महोबा- मिलिए नारीवादी लेखिका सुभदा वर्मा से : जिला महोबा ब्लाक जैतपुर कस्बा जैतपुर तहसील कुलपहाड़ कोतवाली कुलपहाड़ जहां की रहने वाली लेखिका सुभदा वर्मा का कहना है कि पहले तो मैं अपने ही ऊपर कहानियां लिखी थी जो मेरे ऊपर भी थी थी 16 साल की उम्र से। अब 1 साल हो गए हैं लगभग मैं अपनी कहानियां फेसबुक में डालती हूं मोबाइल की जरिया पहले तो लेखिका कहानियां लिखती थी और डायरी में ही लिख कर रख लेती थी अब लेखिका ने सोचा कि ऐसा करना चाहिए कि जो कि हमें लोग जाने तो हम कहानियां लिखते हैं अलग-अलग महिलाओं के ऊपर लिखती हूं कहानियां पहले और अब में क्या परिवर्तन आया है और जिंदगी के संघर्ष के भी बारे में मैं लिखती हूं साहित्य लिखने से कुछ परिवर्तन आए इस उद्देश्य के साथ में यह कहानियां लिखते हैं जब मैं कहीं पर जाती हूं और कुछ देखती हूं पेड़ पौधे हो या और कुछ हो उसी समय मेरे मन में आ जाते हैं उसी पर मैं विचार करके कहानियां लिख लेती हूं लेखक तो मैं अपने मन में नहीं कहती हूं लेकिन जो मेरे मन में विचार आते हैं वह एक मैं माला जैसे घूम कर मैं कहानियां लिख देती हूं अभी तक में मैंने डेढ़ सौ कहानियां लिखी हूं महिलाओं के ही ऊपर और जीवन संघर्ष के ऊपर कि किस तरह से जीवन को उलझ जाता है कुछ कहानियां मैं प्रेम प्रसंग पर लिखी हूं जैसे मैंने उन प्रेमी प्रेमिका को देखा और मैंने महसूस किया कि क्या चल रहा है तो उसी समय में कहानियां का रूप देकर काल्पनिक लिखती हूं कुछ ऐसे रिश्ते होते हैं कि जाट समाज बिरादरी से ना जोड़ें गए हो लेकिन प्रेम प्रसन्न हैं उनको क्यों लोग दूरियां करते हैं समाज में ऐसा तो सोच लेते हैं लोग कि उन्होंने लड़की और लड़का ने गलत ही काम किया है तो वह अपने आप को सुसाइड करते हैं यह सब नहीं करना चाहिए जो मुझे लगता है और मैं इन पर कहानियां लिखती हूं जब मैं कहानियां लिखी हूं और लोग पढ़ कर मुझे फोन करते हैं तो मुझे बहुत अच्छा महसूस होता है क्योंकि जैसे कि लोग काम करके थकान महसूस करता है और उनको चाय मिल जाते हैं तो थकान दूर हो जाती हैं इसी तरह से मुझे भी किसी का फोन और किसी का मैसेज आया कि तुम्हारी कहानियां बहुत अच्छी हैं तो खुश हो जाती हो और मेरा मन लगता है कहानियां लिखने में की अभी तो मैंने इतना ही लिखा है ऐसा मैं कुछ और लिखूं कि मुझे जाने लो और मेरी कहानियों को पढ़े समझे
मेरा 4 लोगों को परिवार है आजीविका समूह में काम करती हूं इसी से मेरा घर खर्च चलता है और दिन भर तो मैं कहानियां लिखने के लिए समय नहीं दे पाती हूं सबसे ज्यादा अकेले में कहानियां लिखने को मन करता है और सोच पाते हैं इसलिए मैं घंटा दो घंटा रात का ही टाइम देती हूं कहानियां लिखने में हां कहानियां यह ऐसा होता है कि हम कहीं भी हो तो हमें डेरी और पेन बहुत जरूरी होता है ऐसा ही होता है मन की हम रात दिन उस शब्द को सोचते रहते हैं और वह शब्द नहीं निकल पाता कभी कभार अचानक से निकलता है मैंने आजमाया कि ऐसा अगर अचानक से निकलता है तो हमें बैरी और पेन की जरूरत हमेशा रहती है एक बार ऐसा हुआ कि हम खाना बना रहे थे एकदम हमारे को मन में सब आया तो हम खाना बनाना छोड़कर और वह शब्द को लिख लिया फिर हमने खाना बनाया अगर शायद है वह शब्द नहीं दिखती तो भूल जाता और मिलता भी नहीं ऐसी चीजों को ध्यान देना पड़ता है जब भी याद आए उस काम को तत्काल ही कर ले। मेरी पढ़ाई एमे इस समय मेरी उम्र 37 साल की है
कहानियां लिखने में मुझे सपोर्ट तो घर परिवार किसी से ही नहीं लिख मिला है लेकिन मैं समझती हूं कि सबसे ज्यादा तो सपोर्ट करने वाले वह हैं जो मेरी कहानियां पढ़ते हैं और मुझे बताते हैं कि इसमें यह कमियां है उनको और सुधार करो यही मेरे लिए सपोर्ट है। पहले तो मैंने शुरुआत किया था कि मुझे कैसे कहानियां लिखते हैं मैं अपने पिताजी से ही कहती थी कि कहानियां कैसे लिखते हैं उन्होंने थोड़ा बहुत बताया था और फिर मैं खुद में अपने मन से कहानियां देती थी जरिया नहीं था किसी तरह का कि मैं लोगों को पहुंचा सकूं व्हाट्सएप फेसबुक से लोगों तक मैं अपने कहानियां पहुंचाते हैं जिससे लोग पढ़ते हैं और मेरा नाम लेते हैं इससे मैं खुश होती हूं कि नहीं मेरा ही तो नाम आया
जब से मैं कहानियां फेसबुक में डालने लगी जब से मुझे बहुत अच्छा लगता है जो मुझे लोग कमेंट करते हैं कि आपने यह कहानियां लिखी तो है लेकिन कुछ और बढ़ाओ इससे मुझे सीख भी मिलती है और मैं अपने कहानियों को बेहतर बना रही हूं