महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने बुधवार 21 अक्टूबर को सीबीआई यानी केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो को दी गयी ‘सामान्य सहमति‘ वापस ले ली है। ऐसे में जाँच एजेंसी को किसी भी मामले में जांच करने के लिए सबसे पहले राज्य सरकार से इज़ाज़त लेनी होगी। कहा जा रहा है कि यूपी सरकार की सिफारिश पर सीबीआई की तरफ से टीआरपी घोटाले में प्राथमिक रिपोर्ट दर्ज़ कराई गयी थी। जिसके बाद उद्धव ठाकरे ने यह फैसला लिया है।
क्या है टीआरपी घोटाला ?
टीआरपी घोटाले को लेकर एक विज्ञापन कंपनी के प्रमोटर ने लखनऊ के हज़रतगंज पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज़ कराई थी। जिसके बाद यूपी सरकार ने यह मामला सीबीआई को सौंप दिया था। टीआरपी का यह घोटाला उस समय सामने आया था जब रेटिंग एजेंसी ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल ( BARC ) ने पुलिस में शिकायत की थी। जिसमे यह कहा गया था कि कुछ चैनल विज्ञापनदाताओं को अपनी तरफ करने के लिए टीआरपी रेटिंग्स को लेकर धांधली कर रहे हैं।
6 अक्टूबर को पुलिस ने दावा किया था कि अरनब गोस्वामी के रिपब्लिक टीवी चैनल सहित, तीन और टीवी चैनल हैं जो कि टेलीविज़न रेटिंग में गड़बड़ी कर रहे हैं। पुलिस ने यह भी कहा था कि टीवी चैनल्स ने कुछ परिवारों के घरों में डाटा एकत्र करने के लिए मीटर भी लगाए थे। साथ ही चैनल्स द्वारा उन्हें यह करने के लिए पैसे भी दिए जा रहे थे। रिपोर्ट के बाद रिपब्लिक टीवी मुंबई के उच्च न्यायलय का दरवज़ा खटखटाती है। जहां रिपब्लिक टीवी की तरफ से मामले को लड़ रहे वकील हरीश साल्वे, अदालत को कहते हैं की वह मामले को सीबीआई को सौंप दें।
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राजस्थान और बंगाल ने भी वापस ली सहमति
जानकारी के अनुसार, महाराष्ट्र से पहले सीबीआई के राज्य में प्रवेश को लेकर राजस्थान और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों ने पहले ‘सामान्य सहमति वापस ली थी। सीबीआई सीधे गृह मंत्रालय को रिपोर्ट करती है।
इससे पहले सीबीआई ने सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या की जांच की थी, जिसकी जांच मुंबई पुलिस द्वारा भी की जा रही थी। मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया था और मामला तब तक किसी एजेंसी को नहीं दिया गया जब तक अदालत ने इसकी मंज़ूरी नहीं दी।
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‘सामान्य सहमति‘ वापस लेने का क्या मतलब है ?
