ठाकुर ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गाँव में पूरी की। इसके बाद उन्होंने दिल्ली के बाल भवन इंटरनेशनल स्कूल से बारहवीं तक की पढ़ाई की। स्नातक स्तर पर उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी के आत्मा राम कॉलेज से राजनीति विज्ञान (पॉलिटिकल साइंस) में डिग्री हासिल की।
वो लिटिल चैंप्स, इंडियन आइडल जूनियर और राइजिंग स्टार जैसे शोज में आ चुकी हैं। राइजिंग स्टार शो से ही वो लोगों की नज़रों में आयी फिर उन्होंने अपना यूट्यूब चैनल बनाया जो वो अपने दो भाइयों के साथ चालती हैं। पिछले कई सालों में, मैथिली ठाकुर ने भारत और विदेशों में कई कार्यक्रमों में गाकर पहचान बनाई है। यूट्यूब में उनके 50 लाख से ज़्यादा फोल्लोवेर्स हैं जो उनकी गायिकी को बेहद पसंद करते हैं।
अपने इसी सांस्कृतिक रुझान और गायकी की वजह से वो देश के कई मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों और अंबानी परिवार तक के कार्यक्रमों में जा चुकी हैं। पिछले साल जनवरी में प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने मैथिली ठाकुर का एक वीडियो ट्विटर पर शेयर किया और उनकी गायकी को सराहा था।
अयोध्या में प्राण-प्रतिष्ठा का अवसर देशभर के मेरे परिवारजनों को प्रभु श्री राम के जीवन और आदर्शों से जुड़े एक-एक प्रसंग का स्मरण करा रहा है। ऐसा ही एक भावुक प्रसंग शबरी से जुड़ा है। सुनिए, मैथिली ठाकुर जी ने किस तरह से इसे अपने सुमधुर सुरों में पिरोया है।
— Narendra Modi (@narendramodi) January 20, 2024
राजनीति में बीजेपी के सुर से सुर मिले
इन्हीं उपलब्धियों के चलते वो आज बीजेपी के लिए एक चर्चित चेहरा बन गई हैं। उनका बिहार छोड़कर दिल्ली जाना, बीजेपी के लिए आरजेडी पर हमला करने का एक मौका बन गया है क्यूंकि पार्टी इसे लालू यादव के दौर में राज्य से बेहतर अवसरों के अभाव से जोड़कर दिखाती है।
एक फेसबुक पोस्ट में बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े ने लिखा- “मशहूर गायिका मैथिली ठाकुर, जिनका परिवार 1995 में लालू प्रसाद यादव के शासनकाल में बिहार छोड़कर चला गया था, अब राज्य के तेज़ विकास से प्रेरित होकर वापस लौटना चाहता है। आज केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय और मैंने उनसे बिहार के विकास में योगदान देने का आग्रह किया। हम मैथिली ठाकुर को शुभकामनाएं देते हैं।”
अक्टूबर में हुयी इसी मुलाकात के में मैथिली ठाकुर केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय और विनोद तावड़े (BJP के बिहार चुनाव प्रभारी) से मिली और तभी उन्होंने बीजेपी ज्वाइन की और इससे उनका चुनाव में खड़े होने का संकेत मिला और बीजेपी की उम्मीदवारों की दूसरी सूची में उनका नाम आया।
मैथिली ठाकुर को दरभंगा के अलीनगर से टिकट मिला है, और अपने शुरूआती बयान में उन्होंने कहा कि अगर वो अलीनगर से चुनाव जीती तो वो अलीनगर का नाम बदलकर सीतानगर करना चाहेंगी। एक मीडिया चैनल को दिए इंटरव्यू में उन्होंने इसकी वजह बताते हुए कहा कि मिथिला देवी सीता की ज़मीन है, और यहाँ के लोगों का देवी सीता से गहरा संबंध है इसलिए इस जगह का नाम सीतानगर होना उचित होगा।
स्थानीय असंतोष और बाहरी चेहरे की चुनौती
