जिला महोबा ब्लाक जैतपुर कस्बा जैतपुर में तकरीबन 15 परिवार ऐसे हैं जो पूरे बारह महीने भूंजी हुई मछलियाँ बेचने का काम करते हैं। कस्बे के लोग भूंजी हुई मछलियाँ खाना काफ़ी पसंद भी करते हैं और गांव में यह मछलियाँ काफ़ी मशहूर भी है।
कुछ लोग ही बेचते हैं भूंजी हुई मछलियाँ
नगरिया गांव में भूंजी हुई मछलियाँ बेचने वालों में से हरिओम बताते हैं कि पूरे बेलाताल में उनकी भूंजी हुई मछलियाँ और कहीं नहीं मिलती। वह कई बार मछलियाँ खरीद कर भी बेचते हैं। वह बताते हैं कि वह तीस रुपए की ढाई सौ ग्राम मछली लेकर आते हैं और फिर उसे ही बेचते हैं।
लोग नाश्ते में खाते हैं मछलियाँ
बेलाताल में भूंजी हुई मछलियों की खास बात यह है कि यहां के लोग नाश्ते में यही खाते हैं। बस स्टैंड पर इंतज़ार करते हुए लोग भूंजी हुई मछलियाँ खरीदते हैं और बड़े ही स्वाद से खाते हैं।
भूंजी मछलियों को पकाने की नहीं होती परेशानी
लमोरा गांव के रहने वाले रज्जू का कहना है कि भूंजी हुई मछलियों का स्वाद बेहद अलग और स्वादिष्ट होता है। इसलिए जब भी उन्हें मछलियाँ खाने का मन करता है तो वह भूंजी हुई मछलियां ही खरीदकर लाते हैं। वह कहते हैं कि वह मछली के ऊपर नमक डालकर खा लेते हैं। उन्हें उसे पकाने की ज़रूरत नहीं पड़ती क्योंकि वह पहले से ही पकी होती है।
भूंजी मचलियां नहीं होती खराब
गांव के ही कमलेश का कहना है कि वह अगर कहीं रिश्तेदार के पास या कहीं और जाते हैं तो भूंजी हुई मछलियाँ ही लेकर जाते हैं क्योंकि वह खराब नहीं होती। वहीं ताज़ी मछलियाँ जल्दी ना बनाने पर खराब हो जाती है। वह कहते हैं कि मछली को खरीदकर लाने, काटने और बनाने का झंझट इससे खत्म हो जाता है।
मछलियाँ बेचना है पुश्तैनी काम
जानकी और कालीचरण बताते हैं कि उनके बाप–दादा भी ऐसे ही मछलियां बेचने का काम करते थे। उन्हीं को देखकर उन्होंने भी सीखा और अपना मछली बेचने का व्यवसाय शुरू कर दिया।
वह कहते हैं कि वह तालाब से मछली पकड़ कर लेते है। रात को वह तालाब में मछलियों को पकड़ने के लिए जाल बिछाकर आ जाते हैं और सुबह जितनी भी मछलियाँ जाल में फंसी होती हैं उसे निकालकर बेचने के लिए ले आते हैं। कई बार वह बाज़ार से भी मछलियाँ खरीदते हैं। कभी दो सौ रुपए की 5 किलो तो कभी ढाई किलो।
इस तरह से बनती है भूंजी हुई मछलियाँ
मछ्लियों को सबसे पहले वह अच्छे से धोते हैं और फिर उसे काटते हैं। काटने के बाद वह जंगल से लाई हुई लकड़ियों पर उसे एक से डेढ़ घन्टे तक भूंजते हैं। अच्छे से भूंज लेने के बाद मछलियों को दूसरे बाज़ारों में बेचने के लिए जाते हैं और एक दिन में 500 रुपए तक कमाते हैं। इसी व्यवसाय से उनका घर–परिवार चलता है। इसके अलावा वह और कोई काम नहीं करते क्योंकि यही काम करने में उन्हें खुशी मिलती है।
भुनी हुई मछलियों का नाम सुनते ही और उसे देखने के बाद मानों जीभ चटकारे मार रही हो। बेलाताल आए तो इन मछलियों का स्वाद उठाना ना भूलिएगा।