इसका मतलब यह है कि अब सीबीआई को महारष्ट्र में पंजीकृत होने वाले हर मामले के लिए पहले राज्य सरकार से अनुमति लेनी होगी, तभी वह उस मामले की जांच कर सकती है। ” दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम 1946 की धारा 6 द्वारा दी गयी शक्तियों को इस्तेमाल करते हुए महाराष्ट्र सरकार ने दिल्ली सरकार के सदस्यों को दिल्ली सरकार के विशेष आदेश के अनुसार सहमति वापस ली है– दिनांक 22 फरवरी,1989″ , महाराष्ट्र गृह विभाग द्वारा जारी सन्देश।
दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम के अंतर्गत सीबीआई को राज्य में जांच करने के लिए राज्य सरकार से अनुमति लेना अनिवार्य करती है। चूँकि सीबीआई के पास सिर्फ केंद्र सरकार के विभागों और कर्मचारियों पर अधिकार क्षेत्र होता है।
जानकारी के अनुसार यूपी में दर्ज़ टीआरपी के मामले को लेकर सीबीआई ने “टिपिंग पॉइंट” लिया था। जिसके कारण ने महाराष्ट्र सरकार ने सामान्य सहमति वापस लेने का फैसला किया था। इंडियन एक्सप्रेस की 22 अक्टूबर की रिपोर्ट में एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि ” उन्हें इस बात की पहले से ही आशंका थी की केंद्रीय एजेंसी बाद में मुंबई पुलिस से टीआरपी घोटाले के मामले को ले लेगी“।
अन्य राज्यों के मामले में हस्तक्षेप कर सकती है सीबीआई
‘सामन्य सहमति‘ वापस लेने से उन मामलों में कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा, जिनकी जाँच सीबीआई पहले ही कर चुकी है। साथ ही वापसी का सिर्फ यही मतलब है कि एजेंसी सिर्फ महारष्ट्र में एफआईआर दर्ज नहीं कर सकती है। दिल्ली उच्च न्यायालय के 2018 के आदेश के अनुसार , एजेंसी अन्य राज्यों में किसी भी व्यक्ति के खिलाफ एफआईआर दर्ज़ करा सकती है। साथ ही मामले की जांच भी कर सकती है।
मुंबई पुलिस ने अभी तक टीआरपी रेटिंग को बढ़ाने के मामले में फ़क्त मराठी, बॉक्स सिनेमा और रिपब्लिक चैनल सहित तीन और चैनल्स के नामों को अपनी सूचि में शामिल किया है। जिसमें पहले के एजेंसियों के कर्मचारियों के नाम भी भुगतान करने के नामों शामिल हैं। मामले में अभी तक आठ लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। बुधवार 22 अक्टूबर को पुलिस ने अपने बयान में कहा कि वह दो और चैनल्स की जांच कर रहे हैं।
नवंबर 2018 में पश्चिम बंगाल सरकार ने पहले टीएमसी और आंध्र प्रदेश सरकार के तहत फिर टीडीपी ( तेलेगू देशम पार्टी ) के तहत, सीबीआई की ” सामान्य सहमति” वापस ले ली थी। दोनों राज्यों ने आरोप लगाया था कि एजेंसी का इस्तेमाल विपक्ष को निशाना बनाने के लिए किया जा रहा था।
बीजेपी प्रवक्ता ने फैसले का जताया विरोध
बीजेपी के प्रवक्ता और विधायक रमकदम ने सीबीआई की जांच रोकने को लेकर महाराष्ट्र सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार का यह तुगलकी फ़रमान है। आखिर सरकार को किस बात का डर है जो उन्होंने ऐसा फैसला लिया। वहीं बीजेपी की ही वरिष्ठ नेता सौम्या ने कहा कि महारष्ट्र सरकार को सीबीआई से डर लगता है तभी सरकार ने सीबीआई के लिए ‘ नो एंट्री का बोर्ड ‘ लगाया है।
महाराष्ट्र सरकार द्वारा सीबीआई को राज्य में प्रवेश न करने के फैसले को लेकर बहुत से वाद–विवाद होते दिखाई दे रहे हैं। लेकिन सरकार द्वारा सीबीआई को प्रवेश करने से मना करना, कोई पहली बार नहीं हुआ है। महाराष्ट्र सरकार से पहले राजस्थान, आँध्रप्रदेश आदि सरकारों ने भी यह फैसला लिया था। लेकिन उस वक़्त ऐसा विवाद नहीं हुआ था, जैसा की आज देखने को मिल रहा है। सवाल तो वैसे महाराष्ट्र सरकार पर गंभीर रूप से खड़ा होता है कि जिस वक़्त देश में आये दिन मामले बढ़ते जा रहे हैं और टीवी चैनल्स सच्ची खबरों से ज़्यादा टीआरपी के पीछे हैं। ऐसे में सीबीआई को जांच करने से ही मना कर देना कुछ हज़म नहीं होता। आखिर सरकार को किस बात का डर है ? या फिर सरकार किसी को बचाने की कोशिश कर रही है।