मैथिली ठाकुर इस चुनाव में अपनी हिंदू सांस्कृतिक पहचान और भावनात्मक जुड़ाव को प्रमुखता से सामने रख रही हैं, और उसी के सहारे वोटों को साधने की कोशिश कर रही हैं। लेकिन यह रणनीति थोड़ी विरोधाभासी लगती है। दरअसल, अलीनगर के एक स्थानीय मोहम्मद बहाउद्दीन ने बताया के बेनीपट्टी- जो उनका पैतृक गांव है वहां के लोगों ने कुछ समय पहले उन्हें एक स्थानीय कार्यक्रम में गाने के लिए आमंत्रित किया था और मैथिली ने इसके लिए पाँच लाख रुपये की फीस मांगी थी। गांव वालों ने किसी तरह दो लाख रुपये जुटा भी लिए लेकिन पूरी रकम न होने के कारण मैथिली कार्यक्रम में शामिल नहीं हुयी।
उनका कहना था कि, “जब उसने अपने गांव में ऐसा किया तो मैं उसे कैसे वोट दे दूंगा यहाँ।”
इस किस्से के अलावा भी क्षेत्र में मैथिली ठाकुर को बीजेपी से टिकट दिए जाने को लेकर नाराज़गी देखने को मिल रही है क्यूंकि अलीनगर के स्थानीय लोगों का कहना है कि बीजेपी के कार्यकर्ता पप्पू सिंह, जो लंबे समय से पार्टी के लिए सक्रिय रहे हैं, उन्हें उम्मीद थी कि इस बार टिकट उन्हें मिलेगा।
स्थानीय निवासी जय राम यादव ने कहा, “बीजेपी अगर स्थानीय पप्पू सिंह को उम्मीदवार बनाती तो बेहतर वोट मिल सकते थे। मैथिली ठाकुर को टिकट देने से इलाके में आक्रोश है।” उनका कहना था कि अलीनगर में आरजेडी के मजबूत प्रभाव को चुनौती देने के लिए किसी स्थानीय चेहरे को टिकट मिलना चाहिए था।
‘बाहरी’ होने के लिए निशाना बनाये जाने पर मैथिली ठाकुर ने प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया से कहा, “मैं अलीनगर में घर बनाने और इसे अपना ठिकाना बनाने की योजना बना रही हूं। मेरी ननिहाल की जड़ें यहीं हैं। मैं कहीं और रहना नहीं चाहती।”
बिहार में अब तक अकेले सत्ता से दूर बीजेपी का दांव
बिहार में जहाँ बीजेपी अब तक अकेले अपने दम पर कभी सरकार नहीं बना पाई है, मैथिली ठाकुर पार्टी की उस बड़ी रणनीति का हिस्सा हैं जो उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में काम कर चुकी है- यानी हिंदू सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान पर जोर देने वाली राजनीति। मैथिली के ज़रिए बीजेपी उसी नैरेटिव को बिहार में दोबारा आज़माने की कोशिश कर रही है। मगर क्या बिहार इसे अपनाएगा?
बिहार जैसे राज्य में जहाँ साक्षरता का स्तर देश के औसत साक्षरता के स्तर से कम है, जहाँ जाति गहराई से जुडी है, जहाँ संस्कृति का बड़ा महत्व है, जहाँ बाहुबली की राजनीति हमेशा रही है वहां बीजेपी का आना इतना मुश्किल नहीं होना चाहिए था मगर ऐसा नहीं हुआ तो क्या मैथिली ठाकुर का उन्हें इन्ही सारी चीज़ों के लिए अपना चेहरा बना लेना काम आएगा?
भले ही मैथिली ठाकुर बीजेपी के लिए एक परफेक्ट उम्मीदवार के रूप में सामने आई हैं- वह युवा हैं, महिला हैं, और एक लोकप्रिय लोकगायिका भी हैं, जिनकी लोकप्रियता से पार्टी को क्षेत्र में राजनीतिक फायदा मिल सकता है। लेकिन सवाल यह भी है कि क्या राजनीति में उनका यह कदम वास्तव में उनका अपना निर्णय है? क्या वो स्वतंत्रता से अपने निर्णय ले पाएंगी?
क्यूंकि मैथिली ठाकुर के राजनीति में आने के पीछे उनके पिता की भूमिका अहम मानी जा रही है। जब हमने उनसे संपर्क करने की कोशिश की, तो पता चला कि ज़्यादातर कामकाज उनके पिता ही संभालते हैं। नित्यानंद राय और विनोद तावड़े के साथ बैठकों में भी उन्हें अक्सर मैथिली के साथ देखा गया है। हालाँकि राजनीति में आगे बढ़ने का चेहरा मैथिली हैं, लेकिन यह सवाल उठता है कि क्या उन्हें अपने फैसले लेने की पूरी स्वतंत्रता मिलेगी- या फिर बिहार की राजनीति में जारी वही परंपरा दोहराई जाएगी, जहाँ महिलाओं की प्रतीकात्मक मौजूदगी होती है, मगर निर्णय अक्सर उनके इर्द-गिर्द बैठे पुरुष ही लेते हैं।
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