जिला महोबा ब्लॉक कबरई गांव से छिकहरा का रहने वाला वंश गोपाल यादव आल्हा गायक हाय जहां पर अगर देखा जाए बुंदेलखंड में तो सावन भादो के महीने में आल्हा लोग सुनना पसंद करते हैं किस आल्हा गायक आल्हा गायन का रोल निभाते हैं जिससे मन मोह के हर जगह से आवाज जैसे चिन्न लेकर महोबा जिले का नाम रोशन किया है वंश गोपाल यादव का कहना है कि मेरी उम्र 9 साल की थी जब से मैं आल्हा गाने का शौकीन हो गया था मेरे ही घर में कुछ पुराने आल्हा गाने वाली चीजें रखी थी जो कि मेरी दादी दिवाली दशहरा उनकी पूजा करती थी जैसे मैंने देखा कि यह पूजा किस चीज की है तो उसमें आल्हा गाना लिखा था उसी दिन से मुझे लगा कि मैं क्यों ना आल्हा गांव तो मेरे पिता ने मुझे मना किया था कि आल्हा ना गांव पर मेरी मां ने मुझे सपोर्ट करती थी गाने के लिए जैसे ही मैं पहली बार अपने गांव में ही आल्हा गाने का रोल किया तो मेरे गांव वालों ने मुझे सराहना किया तो मुझे लगा कि मुझसे आल्हा गाना बनता है तो मैं महोबा आया और महोबा के उस समय डीएम थे डीएम ने मुझसे पूछा कि आप किस जाति के हैं तो मैंने बोला कि मैं अहीर हूं तो उन्होंने बोला कि अरे अहीरों का काम कैसे चढ़ाना और मट्ठा खाना होता है मैंने सुनकर रात भर अपने घर पर रोया और मुझे मन में हुआ कि मेरा अपमान हुआ है और मैं ऐसा क्यों ना करूं कि मुझे लोग पहचाने तभी से मैं और रुचि लिया गाने के लिए तो मेरी प्रशंसा होने लगी वैसे तो मैं 12 महीना सरकारी पर क्रम में आल्हा गाने का काम कर रहा हूं और आल्हा गाने का सरकार द्वारा पैसे भी लेता हूं और जैसे मुझे कोई गांव में बुलाया तो उसके लिए तो कोई बात ही नहीं है पैसों की लेकिन विभागों से मैं नहीं छोड़ता हूं और मेरी राशि भी है कि जो हमारी पुरानी परंपरा की गाथाएं चली आ रही हैं आल्हा गायन तो लोग आगे भी आए मैं 9 साल की उम्र से आल्हा गायन करता हूं आज मेरी 73 साल हो गई आल्हा गाते हुए और मेरा लक्ष्य है कि मैं 95 साल तक आल्हा गायन का रोल करो और वैसे ही तलवार घुमा के लोगों तक का संदेश धुन जैसे ही आल्हा और बाजा बजने लगता है तो मेरे शरीर में तेजाजी आ जाती है कि मैं भी आल्हा गालु मैं प्रयास कर रहा हूं कि आगे बच्चे भी निकल के आए आल्हा गाने को लेकर