पहले के समय में बर्तन बनाने का काम पूरी तरह हाथ से किया जाता था। कारीगर हथौड़े से पीटकर और धातु को गलाकर (पिघलाकर) मोल्ड में डालते थे, जिससे बर्तन बनाए जाते थे। ताँबा और जस्ता मिलाकर पीतल तैयार किया जाता था, फिर उसे पिघलाकर एक खास आकार में ढाला जाता था। बाद में उसे हथौड़े से पीट-पीटकर लोटा, थाली, गिलास, हांडी जैसे बर्तन बनाए जाते थे।लेकिन आजकल यह काम मशीनों किया जाता है बर्तन बनाने के लिए अब ऑटोमैटिक प्रेसिंग, कटिंग और शेपिंग मशीनें इस्तेमाल होती हैं, जिससे काम तेज़ और आसान हो गया है, लेकिन कुलपहाड़ के मनमोहन सोनी आज भी परंपरागत तरीके से, अपने हाथों से बर्तन बना रहे हैं।
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